मेरे बारे में---Nirupama Sinha { M,A.{Psychology}B.Ed.,Very fond of writing and sharing my thoughts

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सोमवार, 26 सितंबर 2016

Bachpan -2.

जब बचपन था ,दिन के बाद रात और रात के बाद दिन आता था
तो नहीं जानते थे हम ,कि “वो वक़्त था ” जो गुजरता जा रहा था
हमारे लिए तो सारा दिन था ,हंसी ठिठोली खेल कूद के लिए
हर दिन एक सामान था दोस्तों के साथ मटरगश्तियां करने के लिए
यह गुमान न था ,कि नन्हे नन्हे हाथों से फिसल रहा था जो
वो निकला जा रहा था ,कभी लौट के ना आने के लिए
कुछ ख़ास भी होते थे दिन ,जिनका इंतज़ार साल भर हुआ करता था
कलाई में राखी बाँधने बंधवाने के लिए रक्षाबंधन ,
पटाखे और फुलझड़ियों के लिए दिवाली
और रंगों से सराबोर करने और होने के लिए होली
कितनी मस्ती थी इन सब त्योहारों में ,क्या जूनून था
और बिलकुल एक सा था बचपन सबका ,उसमे कहाँ कोई भेदभाव था ?
अब ढूंढते हैं उन्ही दोस्तों को फेस बुक पे,और खुश हो जाते हैं देख कर
उसकी तस्वीरें,तरक्की ,तदबीरें और तक़दीर
जब रूबरू मिलते है ,तो हमें लगता हैं एक झटका
यह वो तो नहीं जो बचपन में हुआ करता था,
कितना हँसता था ,चुटकुले सुनाया करता था ,
कितनी बदल गयी है इसकी जिंदगी,प्राथमिकताएं,जीवन का ढर्रा,
जल्दी से कमरे में जाकर देखा जो आइना
अरे ! मैं भी तो वो नहीं जो कल हुआ करता था ?


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Dharm & Darshan !! Seva Ani Ahankar !! {MARATHI }

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