मेरे बारे में---Nirupama Sinha { M,A.{Psychology}B.Ed.,Very fond of writing and sharing my thoughts

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रविवार, 1 दिसंबर 2019

Sher Behatreen ,Nazm,Gazal !! {4,5,6}

जो देखी तारीख,इस बात पर कामिल यकीं आया
उसे जीना नहीं आया जिसे मरना नहीं आया !

पर्दा रहेगा क्यूँकर खुर्शीदे खावरी का
निकले हैं सुबह वो भी अब बेनक़ाब होकर

रवि परदे में सर्वदा रहे असंभव बात
वह भी तो होता प्रकट ज्यों ही हुआ प्रभात

यह मुश्ते ख़ाक यानी इंसान ही है रुक्ष
वर्ना उठाई किनने इस आसमा से टक्कर
प्रतिद्वंद्वी तव दैव है हुआ कौन बलवान
वह मुट्ठी भर खाक ही जिसे कहें इंसान !

जिसे शब आग सा देखा सुलगते
उसे फिर खाक ही पाया सहर को !

शिक़वा - ए - आबला अभी से "मीर"
है प्यारे ! हनोज दिल्ली दूर
पैरों में छाले पड़े ,कहता बड़ी थकान
दिल्ली अभी दूर है ,समझ "मीर" नादान

अक्ल बेचारी दलीलों में फंस कर रह गई
वार्ना उस निगाहे मुख़्तसर में क्या न था !---गुलाम रब्बानी

न पीना हराम है ना पिलाना हराम है
पीने के बाद डगमगाना हराम है !---अनजान शायर

ग़ालिब ---
जिंदगी जब रास शलम से गुजारी "ग़ालिब"
हम भी क्या याद करेंगे कि ख़ुदा रखते थे !

वो आये घर में हमारे ,खुदा की कुदरत है
कभी हम उनको कभी अपने घर को देखते हैं !

ये न थी हमारी किस्मत के विसाले यार होता
अगर और जीते रहते यही इंतज़ार होता

वो ये कहते हैं कि ग़ालिब कौन है
कोई बतलाओ कि हम बतलाएं क्या ?

 किस कदर ए जिंदगी ! ना आशना जाता हूँ मैं ,
किस लिए आया था आखिर क्यों चला जाता हूँ मैं !

थके जो पाँव तो चल सर के बल न ठहर आतिश
गीले मुराद है मंज़िल में ,खार राह में हैं !

बेजान बोलता है मसीहा के हाथ में !

किसी के आते ही साकी के ऐसे होश उड़े ,
शराब सींख में डाली कबाब शीशे में !

न हाथ थाम सके न पकड़ सके दामन ,
बड़े करीब से उठ कर चला गया कोई

सबब हर एक मुझसे पूछता है मेरे रोने का
इलाही सारी दुनिया को मैं कैसे राजदां कर लूं

आगाज़ तो अच्छा है , अंजाम खुद जाने !

मस्जिदे हस्त ,अंदरुने  औलिया
सिज़दा गाहे जुम्ला हस्त आंजा खुदा -------ईश्वर का निवास संतों के अंदर है जिन्हे दंडवत प्रणाम व दर्शन की लालसा हो वह वहाँ जाके उसे ढूंढे

हर कि ख्वाहिद हम नशीनी व खुदा
गो नशीं अंदर हुज़ूरे औलियायदि तुम्हे ईश्वर से समीपत्व की इच्छा है तो संतों के हृदय में घुसने पर ही वह तुम्हे मिलेगी

हम नशीनी साअते वा औलिया
बिहतर अज सद साला ताअत बेरिया
संतों का सत्संग महान है ,वहां का एक घडी बैठना सौ वर्षों की कठिन तपस्या से भी बढ़ कर फल देने वाला है

मरद हज्जे हम रहे हाजी तालाब
ख्वाह हिन्दू ,ख्वाह तुर्को या अरब
मनुष्य यदि ईश्वर के दर्शन की चाहना रखता हो तो जो लोग वहां पहुँच चुके हैं उनसे पूछो वे चाहे हिन्दू हों या मुसलमान,तुर्क हों या अरब

