मेरे बारे में---Nirupama Sinha { M,A.{Psychology}B.Ed.,Very fond of writing and sharing my thoughts

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शुक्रवार, 29 नवंबर 2019

Sher Behatreen !! Nazm !! Gazal !! {22}

कभी छोड़ी हुई मंज़िल भी याद आती है राही को
खटक सी है जो सीने में ग़मे मंज़िल न बन जाए

आँखों में आंसूं दिल में गम,जीने को जी रहे हैं हम
मौत से पहले ज़िन्दगी गम से निजात पाये क्यों

ए मेरे बदनसीब दिल ,देख ये तेरी भूल है
तू तो ख़िज़ाँ का फूल है ,तुझपे बहार आये क्यों

शाम होते ही चिरागों को बुझा देता हूँ
दिल ही काफी है तेरी याद में जलने को ----रियाज़ खैराबादी

प्यास ही जिंदगी है ,आग ही रौशनी है
एक बुझ गई तो खाक ,दूसरी बुझ गई तो राख ---प्येन चो

वे तोड़ते हैं तो कलियाँ शिगुफ्ता होती हैं
वे रोंदते हैं तो सब्जा निहाल होता है

दिल की बिसात क्या थी निगाहे जमाल में
एक आइना था टूट गया देखभाल में ---सीमाब अकबराबादी

इश्क सुनते थे जिसे हैंवो यही है शायद
खुद ब खुद दिल में है इक शख्स समय जाता। ---हाली

दिल को खोया है कल जहाँ जाकर
जी में है आज जी भी खो आऊँ---अहसान

मेरा दिल किसने लिया नाम बताऊँ किसका
मैं हूँ या आप हैं घर में कोई आया न गया ---बहार

नेकी के काम कीजिये यही जिंदगी है
बन्दों की सेवा कीजिये यही बंदगी है

जब गले से जा लगे
सब गीले जाते रहे

न मिला है न मिलेगा मुझे आराम कहीं
मैं मुसाफिर हूँ मेरी सुबह कहीं शाम कहीं

अब तक न खबर थी मुझे उजड़े हुए घर की
तुम आए तो घर ये सरो सामां नज़र आया ---जोश मलीहाबादी

तुमसे अब मिलके तअज्जुब है कि अरसा इतना
आज तक तेरी जुदाई में क्यों कर गुजरा ---हसरत मोहानी

जमा हुए है कुछ हसीं गिर्द मेरी मज़ार के
फूल कहाँ से खिल गए दिन तो न थे बहार के --आरज़ू लखनवी

बाद ए फ़ना हम अपनी ख़ाक से यह काम लेते हैं
के बन के गुबारे राह उनका दामन थाम लेते हैं

न गुल ए नगम हूँ ,न पर्द ए साज़
मैं हूँ अपनी शिकस्त की आवाज़ ----ग़ालिब

नियाज़ इश्क को समझा ,है क्या वाइज़े नांदा
हज़ारों बन गए काबे ,जहाँ मैंने जबीं रख दी ---असगर गोंडवी

सफाइयां हो रही हैं बाहर
और दिल हो रहे हैं मैले
अँधेरा छा जाएगा जहाँ में
अगर यही रौशनी रहेगी ---अकबर इलाहाबादी

हाज़िर न हो हुज़ूर में ,किसकी है यह मजाल
आप आइये तो आप में हम आये जाते हैं ---हफ़ीज़ जौनपुरी

चोट देकर आजमाते हो दिले आशिक़ का सब्र
काम शीशे से नहीं लेता कोई फौलाद का ---साक़िब लखनवी

बस एक नज़र और अब खत्म है किस्सा
फिर होगी न तुमको मेरे मरने की खबर भी ---नज़र लखनवी

चलते चलते किस नज़र से उसने देखा क्या कहूँ
दिल के अफ़साने में एक टुकड़ा नया शामिल हुआ

है खौफ अगर जी में तो है तेरे गजब का ,
औ दिल में भरोसा है तो है तेरे करम का

किस किस की फ़िक्र कीजिये किस किस को रोइए
आराम बड़ी चीज है मुंह ढक के सोइये

वह बज़्म में हैं यहाँ कोताह दस्ती में है महरूमी
जो बढ़ कर खुद उठाले हाथ में मीना उसी का है

सब तरफ से दीदाए बातिन को जब यकस किया
जिसकी ख्वाहिश थी वही हरसू नज़र आने लगा

मंज़िल से हमें काम नहीं ए काफिले वालों
हम साहिबे मंज़िल के कदम देख रहे हैं

समंदर कर दिया नाम उसका नाहक सबने कह कह कर
हुए थे जमा कुछ आंसूं ,मेरी आँखों से बह बह कर

सितारों से आगे जहाँ और भी हैं
अभी इश्क के इम्तहां और भी हैं

हम पर जो करम है तो अदू पर भी नवाज़िश
क्या खाक रहे क़द्र तेरे कोलो कसम की

वो क़द्र क्या जाने ,दिले आशिक़ाँ की
न आलिम न फ़ाज़िल ,न दान न बीना----हज़रत मोहानी

बस झिझक यही है हाले दिल सुनाने में
कि तेरा भी ज़िक्र आएगा इस फ़साने में

चला जाता हूँ हँसता खेलता मौजे हवादिस से
अगर आसानियाँ हों जिंदगी दुश्वार हो जाये---असगर गोंडवी

जिंदगी सोज़ बने साज़ न होने पाये
दिल तो टूटे मगर आवाज़ न होने पाये

मायूस होके चाँद सितारे चले गये
आये न तुम तो ये भी सहारे चले गये---जिगर मुरादाबादी

साया हूँ तो फिर साथ न रखने का सबब क्या
पत्थर हूँ तो रास्ते से हटा क्यों नहीं देते ----अमृत जी बरलस

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