केजरीवाल केजरीवाल !!
क्या अब भी तुम्हे समझ नहीं आ रहा ?
खिसक रही है तुम्हारी ज़मीन ,
उजागर हो गई है तुम्हारी असलियत
एक बेहद सोचा समझा कदम था तुम्हारा
करना हिंदुस्तान की सियासत
"ऐं वें " नहीं आ गए थे तुम ,
त्रस्त थे ,पस्त थे ,हम सब,
देख देख कर घोटालेबाजों के करतब ,
तुम ने ताड़ लिया था मौका ,
भांप लिया था जनता का मिजाज़ ,
अन्ना के कंधे पर रख कर बन्दूक ,
साध लिया था निशाना
तुम्हे मालूम था ,हम भोग रहे थे बिजली,पानी की किल्लत,
सो तुमने इन्ही दो की दे के सहूलियत ,
आसानी से मार ली बाजी,हथिया ली दिल्ली की हुकूमत ,
लेकिन और भी बहुत कुछ करना होता है जनाब ,
जिसे तुमने किया नज़रअंदाज़ ,
मच्छरों की भरमार , डेंगू चिकनगुनिया से मरते लोग,
कॉलोनियों में महीनों से भरा जलभराव ,
लोगों के घरों की गिरती छत,दीवारों की दरारें,
कुछ भी नज़र नहीं आता तुम्हे ?
क्योंकि तुम तो शुरू से ही थे "बदनीयत"
लोग अब तुम्हारी कर रहे हैं हर चॅनल पर "लानत मलामत"
समझ रहे हैं तुम्हे "अलामत"
खुशफहमी ना पालो के बन जाओगे पी एम,
कहाँ "वो" और उनके सामने क्या है तुम्हारी "हैसियत"?
विपक्ष के "चालीस चोरों " में तुम भी हो एक ,
काश ! तुम समझ पाते कि "जनता समझदार हो गई है "
हांक नहीं सकते तुम "इस उस "ओर,
"काठ की हांडी " चढ़ती है एक बार,
रोक नहीं सकता कोई अब "भारत की रफ़्तार "!!!
क्या अब भी तुम्हे समझ नहीं आ रहा ?
खिसक रही है तुम्हारी ज़मीन ,
उजागर हो गई है तुम्हारी असलियत
एक बेहद सोचा समझा कदम था तुम्हारा
करना हिंदुस्तान की सियासत
"ऐं वें " नहीं आ गए थे तुम ,
त्रस्त थे ,पस्त थे ,हम सब,
देख देख कर घोटालेबाजों के करतब ,
तुम ने ताड़ लिया था मौका ,
भांप लिया था जनता का मिजाज़ ,
अन्ना के कंधे पर रख कर बन्दूक ,
साध लिया था निशाना
तुम्हे मालूम था ,हम भोग रहे थे बिजली,पानी की किल्लत,
सो तुमने इन्ही दो की दे के सहूलियत ,
आसानी से मार ली बाजी,हथिया ली दिल्ली की हुकूमत ,
लेकिन और भी बहुत कुछ करना होता है जनाब ,
जिसे तुमने किया नज़रअंदाज़ ,
मच्छरों की भरमार , डेंगू चिकनगुनिया से मरते लोग,
कॉलोनियों में महीनों से भरा जलभराव ,
लोगों के घरों की गिरती छत,दीवारों की दरारें,
कुछ भी नज़र नहीं आता तुम्हे ?
क्योंकि तुम तो शुरू से ही थे "बदनीयत"
लोग अब तुम्हारी कर रहे हैं हर चॅनल पर "लानत मलामत"
समझ रहे हैं तुम्हे "अलामत"
खुशफहमी ना पालो के बन जाओगे पी एम,
कहाँ "वो" और उनके सामने क्या है तुम्हारी "हैसियत"?
विपक्ष के "चालीस चोरों " में तुम भी हो एक ,
काश ! तुम समझ पाते कि "जनता समझदार हो गई है "
हांक नहीं सकते तुम "इस उस "ओर,
"काठ की हांडी " चढ़ती है एक बार,
रोक नहीं सकता कोई अब "भारत की रफ़्तार "!!!
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