शेख अफ्गानस्तो बे आलत चूं हक़
बा मुरीदा दाद बे गुत्फन सबक
ऐसे गुरुओं की पहचान यह है कि वह दूर रहते हुए भी अपने शिष्यों की अनुभव की ताकत से देखभाल करते हैं

गर महकयाबी मिया तू जान ख्वेश
वर्ना दानी रह मर्द तनहा तो पेश
अगर ऐसी खुशबू तुमको कहीं मिले तो समझ लेना इसीसे मेरा भला होगा। अगर ऐसा न देखो तो उससे अलग रहो दिखावे में पड़ के गुरु मत बना लो

दस्त पीर अज गाय वां कोताह नेस्त
दस्त ओ जुजम कुदरती अल्लाह नेस्त
गुरु चाहे दूर हो पर उसके हाथ को तू छोटा मत समझ ईश्वर की महान शक्तियों में से एक अंश उसके अंदर भी है वह इतना विस्तृत है कि सातवें आसमान तक तेरी सहायता करेगा

मर्दरा दस्ते दराज आमद यकी
वर गुजिस्त अज आसमाने हफ्तमी
यदि तू अपनी इन्द्रियों का दमन करना चाहता है और अपने नफ़्स पर अधिकार करना चाहता है तो किसी महा पुरुष की छत्र छाया में आ जा

हेच न कुशाद नफ़्सरा जज ज़िल्ले पीर
दामने आ नफ़्स कुशरा सख्त गीर
और उसका दामन मजबूती से पकड़ ले

गर वगीरी सख्त आं तौफीक होस्त
हर की कुव्वत दर तो आयद जज़ब औसत
यदि तूने ऐसा कर लिया तो तेरे अंदर के सारे परदे खुल जाएंगे तुझ में योग्यता आ जाएगी और उसकी सारी शक्तियां स्वयं तुझमे प्रवेश कर जाएंगी

आप जब दिल के पास रहते हैं
जाने क्यों हम उदास रहते हैं

बेचैन है निगाह तो दिल बेकरार है
ए आमदे बहार तेरा इंतज़ार है

तुम मुखातिब भी हो करीब भी हो
तुमको देखें के तुमसे बात करें

एक फकत है सादगी तिस पै बला ए जां है तू
ईश्वा करिश्मे कुछ नहीं आन नहीं अदा नहीं ----मीर

काबे सौ बार वो गया तो क्या
जिसने यां एक दिल में राह न की ---मीर

ग़ज़ल -----

ये किस मकाम पे उल्फत ने मुझको छोड़ दिया
के मेरे नाम से दीवानगी को जोड़ दिया
है जिंदगी की कहानी तो सिर्फ इतनी सी
जहाँ भी चाहा हवा दि ने रुख को मोड़ दिया
वफ़ा के नाम पर दुनिया को लूटने वालों
ये क्या गज़ब है के दामन वफ़ा का छोड़ दिया
हमारा क्या है हमारे बनो ---बनो न बनो
अब हमने आपही फ़ुर्क़त से रिश्ता जोड़ दिया
जुनूने इश्क की तासीर अल अमां "आतिश"
के खुद ही कश्ती को तूफां  में लाके छोड़ दिया !---आतिश बलन्द शहरी

याद आ गयी किसी की काट गयी जिंदगी की रात
वरना कहाँ सुबह थी ऐसी शबे दराज़ में !
किस कदर ए जिंदगी ! ना आशना जाता हूँ मैं ,
किस लिए आया था आखिर क्यों चला जाता हूँ मैं !

थके जो पाँव तो चल सर के बल न ठहर आतिश
गीले मुराद है मंज़िल में ,खार राह में हैं !

बेजान बोलता है मसीहा के हाथ में !

किसी के आते ही साकी के ऐसे होश उड़े ,
शराब सींख में डाली कबाब शीशे में !

