मेरे बारे में---Nirupama Sinha { M,A.{Psychology}B.Ed.,Very fond of writing and sharing my thoughts

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शनिवार, 31 मार्च 2018

Anmol Moti !! {31}

प्रेम-- प्रेम आँखों से नहीं हृदय से देखता है --शेक्सपियर 
प्रेम में हमसब सामान रूप से मूर्ख हैं --गेटे 
इश्क अक्ल की बुनियाद हिला डालता है 
प्रेम बलिदान सिखाता है हिसाब नहीं सिखाता है --अज्ञात 
ज्ञान के शीतल प्रकाश में प्रेम का पौधा कभी नहीं उग सकता --कैंट 
खूब किया मैंने दुनिया से और दुनिया ने मुझसे प्रेम ,तभी तो मेरी सब मुस्कुराहटें उसके होटों पर थीं और उसके सब आंसू मेरी आँखों में --खलील जिब्रान 
प्रेम के स्पर्श से हर कोई कवि बन जाता है --अफलातून 
प्रेम और धुआं छुपाये नहीं छुपते --फ़्रांसीसी  कहावत 
प्रेमियों के झगडे प्रेम में वृद्धि करते हैं --पुर्तगाली कहावत 
प्रेम धनुष की तरह है जो अधिक तानने से टूट जाता है -इटालियन  कहावत 
प्रेम शरीर चाहता है मित्रता आत्मा --स्पेनी कहावत 
जब प्रेम पतला होता है तो दोष गाढ़े हो जाते हैं --कहावत 
जब दरिद्रता दरवाज़े से प्रवेश करती है तो प्रेम खिड़की के रास्ते भाग  जाता है --कहावत 
सजा देने का अधिकार केवल उसे है जो प्रेम करता है --टैगोर 
पूर्ण प्रेम आदर्श आनंद है --नेपोलियन 
जहाँ प्रेम है वहां नियम नहीं जहाँ नियम है वहां प्रेम नहीं 
प्रेम भगवान  का सर्वश्रेष्ठ वरदान है वॉल्टेयर 
प्रेम कभी दावा नहीं करता वह तो हमेशा देता है प्रेम हमेशा कष्ट सहता है न झुंझलाता है न बदला लेता है गाँधी 
सच्चा प्रेम संयोग में भी वियोग में भी वेदना का अनुभव करता है --प्रेमचंद 
प्रेम मानवता का दूसरा नाम है --बुद्ध 
घृणा राक्षसों की संपत्ति है क्षमा मनुष्यों का कल्याण है प्रेम देवताओं का गुण है --भृतृहरि 
जी भर कर प्रेम करना जी भर कर जीना है और सदैव प्रेम करना सदैव जीवित रहना है --अज्ञात 
प्रेम करो और फिर चाहे जो करो --ऑगस्टाइन 
मैं तुम्हे एक नया आदेश देता हूँ कि तुम एक दूसरे से प्रेम करो --बाइबिल 

मेरा आदेश है कि तुम एक दूसरे से प्रेम करो --कन्फ्यूशियस 
परमात्मा मुझे ऐसी आँख दे जिससे मैं संसार के सभी पदार्थों को प्रेम की दृष्टि से देख सकूँ --वेद 
प्रेम के दो लक्षण हैं ,पहला बाहरी संसार को भूल जाना दूसरा अपने आप को भी भूल जाना --रामकृष्ण परमहंस 
व्यक्तिगत प्रेम --दुर्बलता --रामतीर्थ 
प्रेम के सिवा तू किसी परमात्मा को न मान 
परमात्मा प्रेम का भूखा है --दयानन्द 
प्रेम से ही सृष्टि का जन्म होता है प्रेम से ही उसकी व्यवस्था होती है और अंत में प्रेम में ही वह विलीन हो जाता है --टैगोर 

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