मेरे बारे में---Nirupama Sinha { M,A.{Psychology}B.Ed.,Very fond of writing and sharing my thoughts

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शुक्रवार, 29 नवंबर 2019

Sher Behatreen !! Nazm !! Gazal !! {19}

बुरी आदतें तुम्हे नहीं छोड़ती या तुम उन्हें नहीं छोड़ते
सारी दिनिया आहना वासिद,जैसी निगाहें वैसे नज़ारे
हमने देखा ज़माने को बदलते लेकिन
उसके बदले हुए तेवर देखे नहीं जाते

कसमे हम अपनी जान की खाए चले गए
फिर भी वो ऐतबार न लाये चले गए

देखा तो ख़ुशी के फूल खिले ,सोचा तू गमो की धुल उडी
कहते हैं बहारा लोग जिसे ,वह इक साया पतझर का है ---क़ातिल शिफ़ाई

बाद मुद्दत के मिलने में झिझकते हैं दिल
कुछ तुम बढ़ो कुछ हम बढ़ें

अगर नफरत है हमसे तो नफरत इस कदर कर लो
तुम्हारा मुंह जिधर है पीठ भी अपनी उधर कर लो

ग़ज़ल ----
दुनिया जिसे कहते हैं बच्चे का खलौना है
मिल जाए तो मिटटी है ,खो जाए तो सोना है
अच्छा सा कोई मौसम ,तनहा सा कोई आलम
हर वक़्त का रोना तो बेकार का रोना है
बरसात का बादल तो दीवाना है क्या जाने
किस राह से बचना है ,किस छत को भिगोना है
ये वक़्त जो तेरा है ये वक़्त जो मेरा है
हर गाम पे पहरा है ,फिर भी इसे खोना है
गम हो कि ख़ुशी दोनों कुछ दूर के साथी हैं
फिर रास्ता ही रास्ता है,हँसाना है न रोना है
आवारा मिज़ाजी ने फैला दिया आँगन यों
आकाश की चादर है धरती का बिछौना है ---निदा फ़ाज़ली

सर से सीने की तरफ ,पेट से पांवों की तरफ
इक जगह हो तो कहूँ ,दर्द इधर होता है

बचपन ही से किया मुझे गम से शिकस्त पा
तै होंगी कैसे मंज़िलें या रब ! शबाब की
गर्दिश रही नसीब में या रब तमाम उम्र
"सागर" बना के क्यों मेरी मिटटी खराब की ---सागर

रास्ते में रुक के दम ले लूँ मेरी आदत नहीं
लौट कर वापस चला जाऊं मेरी फितरत नहीं
और कोई हमनवा मिल जाए ये किस्मत नहीं
ए ग़मे दिल क्या करूँ ,ए वहशते दिल क्या करूँ ----मज़ाज

कभी शाखों सब्जाओं बर्ग पर ,कभी गुंचा ओ गुलो खार पर
मैं चमन में चाहे जहाँ रहूँ ,मेरा हक़ है फैसले बहार पर ---जिगर

ज़मीन के तह में भी उसको जगह न मिल पाई
जो आसमान को पाँव की धूल कहता था

यह मंज़िल से कह दो मुझे अब न ढूंढे
मेरी रहबरी खुद जुनूं कर रहा है ---चाँद अल्वी

हम रूठ कर खुद उनकी ,महफ़िल से निकल आये
अब दिल को ये सदमा है किस दिल से निकल आये

बार मज़ारे मां गरीबां नै चिराग़े नैं गुले
नैं परे परवानः सोज़द ,नै सदाए बुलबुले
मुझ गरीब की कब्र पर न तो कोई दिया है न ही कोई फूल है इसलिए यहाँ न तो परवानो के पर जलते हैं और न बुलबुलों की पुकार ही सुनाई देती है ---जेबुन्निसा { औरंगज़ेब की बेटी}

फ़रिश्ते मुब्तला -ए - आज़माइश हों तो चींख उट्ठे
यह इंसां है जो सहता आ रहा है इम्तहां इतने !

हर कदम पर इक नई मंज़िल की ख्वाहिश है तुझे
ऐ ! दिले आवारा ! ऐ पागल ! ज़रा आहिस्ता चल !---ज़मील युसूफ

लोग कहते हैं मोहब्बत से तमन्ना जिसको
मेरी शह-रग उसी तलवार से काट जायेगी ---आरिफ अब्दुल मतीन

हमने सौ रंग भरे ज़हन की तस्बीरों में
फिर भी कागज़ पर न कोई रंग न उभरा अपना ---सलाहुद्दीन नदीम

इन बंद बंद कमरों में घुटने लगा है दम
दरवाज़ा खोल दीजिये ताज़ा हवा लगे ---अख्तर होशियारपुरी