न हाथ थाम सके न पकड़ सके दामन ,
बड़े करीब से उठ कर चला गया कोई

सबब हर एक मुझसे पूछता है मेरे रोने का
इलाही सारी दुनिया को मैं कैसे राजदां कर लूं

आगाज़ तो अच्छा है , अंजाम खुद जाने !

मस्जिदे हस्त ,अंदरुने  औलिया
सिज़दा गाहे जुम्ला हस्त आंजा खुदा -------ईश्वर का निवास संतों के अंदर है जिन्हे दंडवत प्रणाम व दर्शन की लालसा हो वह वहाँ जाके उसे ढूंढे

हर कि ख्वाहिद हम नशीनी व खुदा
गो नशीं अंदर हुज़ूरे औलियायदि तुम्हे ईश्वर से समीपत्व की इच्छा है तो संतों के हृदय में घुसने पर ही वह तुम्हे मिलेगी

हम नशीनी साअते वा औलिया
बिहतर अज सद साला ताअत बेरिया
संतों का सत्संग महान है ,वहां का एक घडी बैठना सौ वर्षों की कठिन तपस्या से भी बढ़ कर फल देने वाला है

मरद हज्जे हम रहे हाजी तालाब
ख्वाह हिन्दू ,ख्वाह तुर्को या अरब
मनुष्य यदि ईश्वर के दर्शन की चाहना रखता हो तो जो लोग वहां पहुँच चुके हैं उनसे पूछो वे चाहे हिन्दू हों या मुसलमान,तुर्क हों या अरब

शेख अफ्गानस्तो बे आलत चूं हक़
बा मुरीदा दाद बे गुत्फन सबक
ऐसे गुरुओं की पहचान यह है कि वह दूर रहते हुए भी अपने शिष्यों की अनुभव की ताकत से देखभाल करते हैं

गर महकयाबी मिया तू जान ख्वेश
वर्ना दानी रह मर्द तनहा तो पेश
अगर ऐसी खुशबू तुमको कहीं मिले तो समझ लेना इसीसे मेरा भला होगा। अगर ऐसा न देखो तो उससे अलग रहो दिखावे में पड़ के गुरु मत बना लो

दस्त पीर अज गाय वां कोताह नेस्त
दस्त ओ जुजम कुदरती अल्लाह नेस्त
गुरु चाहे दूर हो पर उसके हाथ को तू छोटा मत समझ ईश्वर की महान शक्तियों में से एक अंश उसके अंदर भी है वह इतना विस्तृत है कि सातवें आसमान तक तेरी सहायता करेगा

मर्दरा दस्ते दराज आमद यकी
वर गुजिस्त अज आसमाने हफ्तमी
यदि तू अपनी इन्द्रियों का दमन करना चाहता है और अपने नफ़्स पर अधिकार करना चाहता है तो किसी महा पुरुष की छत्र छाया में आ जा

हेच न कुशाद नफ़्सरा जज ज़िल्ले पीर
दामने आ नफ़्स कुशरा सख्त गीर
और उसका दामन मजबूती से पकड़ ले

गर वगीरी सख्त आं तौफीक होस्त
हर की कुव्वत दर तो आयद जज़ब औसत
यदि तूने ऐसा कर लिया तो तेरे अंदर के सारे परदे खुल जाएंगे तुझ में योग्यता आ जाएगी और उसकी सारी शक्तियां स्वयं तुझमे प्रवेश कर जाएंगी

आप जब दिल के पास रहते हैं
जाने क्यों हम उदास रहते हैं

बेचैन है निगाह तो दिल बेकरार है
ए आमदे बहार तेरा इंतज़ार है

तुम मुखातिब भी हो करीब भी हो
तुमको देखें के तुमसे बात करें

एक फकत है सादगी तिस पै बला ए जां है तू
ईश्वा करिश्मे कुछ नहीं आन नहीं अदा नहीं ----मीर

