कभी सोचता नहीं पत्थर,
वह देखता और सुनता भी नहीं है
ख़ुशी या ग़म का उस पर कोई नहीं असर ,
कोई उसे उठा कर जो फेंके दूसरे के ऊपर
तो ज़ख्म खा जाता है वो पुरअसर ,
कभी जो इससे लग जाए ठोकर
गिरता है मुंह के बल ,होता है घायल
और जो कोई गिरे सर के बल
निकल जाए दम ,फैट जाए सर
कुछ भी नहीं करता खुदबखुद पत्थर
मेरे जिस्म में,दिल की जगह ,उग आया है एक पत्थर !!
पुरअसर : असरदार ,खुद ब खुद : स्वयं
वह देखता और सुनता भी नहीं है
ख़ुशी या ग़म का उस पर कोई नहीं असर ,
कोई उसे उठा कर जो फेंके दूसरे के ऊपर
तो ज़ख्म खा जाता है वो पुरअसर ,
कभी जो इससे लग जाए ठोकर
गिरता है मुंह के बल ,होता है घायल
और जो कोई गिरे सर के बल
निकल जाए दम ,फैट जाए सर
कुछ भी नहीं करता खुदबखुद पत्थर
मेरे जिस्म में,दिल की जगह ,उग आया है एक पत्थर !!
पुरअसर : असरदार ,खुद ब खुद : स्वयं
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