कोई मिलने आए न आए, आपके कर्म आपसे मिलने जरूर जाएंगें..
एक बार द्रोपदी प्रातःकाल स्नान करने यमुना घाट पर गई.. तभी उनका ध्यान सहज ही एक साधु की ओर गया, जिनके शरीर पर मात्र एक कपड़ा था, साधु स्नान के पश्चात दूसरा वस्त्र लेने गए तो वह वस्त्र हवा के झोंके से उड़ कर पानी में चली गई और बह गई, संयोगवश साधु ने जो वस्त्र स्नान करने के समय पहने थे, वह वस्त्र कुछ फटे हुए थे!!
साधु असमंजस में थे कि अब वह अपनी लाज कैसे बचाएं, थोड़ी देर में सूर्योदय होते ही घाट पर भीड़ बढ़ जाएगी, साधु तेजी से बाहर आए और एक झाड़ी में छिप गए!! द्रोपदी ने यह दृश्य देखा तो विचलित हो गई और अपनी साड़ी जो पहन रखी थी, उसमें से आधी फाड़ कर साधु के पास जाकर साड़ी देते हुए बोली, तात मैं आपकी परेशानी समझ गई, इस वस्त्र से अपनी लाज ढ़क लीजिए.. साधु ने सकुचाते हुए साड़ी का टुकड़ा लिया और आशीर्वाद दिया कि जिस तरह आज आपने मेरी लाज बचाई, उसी तरह भगवान भी तुम्हारी आवश्यकता पड़ने पर लाज अवश्य बचाएंगे!!
और जब भरी सभा में चीरहरण के समय द्रोपदी की करूण पुकार प्रभु ने सुनी तो प्रभु ने कहा :- कर्मों के बदले मेरी कृपा बरसती है, क्या कोई पुण्य है द्रोपदी के खाते में??
जाँचा परखा गया तो उस दिन साधु को दान दिया गया वस्त्र हिसाब में मिला जिसका ब्याज कई गुना बढ़ गया था, जिसके फलस्वरूप प्रभु द्रोपदी की सहायता करने पहुंचे, दुशासन वस्त्र खींचता गया और हजारों गज कपड़ा बढ़ता रहा!!
सत्कर्म हो या दुष्कर्म, ब्याज सहित उसका फल वापस अवश्य आता है, चाहे जीतना विलंब से वापस आए!!
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