सुहबते ना जिंस से बदतर नहीं कोई अजाब
सुहबतें ना जिंस कहलाता है फैले का सवाब !
सूखते ही आंसुओं के नूर आँखों से गया
बुझ ही जाते हैं दिये जिस वक़्त सब रोगन जला!---मीर
सब गए होश ओ सब्र तब ओ तवां
लेकिन ए दाग ए दिल से तू न गया !
दिल की वीरानी का क्या मज़कूर है
यह नगर सौ मरतबा लूटा गया !
कभी ए हकीकत ए मुन्तज़र नज़र आ लिबास मिज़ाज़ में
कि हज़ारों सिजदे तड़प रहे हैं मेरी जबीने नयाज़ में ----इक़बाल
जख्मों से कलेजे को भरदे
पामाल सुकूने दिल कर दे
ओ नाज़ भरी चितवन वाले
आ और मुझे बिस्मिल कर दे ---बेदम
माँगा करेंगे अब से दुआ हम भी हिज़्र की ,
आखिर को दुश्मनी है असर को दुआ के साथ ! ----मोमिन
ये ठान ली है के जब तक वो कोसने देंगे
उठे रहेंगे मेरे हाथ भी दुआ के लिए !---दाग
यही दिन हैं दुआ ले किसी के कल्बे मुज़तर से
जवानी आ नहीं सकती मेरे जां फिर नए सर से !----अमीर मीनाई
जान तुम पर निसार करता हूँ
मैं नहीं जानता दुआ क्या है !------ग़ालिब
सब कुछ खुद से मांग लिया तुझको मांग कर
अब क्या उठेंगे हाथ मेरे इस दुआ के बाद !-----अनजान
गिला लिखूं मैं और तेरी बेवफाई का
लहू में गर्क सफीना हो आशनाई का !----सौदा
नाले ने तेरे बुलबुल नाम चश्म न की गुल की
फ़रियाद मेरी सुनकर सैयाद बहुत रोया !---सौदा
चाहे तो तुझको चाहे ,देखें तो तुझको देखें
ख्वाहिश दिलों की तुम हो ,आँखों की आरज़ू तुम ----मीर
मकानी हूँ आज़ादी मकां हूँ
जहाँ में हूँ कि खुद सारा जहाँ हूँ ---इक़बाल
सिपास शर्ते अदब है वर्ना करम है तेरा सितम से बढ़ कर
ज़रा सा इक दिल दिया है वो भी फरेब खुदा है आरज़ू का !
लेके खुद पीरे मुग्रा,हाथ में मीना आया
मैं केशो शर्म कि इस पर भी न पीना आया
चाहें तो तुमको चाहें ,देखें तो तुमको देखें
ख्वाहिश दिलों की तुम हो ,आँखों की आरज़ू तुम --मीर
चल भी दिए वो छीन के ,सब्रो करारे दिल
हम सोचते ही रह गए ,ये माजरा क्या है ----हसरत मोहानी
होठों के पास आये हंसी ,क्या मजाल है
दिल का मुआयना है कोई दिल्लगी नहीं ---बहज़ाद लखनवी
हाथ हटता नहीं है दिल से खुमार
हम उन्हें किस तरह सलाम करें ---खुमार बाराबंकवी
है याद वो गुफ्तगू की तल्खी लेकिन
आज़ाद वो गुफ्तगू थी क्या याद नहीं ---जगन्नाथ आज़ाद
दे रहा हो आदमी का दर्द जब आवाज दर दर
तुम रहे चुप तो कहो सारा ज़माना क्या कहेगा
खुदी का नशमीन तेरे दिल में है
फलक जिस तरह आँख के तिल में है
खूने रहमत ना हो सका हमसे
यानी तरके गुनाह कर न सके
हर एक ज़र्रे को सज़दा कर के भी महरूमे मंज़िल हूँ
हज़ारों काबे आये एक बुतखाना नहीं आया
कुछ इस अदा से आज वो पहलूनशीन रहे
जब तक हमारे पास रहे हम नहीं रहे
इतना रहे ख़याल सताने के साथ साथ
हम भी बदल रहे हैं ज़माने के साथ साथ !
