मेरे बारे में---Nirupama Sinha { M,A.{Psychology}B.Ed.,Very fond of writing and sharing my thoughts

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शुक्रवार, 29 नवंबर 2019

Dharm & Darshan !! Ram Vanshavali !!

खुला रह कर प्रेम भटक जाता है
आवारा रह कर सूख जाता है
बंधन ही में वह सार्थक होता है
बांध कर ही वह पनपता है

भगवन के लिए कार्य करना शरीर से प्रार्थना करना ,भगवान की ओर मुङो तुम्हारे सब दुःख दूर हो जायेंगे ,भगवान जो दे उसे सदा प्रसन्नता पूर्वक स्वीकार करो ,भगवान में हमारा विश्वास बाह्य अवस्थाओ पर आधारित नहीं होना चाहिए ,हमारा सारा जीवन एक भगवद अर्पित अर्चना होना चाहिए भगवान से वास्तव में प्रेम करने के लिए आसक्तियों से ऊपर उठाना चाहिए ,हमें भगवान की कृपा पर भरोसा करना चाहिए तथा सब अवस्था में उसे सहायता के लिए बुलाना चाहिए ---अरविन्द वचनामृत
साहस आत्मा की कुलीनता का चिन्ह है
क्रोध और अपमान से ऊपर उठकर मनुष्य वस्तुतः महान बन जाता है
तुम भय से पूर्णतः केवल तभी मुक्त हो सकते हो जब की तुम अपने अंदर से सारी हिंसा बाहर निकाल दो
अपना दोष स्वीकार करना उच्चतम साहस का रूप है
जिसने असीम को चुना है वह असीम के द्वारा चुन लिया गया है
मुस्कराहट का कठिनाइयों पर वही प्रभाव पड़ता है जो सूर्य का बादलों पर ,वह उन्हें भगा देती है
या जगजीवन को है यहै फल
जो छल छाँड़ि भजै रघुराई
सोधि के संत म्हणतं हूँ
पद्माकर बात यहै ठहराई
ह्यै रहे होनी प्रयास बिना
अनहोनी न ह्ये सके कोटि उपाई
विधि भाल में लीक लिखी सो बढ़ाई बढ़ै
न घटे न घटाई

स्वामिन्नमस्ते नत लोक बंधो
कारुण्य सिन्धो ! पतितं भवाब्धौ
मामुद्ध रात्मीय कटाक्ष दृष्टया
ऋज् यति कारुण्य सुधा भी वृष्ट्या -----हे शरणागत वत्सल करुणासागर गुरो ! आपको नमस्कार है। संसार सागर में पड़े हुए मेरा ,आप अपनी सरल तथा अतिशय करुणामय अमृत वर्षा करने वाली कृपा दृष्टि से उध्द्दार कीजिये। मैं आपकी शरण हूँ

अर्थातुराणाम् न गुरुर्न बन्धुः
कामातुराणाम् न भयं न लज्जा
विद्यातुराणाम् न सुझं न निद्रा
क्षुधातुराणाम् न रुचिर्नवेला

संत के हाथ खली और हृदय भरा पूरा होता है ---सूफी संत
एक संत ने कहा है कि जबतक किसी में अज्ञान रहता है तभी तक वह दूसरे की सेवा लेता है परन्तु ज्यों ही ज्ञान आता है ,सेवा करने लगता है ---पुष्प सौरभ
भूल से भी सीखा जा सकता है पर इसका मतलब यह नहीं कि हम एक के बाद दूसरी भूलें करते जाएँ और उनके नाम बदलते जाएँ ---महात्मा गांधी
भाग्य के हाथ में सबकुछ है लेकिन रुकना कभी श्रेयस्कर हुआ है ?सांस रुकती है तो उसे मौत कहते हैं ,गति रुकती है तब भी मौत है हवा रुकती है वह भी मौत है ,जीवन चलने का नाम है ---जैनेन्द्र कुमार
प्रभु मिलन की व्याकुलता जितनी तीव्र होगी मंज़िल उतनी ही नज़दीक होती चली जायेगी
जब अन्य व्यक्तियों के साथ आप कुछ खाएं तो इच्छा यह होनी चाहिए की मुझ कम मिला तो हर्ज़ नहीं अन्य लोगों को अधिक मिले
महाभारत का प्रथम श्लोक ----
नारायणं नमस्कृयतम नरं चैव नरोत्तमम्
देवी सरस्वती चैव ततोजयमुदीरयेत्