शायद इस तरह मेरे दिल में खिले ताज़ा गुलाब
नए नश्तर मेरे पहलू में उतारे कोई ----अतहर नफीस

मेरा चेहरा भी अब नहीं मेरा
अब किन आँखों से मै तुझे देखूं ---शबनम रूमानी

लिबास चेहरा बदन ,घर सभी हैं शीशे के
कहाँ छिपूँ कि किसी को नज़र न आऊं मैं ---फारुख शफक

मरते वक़्त या मरने से पहले
तेरे बीमार को है अज़्मे सफर
आज की रात ,
नब्ज़ चल बसने की देती है खबर
आज की रात

आह करने से तो सब लोग खफा होते हैं
ए नसीमे सहरी हम तो बिदा होते हैं

बीमारे मोहब्बत ने अभी याद किया था
खूब आ गई ऐ मौत ! तेरी उम्र बड़ी है !

आखिर है उम्रे जीस्त से दिल अपना सेर है
पैमाना भर चुका है ,छलकने की देर है

नज़में ए सीमतन
सूरत जो दिखलाई तो क्या
वक़्ते मुरदन दौलते कारूं
भी हाथ आई तो क्या ?

कहते हैं आज ज़ौक़ जहाँ से गुज़र गया
क्या खूब आदमी था ,खुद मगफिरत करे

दमे वापसी बर सरे राह है
अज़ीज़ों अब अल्लाह ही अल्लाह है

वो धूप बेहतर थी इस छाँह घनेरी से
वो जिस्म जलाती थी ,ये रूह जलाये है ---सागर आज़मी

बना कर अपने हाथों आशियाँ बर्बाद करते हैं
जो तेरा काम था वो भी हम ऐ सैय्याद करते हैं

अपने रोने से अगर असर होता
कतरा ए अश्क भी गुहर{मोती} होता
जिनके नाम {खत}पहुँचते हैं तुझ तक
काश मैं उनका नामाबर {पत्रवाहक} होता

मक्के गया मदीने गया कर्बला गया
जैसा गया था वैसा ही चल फिर के आ गया ---मीर

देखे जिसे राहे फना की तरफ रवां
तेरी महल सरां का यही रास्ता है क्या ?---हसरत मोहानी

हो फरिश्ता भी तो नहीं इन्सां
दर्द थोड़ा बहुत न हो जिसमे ---हाली साहब

जिस सिम्त नज़र कर देखे है ,उस दिलबर की फुलवारी है
कहीं सब्ज़ी की हरियाली है ,कहीं फूलों की गुलकारी है
दिन रात मगन खुश बैठे हैं और आस उसीकी भारी है
बस आप ही वह दातारी है और आप ही वह भंडारी है ---नज़ीर

कोई दुनिया से भला क्या मांगे
वह तो बेचारी आप नंगी है ---इंशा

दिल इबारत से चुराना और ज़न्नत की तलब
कामचोर ! इस काम पर किस मुंह से उजरत { पारिश्रमिक} की तलब---जौक

सब तरफ से दीदए बातिन को जब यकसूं किया
जिसकी ख्वाहिश थी वही हरसूं नज़र आने लगा ---नासिख़

जहाद उसको नहीं कहते कि होवे खून इंसां का
करे जो क़त्ल अपने नफ़्से काफिर का व गाज़ी है ---अख्तर
जहाद:धर्मयुद्ध,नफ़्से :विषय वासनाओं को

कतरा दरिया में मिल जाए तो दरिया हो जाए
काम अच्छा है वो जिसका मआप {अंत } अच्छा है ---ग़ालिब

सारी खुदाई एक तरफ ,फज़ले इलाही एक तरफ ---हाली
मुझे साहिल तक खुदा पहुंचाएगा ऐ नाखुदा
अपने किश्ती की बयां तुझसे तबाही क्या कहूँ ---अमीर मोमिन

हमने बहुत ढूंढा न पाया
अगर पाया तो खोज अपना न पाया

न सुनो गर बुरा कहे कोई न कहो गर बुरा करे कोई
रोक लो गर गलत चले कोई ,बख्श दो गर खता करे कोई ---ग़ालिब

मूसा ने यही अर्ज़ कि बारे खुद
मक़बूल तेरा कौन बन्दों के सिवा
इरशाद हुआ बाँदा हमारा वह है
जो ले सके और न ले बदल बद का ---हाली

राम समझ रहमान समझ ले
धर्म समझ ईमान समझ ले
मस्जिद कैसी मंदिर कैसा
ईश्वर का अस्थान समझ ले
कर दोनों की सैर
बाबा कोई नहीं है गैर ---बिस्वानी

मिल्लते रास्तों के हैं सब हेर फेर
सब जहाज़ों का है लंगर एक घाट

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