प्राचीन काल में पटना या पाटलिपुत्र के तीन मुख्य अंग थे -पाटलीपुत्र, पुष्प पुर और कुसुम पुर!
कुसुम पुर आधुनिक काल में खगौल है (दानापुर स्टेशन के इर्द-गिर्द). ऐसा माना जाता है कि महान गणितज्ञ और खगोल शास्त्री आर्यभट्ट की यह जन्मस्थली है और यही पर चक्रदाहा नामक स्थान पर उन्होंने खगोलीय वेधशाला (ऐस्ट्रो नोमिकल ऑब्जर्वेटरी) स्थापित किया था। वस्तुत खगौल शब्द खगोल का अपभ्रंश है।
ऐसी मान्यता है कि आचार्य चाणक्य की कुटिया यही हुआ करती थी जहां से मगध साम्राज्य का संचालन बतौर प्रधानमंत्री करते हैं। यहां एक स्थल को चाणक्य का चबूतरा कहा जाता है।
पुष्प पुर ,आजकी फुलवारी शरीफ है! यहां फूलों की नर्सरी थी और बड़े पैमाने पर फूलों की खेती होती थी। तेरहवीं शताब्दी में हज़रत मखदूम शाह द्वारा खानकाह स्थापना के बाद यह फूलवारी शरीफ होगया।
लाल सलामी मुहल्ला -
जिसे कभी कारवां सराय के नाम से जाना जाता था, यहां पर बाहर से आने वाले व्यापारियों या तीर्थ यात्रियों के ठहराव के सराय हुआ करते थे। चूंकि यह पाटलिपुत्र का प्रवेश द्वार था अतः व्यापारियों से उनके माल के अनुसार एक तय राशि यहां वसुल की जाती थी, जिसे मालसलामी कहा जाता था।
नगला मुहल्ला -
नगरम का अपभ्रंश है नगला! मालसलामी से दक्षिण एक नगर बसाया गया था जिसे नगरम कहा जाता था।
मोर्चा पर मुहल्ला -
पटना साहिब रेलवे स्टेशन से मारुफ गंज की ओर जाने वाले मार्ग के इर्द-गिर्द है यह मुहल्ला। राजा अजातशत्रु ने नगर की सुरक्षा के लिए यहां पर चहारदीवारी का निर्माण कराया था। जिसका कुछ कुछ आभास आज भी होता है। जिस चहारदीवारी का उपयोग दुश्मन के आक्रमण के समय मोर्चा लेने के लिए भी किया जा सकता था।
बड़ी पहाड़ी -छोटी पहाड़ी -
पटना सिटी के दक्षिण -पूर्व में स्थित इसका नामकरण संभवतः अशोक मौर्य ने बौद्ध स्तूपों के आकार के अनुसार किया था।
मखनियां कुआं -
पटना अस्पताल के पास मोड़ पर एक कुआं हुआ करता था जिसके इर्द-गिर्द गांवों से आकर मक्खन घी बेचने वाले अपना बाजार लगाया करते थे। चूंकि मक्खन निकालने और बेचने वाले को मखनिया कहा जाता था इसलिए इसे मखनियां कुआं कहा गया।
त्रिपोलिया -
नुहानी पुर नाम सन् पन्द्रहवी शताब्दी में नुहानीवंश के शासन काल में पड़ा था।इस वंश के दरिया खां नुहानी को दिल्ली सल्तनत के सिकंदर लोदी ने 1489 में बिहार का गवर्नर बनाया था जो सन् 1495 में यहां का शासक बन बैठा।इसी के वंशज बहार खां सुल्तान मोहम्मद शाह नूरानी के दरबार में फरीद खां शेर को मारकर शेरखान और बाद में शेरशाह सूरी बना था।
खजांची रोड: कभी यह सरकार के खजाने को नियंत्रित करने वाले खजांचियों का आवासीय क्षेत्र था।
रमणा रोड:
यहां हरे भरे बाग थे जो बौद्ध भिक्षुओं का रमण स्थल हुआ करता था।
पीर बहोर;
शाह अरजान के समकालीन संत दाता पीरबहोर यही रहते थे उनका मजार आज भी यहां है।
बादशाही गंज/ठठेरी बाजार:
साइंस कालेज के निकट के इस क्षेत्र में औरंगजेब के पोता फारूखसियर का निवास स्थान था कालांतर में यहां ठठेरो की बस्ती बस गई।
मछुआ टोली:
यह मछुआरों की बस्ती की बस्ती थी जो गंगा नदी और दरिया पुर(गोला) से मछली पकड़ने और बेचने का काम करते थे।
मुराद पुर:
यहां बादशाह जहांगीर का गवर्नर मिर्जा रुस्तम सफवी का बेटा मिर्जा मुराद का जन्म हुआ था।