गलती मान लेना झाड़ू लगाने सा काम है,यह गन्दगी को बुहार कर सतह को साफ़ कर देता है
हम यह सोचने की गलती ना करें कि हम कभी भूल कर ही नहीं सकते ,गलती हर इंसान से होती है पता चलते ही गलती या पाप को कबूल कर लेने के माने है उसे बाहर निकाल फेंकना ---महात्मा गांधी
जिंदगी के उज्जवल कागज पर कभी कोई ऐसा धब्बा लग जाता है जो कागज के नष्ट होने पर ही स्वयं नष्ट होता है
विद्या विवादाय धनम मदाय शक्तिः परेषां पर पीड़नाय
खलस्य साधो विपरीत मेततः ज्ञानाय दानाय च रक्षणाय

समुद्र मन्थने ले भे हरीरलक्ष्मीम,हरोर्विषं
भाग्यं फलति सर्वत्रः न च विद्या न च पौरुषं

गुणवन्तः क्लिंषयते प्रायेण
भवन्ति निर्गुणः सुखिनः
बन्धनम् मायन्ति शुकाः
यथेष्ट संचारिणः काकाः

वंशावली ----भगवान राम के पूर्वजों की
भगवान राम के आद्य पुरुष ब्रम्हा जी थे ----
ब्रम्हा के मारीच
मारीच के कश्यप
कस्यप के बिवस्वान
बिवस्वान के मनु
मनु के इक्ष्वाकु
इक्ष्वाकु के कुक्षी
कुक्षी के विकुक्षि
विकुक्षि के वाण
वाण के अनरण्य
अनरण्य के पृथु
पृथु के त्रिशंकु
त्रिशंकु के धुन्धुमार
धुन्धुमार के युवनाश्व
युवनाश्व के मान्धाता
मान्धाता के सुसन्धि
सुसन्धि के ध्रुवसन्धि
ध्रुवसन्धि के भरत
भरत के आसित
असित के सगर
सगर के असमंजस
असमंजस के अंशुमान
अंशुमान की दिलीप
दिलीप के भागीरथ
भागीरथ के काकुस्थ
काकुस्थ के रघु
रघु के प्रबुद्ध
प्रबुद्ध के शंखण
शंखण के सुदर्शन
सुदर्शन के अग्निवर्ण
अग्निवर्ण के शीघ्रग
शीघ्रग के मरू
मरू के प्रश्रुश्र व
प्रश्रुश्र व के अम्बरीष
अम्बरीष के नहुष
नहुष के ययाति
ययाति के नाभाग
नाभाग के अज
अज के दशरथ
दशरथ के राम ,लक्ष्मण,भरत शत्रुघ्न

सदा न रहता फूल डाल पर,सदा न सरिता में पानी
है वियोग परिणाम मिलन का ,यह दुनिया आणि जानी ---विश्वनाथ सिंह

अच्छे मनुष्य तो वो हैं जो बुरों को भी निभा ले जाते हैं यदि नहीं तो मनुष्य जन्म ही बेकार है ---पुष्प सौरभ
काव्य शास्त्र विनोदेन कलो गच्छति धीमताम
व्यसनेनच मूर्खाणाम् निद्रया कलहेन वा

हानि लाभ जीवन मरण यश अपयश विधि हाथ
सुखार्थी व त्यजेत विद्या ,विद्यार्थी वा त्यजेत सुखम
सुखार्थिनः कुतो विद्या विद्यार्थिनः कुतो सुखम

क्षण त्यागे कुतो विद्या
कण त्यागे कुतो धनम

काक चेष्टा बकौ ध्यानं श्वान निद्रा तथैव च
अल्पहारी गृहत्यागी विद्यार्थिनः पांच लक्षणम

तह विद्या प्रणीयतेन परी प्रश्ने न सेवया
सूर्योदये चा स्तमिते शयनं
विमुञ्चति श्री यदि चक्रपाणि

आलस्य हि मनुष्यम शरीरस्थो महा रिपुः
मूकस्तु को वा बधीरस्तु को वा
वक्तुम् न युक्तं समये समर्थः

मानो तो शंकर ,नहीं तो कंकर

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