हुज़ुमे गम मेरे हमराह था जब मैकदे पहुंचा
मगर इक बेखुदी हमराह थी जब लौट कर आया
कहानी मेरी रुद दादे --जहाँ मालूम होती है
जो सुनता है उसीकी दास्तान मालूम होती है
नहीं है दोस्त अपना यार अपना मेहरबान अपना
सुनाऊँ किसको गम अपना अलम अपना बयां अपना
एक इंसान किसी इंसान को क्या देता है
आदमी सिर्फ बहाना है ख़ुदा देता है
आगे चल कर हिसाब होता है
इसलिए बेहिसाब पि लीजिये
मुझको शिकवा है अपनी आँखों से
तुम न आये तो नींद क्यों आई
गुंचे निकले गुल बने बिखरे परेशां हो गए
एक शब और उसमे इतने इंकलाबी ज़िन्दगी
अब हक़ीक़ी है मज़ाज़ी भी खुदा बख्शेगा
इश्क में इसके सिवा और तो मंज़िल ही नहीं
वह मुझे भूलने की धुन में है
यह मेरी फतह है शिकस्त नहीं
वादा किया था फिर भी न आये मज़ार पर
हमने तो जान दी थी इसी ऐतबार पर
गरेबां चाक कर लेना बड़ा आसान है लेकिन
बड़ी उसकी मुसीबत है जिसे सीना नहीं आता
यह क्या किया कि खुदी को मिटा दिया मैंने
जहाँ भी देखा उन्हें सर झुका दिया मैंने
इससे बढ़ कर दोस्त कोई दूसरा होता नहीं
सब जुदा हो जाएँ लेकिन गम जुदा होता नहीं
दूर होती है कहीं मोहब्बत की खलिश
उम्र दरकार है इस ज़ख्म के भर जाने को
मोहब्बत है मुझे बुलबुल के गम अंगेज नालों से
चमन में रह कर मैं फूलों का शैदा हो नहीं सकता
दाग को कौन देने वाला था
जो दिया है खुदा दिया तूने
कल तो कहते थे कि बिस्तर से उठा जाता नहीं
आज दुनिया से चले जाने की ताकत आ गई
हम उसी को ख़ुदा समझते हैं
जो मुसीबत में याद आ जाए
कभी गुलशन में रहते थे ,कफ़स में अब गुज़रती है
खता सैयाद की क्या है हमारा आबोदाना है
हम बावफा थे इसीलिए नज़रों से गिर गए
शायद तुम्हे तलाश किसी बेवफा की है
निगाहें लुत्फ़ से एक बार मुझको देख लेते हैं
मुझे बेचैन करना जब उन्हें मंज़ूर होता है
तसव्वुर में चले आते तुम्हारा क्या बिगड़ जाता
तुम्हारा पर्दा रह जाता ,हमें दीदार हो जाता
सुहबतें ना जिंस कहलाता है फैले का सवाब !
सूखते ही आंसुओं के नूर आँखों से गया
बुझ ही जाते हैं दिये जिस वक़्त सब रोगन जला!---मीर
सब गए होश ओ सब्र तब ओ तवां
लेकिन ए दाग ए दिल से तू न गया !
दिल की वीरानी का क्या मज़कूर है
यह नगर सौ मरतबा लूटा गया !
कभी ए हकीकत ए मुन्तज़र नज़र आ लिबास मिज़ाज़ में
कि हज़ारों सिजदे तड़प रहे हैं मेरी जबीने नयाज़ में ----इक़बाल
जख्मों से कलेजे को भरदे
पामाल सुकूने दिल कर दे
ओ नाज़ भरी चितवन वाले
आ और मुझे बिस्मिल कर दे ---बेदम
माँगा करेंगे अब से दुआ हम भी हिज़्र की ,
आखिर को दुश्मनी है असर को दुआ के साथ ! ----मोमिन
ये ठान ली है के जब तक वो कोसने देंगे
उठे रहेंगे मेरे हाथ भी दुआ के लिए !---दाग
यही दिन हैं दुआ ले किसी के कल्बे मुज़तर से
जवानी आ नहीं सकती मेरे जां फिर नए सर से !----अमीर मीनाई
जान तुम पर निसार करता हूँ
मैं नहीं जानता दुआ क्या है !------ग़ालिब
सब कुछ खुद से मांग लिया तुझको मांग कर
अब क्या उठेंगे हाथ मेरे इस दुआ के बाद !-----अनजान
गिला लिखूं मैं और तेरी बेवफाई का
लहू में गर्क सफीना हो आशनाई का !----सौदा
नाले ने तेरे बुलबुल नाम चश्म न की गुल की
फ़रियाद मेरी सुनकर सैयाद बहुत रोया !---सौदा
चाहे तो तुझको चाहे ,देखें तो तुझको देखें
ख्वाहिश दिलों की तुम हो ,आँखों की आरज़ू तुम ----मीर
मकानी हूँ आज़ादी मकां हूँ
जहाँ में हूँ कि खुद सारा जहाँ हूँ ---इक़बाल
सिपास शर्ते अदब है वर्ना करम है तेरा सितम से बढ़ कर
ज़रा सा इक दिल दिया है वो भी फरेब खुदा है आरज़ू का !