काबे सौ बार वो गया तो क्या
जिसने यां एक दिल में राह न की ---मीर

ग़ज़ल -----

ये किस मकाम पे उल्फत ने मुझको छोड़ दिया
के मेरे नाम से दीवानगी को जोड़ दिया
है जिंदगी की कहानी तो सिर्फ इतनी सी
जहाँ भी चाहा हवा दि ने रुख को मोड़ दिया
वफ़ा के नाम पर दुनिया को लूटने वालों
ये क्या गज़ब है के दामन वफ़ा का छोड़ दिया
हमारा क्या है हमारे बनो ---बनो न बनो
अब हमने आपही फ़ुर्क़त से रिश्ता जोड़ दिया
जुनूने इश्क की तासीर अल अमां "आतिश"
के खुद ही कश्ती को तूफां  में लाके छोड़ दिया !---आतिश बलन्द शहरी

याद आ गयी किसी की काट गयी जिंदगी की रात
वरना कहाँ सुबह थी ऐसी शबे दराज़ में !

खौफे तनहाई नहीं कर तो जहाँ से तू सफर
हर जगह रहे अदम में मिलेंगे यार कई !

सैर कर मीर इस चमन की शिताब
है खिज़ा भी सुराग में गुल के

ग़ज़ल -----
शादमानी से मुझको पुकारा
आपने मेरे दिल को उभारा
जाने क्यों गुम हुए होश मेरे
देख कर आपका इक इशारा

हम तो तकते रहे आसमां पर
चाँद को देखने फिर दुबारा
भूल जाऊं भला किस तरह मैं
हर कदम पर दिया जो सहारा

चल दिया छोड़ कर आज वो भी
कल तलक जो था अपना हमारा
देखकर मेरी कश्ती भंवर में
कर गए वो भी मुझसे कनारा

बस गई दिल में अब तुम "कमर"
ये भी एहसान है इक तुम्हारा !----"कमर" बडनग़री

गैर की दाढ़ी में तिनके देखना अच्छा नहीं
आईने में अपने चेहरे का भी जंगल देखिये
बात इतनी है समझदारी की समझो तो "जिगर"
कांच के घर में से पत्थर किसी पर किसी पर मत फेंकिए !

दीदार दिलरुबा का दीवार कहकहा है
जिसने उधर को झाँका फिर वो इधर कहाँ है

उम्र दराज़ मांग कर लाये थे चार दिन
दो आरज़ू में काट गए दो इंतज़ार में
कह दो इन हसरतों से कहीं और जा बसें
इतनी जगह कहाँ है देले दागदार में !

सिरहाने मेरे के आहिस्ता बोलो
अभी टूक रोते रोते सो गया है

कंधे पे अपने रख के अपना मज़ार गुज़रे
कश्तियाँ सबकी किनारे पहुँच जाती है
नाखुदा जिसका नहीं उसका खुद होता है

हमें मंज़िल पे जाना है अंधेरों से तआल्लुक क्या
अगर कम रोशनी होगी तो अपना दिल जला लेंगे !

कारवां गुजर गया गुबार देखते रहे
दिल से तेरी निगाह जिगर तक उत्तर गई
दोनों को इक अदा में रज़ामंद कर गई

ज़माना हो गया बिस्मिल तेरी सीधी निगाहों से
खुदा न खास्ता तिरछी नज़र होती तो क्या होता !


आता है वज्द मुझको,हर दीन की अदा पर
मस्जिद में नाचता हूँ ,नाक़ूस की सदा पर
हर धर्म के तरीके पर मुझे आनंद आता है मंदिर में जब शंख बजता है तो मैं मस्जिद में नाच उठता हूँ ---अनजान शायर

खुद की कसम इन आँखों को रोको
यहाँ दिल की दुनिया लूटी जा रही है

बहन मिल जाए बिजलियों के टूट पड़ने का
कलेजा काँपता है ,आशियां को आशियां कहते ---असर लखनवी