पुरब और पश्चिम दरवाजा -
प्राचीन काल में पाटलिपुत्र नगर चारों तरफ से उंचे और मजबूत दिवारोंसे घिरा हुआ था। जिसमें 64 दरबाजे थे। चारदीवारी से घिरे किले के मध्य से एक राज मार्ग हुआ करता था।काल कवलित होते दरवाजों में से पुरब और पश्चिम दरवाजा का जीर्णोद्धार सन् 1704 से 1712 के मध्य पटना के तत्कालीन सूबेदार ने करवाया था।
लार्ड मेटकाफ ने सन् 1820 से 1824 के बीच ध्वस्त पश्चिम दरवाजा के अवशेष स्तंभ को एक ऐतिहासिक स्मारक के रुप में प्रतिष्ठित किया।
त्रिपोलिया:
पटना सिटी स्थित इस स्थान पर कभी तीन पोलीय या तीन तरफा फाटक हुआ करता था।
वस्तुत मुगल काल में यहां हाट लगा करता था जिसमें आने जाने के लिए तीन बड़े बड़े द्वार थे।
यहां पर तब चिड़िया के शिकारियों का बस्ती भी हुआ करता था इसलिए इसका नाम मीर शिकार टोह भी हुआ करता था।
लोहानीपुर मुहल्ला:
आज का लोहानीपुर मुहल्ला कभी नुहानीपुर हुआ करता था।यह बिहार के दीवान नवाब मीर कासिम का जन्म स्थान है।
नुहानी पुर नाम सन् पन्द्रहवी शताब्दी में नुहानीवंश के शासन काल में पड़ा था।इस वंश के दरिया खां नुहानी को दिल्ली सल्तनत के सिकंदर लोदी ने 1489 में बिहार का गवर्नर बनाया था जो सन् 1495 में यहां का शासक बन बैठा।इसी के वंशज बहार खां सुल्तान मोहम्मद शाह नूरानी के दरबार में फरीद खां शेर को मारकर शेरखान और बाद में शेरशाह सूरी बना था।
खजांची रोड: कभी यह सरकार के खजाने को नियंत्रित करने वाले खजांचियों का आवासीय क्षेत्र था।
रमणा रोड:
यहां हरे भरे बाग थे जो बौद्ध भिक्षुओं का रमण स्थल हुआ करता था।
पीर बहोर;
शाह अरजान के समकालीन संत दाता पीरबहोर यही रहते थे उनका मजार आज भी यहां है।
बादशाही गंज/ठठेरी बाजार:
साइंस कालेज के निकट के इस क्षेत्र में औरंगजेब के पोता फारूखसियर का निवास स्थान था कालांतर में यहां ठठेरो की बस्ती बस गई।
मछुआ टोली:
यह मछुआरों की बस्ती की बस्ती थी जो गंगा नदी और दरिया पुर(गोला) से मछली पकड़ने और बेचने का काम करते !
लंगर टोली मुहल्ला:
पटना में जब गंगा नदी का विस्तार इस स्थान तक था तो यहां जहाज और नाव ठहरते थे जिसके लिए लंगर डालते थे।
दरिया पुर गोला;
सन् 1495 से 1530 तक यहां नुहानी वंश का शासन था।उस वंश के प्रथम शासक दरिया खां नूहानी के नाम पर इसका नामकरण दरिया पुर हुआ।
गुलज़ार बाग:
इसका नामकरण नवाब मीर कासिम के छोटे भाई गुलजार अलि के नाम पर है।1620 में इस जगह पर उसने एक बाग लगवाया था जिससे यह क्षेत्र गुलजार बाग कहलाया।
मीर कासिम के शासन काल में गुलजार अलि का काफी दबदबा था।
फ्रेजर रोड:
1906 में बंगाल के ले.गवर्नर सर ए एच फ्रेजर के सम्मान में इसका नामकरण किया गया था।
छज्जुबाग कभी एक विशाल बगीचा हुआ करता था जिसका अंतिम माली छज्जु था।जिसका मकबरा आज भी इसी महल्ले में है।कभी इसी बाग का आम नवाब सिराजुद्दौला और अलीवर्दी को बहुत पसंद था।बगीचे में नवाब के ठहरने के लिए महलनुमा घर बने थे।1857 में यहां कमिश्नर विलियम टेलर (गर्दनीबाग का ट्रेलर रोड इन्हीं के नाम पर है)का आवास था।बाद में इसे दरभंगा महाराज ने खरीद लिया।
जब अंग्रेजी राज में पटना को बंगाल की दुसरी राजधानी बनाने की बात उठी तो 1905 में इसे बंगाल के लेफ्टिनेंट गवर्नर ऐंडु फ्रेजर ने अपने निवास के लिए दरभंगा महाराज से खरीदा था। तब कमिश्नर रेसिडेंस कहा गया।
