मेरे बारे में---Nirupama Sinha { M,A.{Psychology}B.Ed.,Very fond of writing and sharing my thoughts

मेरी फ़ोटो
I love writing,and want people to read me ! I some times share good posts for readers.

शुक्रवार, 29 नवंबर 2019

Dharm & Darshan !! Quotations !!{2}

जिस पर हम अविश्वास करते हैं वह यदि हमें धोखा देता है तो ठीक ही करता है हमने भी तो उस पर विश्वास नहीं किया था ----भूषण वनमाली
संत पहाड़ की वह चोटी है जिन पर उषा की किरणे पड़ने लगी हैं जबकि नीचे घाटी में अभी अन्धकार है
जीवन भी एक फिल्म की तरह है इसमें महत्वपूर्ण बात यह नहीं है कि कितनी लम्बी है बल्कि यह कि कितनी अच्छी है
मूर्ति वन्दनीय है ,इसलिए नहीं कि उसमे देवता हैं अपितु इसलिए कि उसने तराशे जाने का दर्द सहा है ---रमेश तिवारी
जिसने दुर्भाग्य का मुकाबला नहीं किया उसने न तो स्वयं को पहचाना ,न अपने गुणों को ---मैले
फूल का सौंदर्य पराग है जीवन का सौंदर्य सच्चाई ---कालिदास
लोक कथा ---अर्धरात्रि की निस्तब्ध वेला में मार्ग से जा रहे साधु पर कुत्ता जोर जोर से भौंकने लगा साधु तिरस्कार से बोला "अवगुणी क्यों भौंकता है ?कुत्ता पूछ बैठा ,"महाराज आपने मुझे अवगुणी क्यों कहा ?साधु ने कहा "तू अर्धरात्रि में भौंक कर स्वामी को जगाता है,मार्ग में सोता है ,और साधु को देख कर भौंकने लगता है ,इतने अवगुण क्या काम हैं ?
कुत्ता विनम्रता से बोला "रात में भौंक कर स्वामी को इसलिए जगाता हूँ कि उसके जीवन और संपत्ति की रक्षा हो सके ,राह में इसलिए सोता हूँ कि अनगिनत साधु संत आते जाते हैं की चरण राज मिल जाए तो मुझे मुक्ति मिले साधु को देख कर इसलिए भौंकता हूँ कि वैराग्य स्वीकार करके भी वे घर घर हाथ क्यों पसरते हैं मैं उनसे पूछता हूँ अगर तुम्हे ईश्वर पर विश्वास नहीं तो तुम साधु क्यों हुए और अगर है तो मनुष्य से क्यों माँगते हो ?

अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनुमानश्च विभीषणः
कृपः परशुरामश्च सप्तते चिरजीवनः
सप्तैतानी स्मरे नित्यं मार्कण्डेय मथाष्टमम्
जीवते वर्ष शतम साग्राम अपमृत्यु विवर्जतिः

It is 10% of life we can make make of it and it is 90% of it how we take it
नलिनी दलगत जलमति तरलं
तद्वतज्जीव नम मतिशय चपलम

वर्त्तमान की विषम दाह में ------
रे मन व्यथित न हो जाना तू
चल उठ कुछ धीरज धरता जा

देख विकल्पों के मत सपने
यहाँ नहीं होते सब अपने
वर्तमान की विषम दाह में
मन का कंचन दे कुछ तपने
डर मत शूलों से इतना तू
होकर निर्भय डग भरता जा

कलियों का रास भीनी पलकें
या अतीत की मधुमय झलकें
मोड़ न दें संयम की धारा
रजनी की कुछ बिखरी अलकें
रे मन विचल न हो जाना तू
पथ से समझौता करता जा

रे मन व्यथित न हो जाना तू
चल उठ कुछ धीरज धरता जा ---मदन देवड़ा

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Amazing & Inspiring !!

 *Right Tools of Life* The kitchen tap was leaking again. With a sigh, I called a plumber._ _A few minutes later, a middle-aged man walked i...

Grandma Stories Detective Dora},Dharm & Darshan,Today's Tip !!