लेके खुद पीरे मुग्रा,हाथ में मीना आया
मैं केशो शर्म कि इस पर भी न पीना आया
चाहें तो तुमको चाहें ,देखें तो तुमको देखें
ख्वाहिश दिलों की तुम हो ,आँखों की आरज़ू तुम --मीर
चल भी दिए वो छीन के ,सब्रो करारे दिल
हम सोचते ही रह गए ,ये माजरा क्या है ----हसरत मोहानी
होठों के पास आये हंसी ,क्या मजाल है
दिल का मुआयना है कोई दिल्लगी नहीं ---बहज़ाद लखनवी
हाथ हटता नहीं है दिल से खुमार
हम उन्हें किस तरह सलाम करें ---खुमार बाराबंकवी
है याद वो गुफ्तगू की तल्खी लेकिन
आज़ाद वो गुफ्तगू थी क्या याद नहीं ---जगन्नाथ आज़ाद
दे रहा हो आदमी का दर्द जब आवाज दर दर
तुम रहे चुप तो कहो सारा ज़माना क्या कहेगा
खुदी का नशमीन तेरे दिल में है
फलक जिस तरह आँख के तिल में है
खूने रहमत ना हो सका हमसे
यानी तरके गुनाह कर न सके
हर एक ज़र्रे को सज़दा कर के भी महरूमे मंज़िल हूँ
हज़ारों काबे आये एक बुतखाना नहीं आया
कुछ इस अदा से आज वो पहलूनशीन रहे
जब तक हमारे पास रहे हम नहीं रहे
इतना रहे ख़याल सताने के साथ साथ
हम भी बदल रहे हैं ज़माने के साथ साथ !
हुज़ुमे गम मेरे हमराह था जब मैकदे पहुंचा
मगर इक बेखुदी हमराह थी जब लौट कर आया
कहानी मेरी रुद दादे --जहाँ मालूम होती है
जो सुनता है उसीकी दास्तान मालूम होती है
नहीं है दोस्त अपना यार अपना मेहरबान अपना
सुनाऊँ किसको गम अपना अलम अपना बयां अपना
एक इंसान किसी इंसान को क्या देता है
आदमी सिर्फ बहाना है ख़ुदा देता है
आगे चल कर हिसाब होता है
इसलिए बेहिसाब पि लीजिये
मुझको शिकवा है अपनी आँखों से
तुम न आये तो नींद क्यों आई
गुंचे निकले गुल बने बिखरे परेशां हो गए
एक शब और उसमे इतने इंकलाबी ज़िन्दगी
अब हक़ीक़ी है मज़ाज़ी भी खुदा बख्शेगा
इश्क में इसके सिवा और तो मंज़िल ही नहीं
वह मुझे भूलने की धुन में है
यह मेरी फतह है शिकस्त नहीं
वादा किया था फिर भी न आये मज़ार पर
हमने तो जान दी थी इसी ऐतबार पर
गरेबां चाक कर लेना बड़ा आसान है लेकिन
बड़ी उसकी मुसीबत है जिसे सीना नहीं आता
यह क्या किया कि खुदी को मिटा दिया मैंने
जहाँ भी देखा उन्हें सर झुका दिया मैंने
इससे बढ़ कर दोस्त कोई दूसरा होता नहीं
सब जुदा हो जाएँ लेकिन गम जुदा होता नहीं
दूर होती है कहीं मोहब्बत की खलिश
उम्र दरकार है इस ज़ख्म के भर जाने को
मोहब्बत है मुझे बुलबुल के गम अंगेज नालों से
चमन में रह कर मैं फूलों का शैदा हो नहीं सकता
दाग को कौन देने वाला था
जो दिया है खुदा दिया तूने
कल तो कहते थे कि बिस्तर से उठा जाता नहीं
आज दुनिया से चले जाने की ताकत आ गई
हम उसी को ख़ुदा समझते हैं
जो मुसीबत में याद आ जाए
कभी गुलशन में रहते थे ,कफ़स में अब गुज़रती है
खता सैयाद की क्या है हमारा आबोदाना है
हम बावफा थे इसीलिए नज़रों से गिर गए
शायद तुम्हे तलाश किसी बेवफा की है
निगाहें लुत्फ़ से एक बार मुझको देख लेते हैं
मुझे बेचैन करना जब उन्हें मंज़ूर होता है
तसव्वुर में चले आते तुम्हारा क्या बिगड़ जाता
तुम्हारा पर्दा रह जाता ,हमें दीदार हो जाता
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