तमाम उम्र इसी एहतियात में गुजरी
कि आशियाना कहीं शाखे गुल पे बार न हो ---अंजुम नाज़्मी

तारीकी दिल की दूर करने को
तेरी बस एक नज़र काफी है
ये शमा जल रही है क्यों महफ़िल में
तुम्हारे हुस्न की एक किरण काफी है
जहाँ को रोशन करने को ए हमनशीं
तेरे रुखसार की ताबानी काफी है
न बर्क चमकाओ न परेशां करो तुम
बिस्मिलों के लिए एक तबस्सुम काफी है
ज़रुरत नहीं है कि ग़ज़ल तरन्नुम में कहो "बेताब"
आशिक़ों के लिए तेरी खुश बयानी काफी है ---सुरेश नामदेव "बेताब"केवलारी

कभी गैरों पर अपनों का गुमां होता है
कभी अपने भी नज़र आते हैं बेगाने से
कभी ख्वाबों में चमकते हैं मुरादों के महल
कभी महलों में नज़र आते हैं वीराने से !

इश्क मुश्क खांसी खुश्क
खैर खून मदपान
इतने छुपाए ना छुपे
ये प्रकट होत निदान

नज़र जिसकी तरफ कर के निगाह फेरलेते हो
क़यामत तक फिर उस दिल से परेशानी नहीं जाती !---आनंद नारायण "मुल्ला"

उजाला तो हुआ कुछ देर को सहने गुलिस्तां में
बल से बिजलियों ने फूंक डाला आशियाँ मेरा ---ग़ालिब

आग खुद अपने नशेमन को लगा दी मैंने
बर्क़ की ज़िद से गुलिस्तां को बचने के लिए ---जॉकी रामपुरी

बर्क़ क्या बर्बाद कर सकती है मेरा आशियाँ
बल्कि यूँ कहिये कि रोशन आशियाँ हो जाएगा !---आसा

कौन किसका हबीब होता है
कौन किसका रकीब होता है
वैसे ही बन जाते हैं रिश्ते
जैसा जिसका नसीब होता है

कहाँ अब मैं इस गम से घबरा के जाऊं
कि यह गम तुम्हारी वदीयत है मुझको
न फूलों के झुरमुट में जी मेरा बहला
न रास आई मुझको सितारों की महफ़िल
सुलगती हुई गम की तन्हाइयों में
यही मुझसे कहता है मेरा दुखी दिल
मेरा जीना मारना तुम्हारे लिए था
तुम्ही हो मसीहा तुम्ही मेरे क़ातिल
अभी तक तुम्हे ढूंढती हैं निगाहें
अभी तक तुम्हारी ज़रुरत है मुझको !

इश्क का नशा जब कोई
मर जाए तो जाए
ये दर्दे सर ऐसा है कि
सर जाए तो जाए

दिल टूटने से तकलीफ तो हुई
मगर उम्र भर का आराम हो गया !

आने का वादा तो मुंह से निकल गया
पूछी जगह तो कहने लगे ख्वाब में !

दूर हमसे हुए दिल के पास आकर
खाई ठोकर भी तो मंज़िल के पास आकर
देखिये गर्दिशे तकदीर इसे कहते हैं
डूबी कश्ती भी तो साहिल के पास आकर

वो हम रहे ,न वो हालात जिंदगी के रहे
कोई हमारा न रहा हम किसी के न रहे !

जला कर मई अपना आशियाँ
जब खाक कर डाला
जगह दे दी है मुझको दिलबर ने
अपने दिल में रहने की

गिला करते हो क्यों तुम मौत से जो बेतकल्लुफ है
वो खुद आ जाएगी इक दिन पैगाम से पहले

अब तो न ख़ुशी का गम है
न गम की ख़ुशी मुझे
बेबस बना चुकी है बहुत
जिंदगी मुझे

मेरी कब्र पर कोई आये क्यों
आकर शमा जले क्यों
मैं तो बेकसी की मज़ार हूँ
कोई फूल मुझपे चढ़ाए क्यों

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