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शुक्रवार, 27 जनवरी 2017

Dharm & Darshan----Ramcharitmanas Mukhya Ansh !! {5}

वयं त्वाम स्मरामो वयं त्वाम भजामो 
वयं त्वाम जगत साक्षी रूपम नमामः 
सदेकम निधानम निरालंबमीशं 
भावमबोधि पोतं शरण्यं व्रजामः 
कर्मबंध विनाशाय त्वंज्ञानम भक्ति लक्षणाम 
त्वद्यानम परमार्थच देहि में रघुनन्दनम 
न याचे राम राजेंद्रम सुख विषय संभवम 
त्वदपाद कमले सक्ता भक्तिरेव सदास्तुमे 
अहम त्वद भक्तम भक्तानाम त्वद भक्तांच किंकर 
अतो  मामनु गृहिणीत्व मोह यस्व न मा प्रभो 
त्वद पाद पल्हर्षित चित्तवृत्ति 
स्तव नाम संगीत कथा सुवाणी 
त्वद भक्त सेवा नीरतौ करौ में 
त्वदङ्ग संग लभतां मंदगम 
त्वंमूर्ति भक्तां स्वगुरु च चक्षु 
पश्य्त्व जस्त्रम सश्रणोति कर्ण 
त्वज्जन्म कर्माणि च पादयुग्मं 
व्रज्ज्तव जस्त्र तव मन्दिराणि 
अंगनि ते पाद रजो विमिश्र 
तीर्थानि विभृतव्ही शत्रूकेतो 
शिरस्वत्वदीयम भव पह्य जा दये 
नुष्टम पदम्  राम नामत्व ज स्रम 
कायेन वाचा मानसेंद्रियेर्वा 
बुद्ध्यानमना वा प्रकृति स्वभावतः 
करोमि यद् यत सकलं परस्मै 
नाराणयेति समर्पयेतत ततः 
अनायासेन मरणं बिना दैन्यन्य जीवनम 
देहि में कृपया तव भक्ति निरन्तरं 
ॐ असतो मा सद्गमय 
ॐ तमसो मा ज्योतिर्गमय 
ॐ मृत्युरमा अमृत गमय 
आविरारविम ए धी 
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः 
त्वमैव माता पिता त्वमैव
त्वमैव बन्धुश्च सखां त्वमैव
त्वमैव सर्व मम देव देव 
ॐ सहनाभवतु  सहनों भुनत्तु सहवीर्यम करवावहै 
तेजस्वीनाम वधति मस्तु 
मा विद्वषा वहै ॐ शांतिः 
ॐ सद्गुरु नाथाय नमः 
श्री गुरु जय जय सद्गुरु 
श्री सद्गुरु नाथ महाराज की जय 
श्री गुरु शरणं गच्छामी श्री सद्गुरु शरणम गच्छामी 
त्राहिमाम {३}पाहिमाम {३}रक्षमाम 
प्रभो 
रमानाथो रामो रमतु मम चित्ते तू सततं {३}
कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने 
प्रणत क्लेश नाशाय गोविन्दाय नमोनमः 
वासुदेव सुतं देवं कंस चाणूर मर्दनं 
देवकी परमानंदनं कृष्णम वंदे जगत गुरुम 
जिव्हे सदैव भज सुन्दराणि 
नमामि कृष्णस्य मनोहराणि 
समस्त भक्तार्ति विनाशनानि 
गोविन्द दामोदर माधवेत्ती 
सुखावसाने इदमेव ज्ञेयं 
देहावसाने इदमेव जाप्यम 
गोविन्द नारायण माधवेति 
करारविन्देन पदारविंदम मुखारविन्दे विनिवेश यंतम 
वटस्य पत्रस्य पुटे शयानं बालमुकुंद मनसा स्मरामि 
कदम्ब सून कुंडलं सुचारू गंड मण्डलं 
व्रजांक नैकवल्लभम नमामि कृष्ण दुर्लभम 
यशोदया समोदया सगोपया सतंदया 
युतं सुखैक दायकं नमामि गोपनायकम 
कस्तूरी तिलकम ललाटपटले वक्षः स्थले कौस्तुभम 
नासाग्रे वर मौक्तिकं करतले वेणु करे कङ्कणम 
सर्वाङ्गे हरि चंदनं सुललितं कंठेच मुक्ता वली 
गोपस्त्री परि वेष्टितो विजयते गोपाल चूड़ामणी !


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