1अप्रेल1912 में उपराज्यपाल नियुक्त होने पर चार्ल्स स्टुअर्ट बेली(जिसके नाम पर बेली रोड है)ने इसे ही अपने आवास और कार्यालय के लिए चुना।बिभाजन के बाद 21 नवम्बर 1912 को पहला बांकीपुर दरबार यही लगा।
यहां कभी भी विधान सभा या कांसिल की बैठक नहीं हुई।
इसीलिए यह कहना उचित नहीं थी जैसा कि कुछ लोग भ्रमवश कहते हैं।
पटना में भिखना पहाड़ी नामक मुहल्ला है। भिखना पहाड़ी का निर्माण सम्राट अशोक ने कराया था। इसी पहाड़ी पर अशोक के पुत्र महिन्द रहते थे।
19 वीं सदी के आखिरी दशक में लाॅरेंस वाडेल ने भिखना पहाड़ी की जाँच की थी। उन्होंने लिखा है कि भिखना पहाड़ी 40 फीट ऊँची और 1 मील के घेरे में है।
भिखना पहाड़ी पर मठ है। मठ में मूर्ति है। मूर्ति का नाम भिखना कुँवर है, जिसकी पूजा होती है।
भिखना कुँवर दरअसल भिक्खु कुमार हैं और भिक्खु कुमार वास्तव में कुमार महेन्द्र हैं। वहीं महेंद्र जो सम्राट अशोक के पुत्र थे।
संदर्भ: डिस्कवरी आफ दी इग्जैक्ट साइट आफ असोकाज क्लासिक कैपिटल आफ पाटलिपुत्र ( 1892 )
गांधी मैदान, पटना:
साठ एकड़ में विस्तारित इस मैदान का अंग्रेज अफसर, गोल्फ कोर्स और घुड़दौड़ ट्रेक के रुप इस्तेमाल करते थे।तब इसे पटना लॉन्स कहा जाता था। इसका नाम बांकीपुर मैदान भी था।इस पर कभी खैरुन मियां की मिल्कियत थी।
चंपारण सत्याग्रह का आह्वान महात्मा गांधी ने यही से किया था। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान यह मैदान कई ऐतिहासिक रैलियों और दिग्गज नेताओं की उपस्थिति का साक्षी रहा। ऐसा कहा जाता था कि जब तक कोई नेता पटना लॉन्स में रैली को संबोधित नहीं करता था तब तक उसकी पहचान अधुरी रहती।
1942 में स्वतंत्रता आंदोलन के हीरो जे पी यानी जयप्रकाश नारायण की सम्मान में इस मैदान पर ही श्रीकृष्ण सिंह की उपस्थिति में रामधारी सिंह दिनकर ने कविता पढ़ी थी
" भावी इतिहास तुम्हारा है......
जो 1974 में यही से जे पी के कांग्रेसी सरकार के खिलाफ किया गया सम्पूर्ण क्रान्ति का आह्वान में स्पष्ट दिखा।
1986-87 में पटना सिटी से यहां तक घोड़े द्वारा खींची जाने वाली ट्राम का परिचालन शुरू हुआ था जो 1903 तक चला।
महात्मा गांधी के हत्या के बाद यहां आयोजित श्रद्धांजलि सभा में मुजफ्फरपुर के एक व्यवसाई विश्वनाथ चौधरी ने इस मैदान नाम गांधी मैदान रखने के लिए आवाज उठाई जो सबों पसंद आई और फिर यह गांधी मैदान हो गया जहां कालांतर में विश्व की सबसे ऊंची गांधी मूर्ति की स्थापना हुई।
जब पटना में सचिवालय, कांसिल, राजभवन इत्यादि के लिए शुरुआती दौर में काम करने के लिए कर्मचारी और पदाधिकारियों को ढाका सचिवालय से यहां लाया गया था और उनके रहने के लिए गर्दनीबाग में तम्बूओं की व्यवस्था की गई थी।
बाद में उनके लिए रेलवे लाइन के बगल में क्वार्टर का निर्माण किया गया था।
उन्हीं बाबुओं में से किसी -किसी बाबु के पुत्रों -रिश्तेदारों ने पटना -दानापुर -खगौल में बंगाली मिठाई की दुकान खोली थी जो काफी लोकप्रिय हुई थी।
कुछ दुकानों को तो बड़ाबाबु का दुकान बहुत सालों तक कहा जाता था।
( ये विभिन्न अखबारों से पढ़ा गया और संग्रहीत किया गया है। केवल भिखना पहाड़ी वाला अंश छोड़ कर।)