पैयाँ पैयाँ
जब छोटे थे हम , मम्मी की दोनों उँगलियाँ पकड़ कर चलते थे पैयाँ पैयाँ
जब मम्मी छोड़ दिया करती थी उँगली तो घबराते हुए तेज़ी से चलने की कोशिश करते थे पकड़ने को मम्मी की उँगलियाँ
खुश होते थे , जब मम्मी पाउडर काजल लगा कर हमे तैयार करती और
ले जाती थी गार्डन में
झूला झूलते , फिसलपट्टी पर फिसलते
या फिर सी सॉ में ऊपर नीचे होते कितने खुदखुदाते थे हम
आज हम वही हैं , लेकिन
अपने दोनों घुटनों को पुचकारते हैं
पैरों को दुलराते हैं हम
पाउडर नहीं , तरह तरह के दर्द निवारक
मरहम और तेलों की मालिश करते हैं हम , मनुहार करते हैं पैरों की
दोनों घुटनों को नी कैप पहनाते हैं हम
मन ही मन कहते हैं पैरों से अपने
तुम्हें चलना ही होगा मेरे दोस्त
तुम चलोगे , तब तक हम चलेंगे
तुम नहीं चले तो हम न केवल बैठ जाएँगे , बल्कि उठ जाएँगे इस दुनिया से ही,
आज भी हम वही हैं , मम्मी नहीं है , उम्र के इस पड़ाव पर
सीढ़ियाँ उतरते चढ़ते हम रेलिंग थाम लेते हैं ,
आस पास दीवार या किसी भी सामान का सहारा लेकर ही उठते बैठते हैं हम ,
पार्क में वॉकिंग करते हुए याद करते हैं बचपन का चलना
वो पैंया पैंया !!
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