दिल्ली
की बिजली -----
जाने
कौन मरा है ,
किसकी
मैय्यत की तैयारी है
,
बारिश
के आते ही बस,
छाई
ये अंधियारी है !
विकसित
विकसित का ढोल पीटते
बरसों
से देखे कई,
अब
देखो इनकी बारी है
बिजली
की आँख मिचौली जारी है
आधारभूत
सी ज़रूरतें भी
जनता
की इनको भारी है
वोट
लेकर ठेंगा दिखाते हरबार
जनता
तो बेवकूफ बेचारी है
सारे
निकम्मे नालायक
नौकर
ये सरकारी है,
बरसों
से आदत पडी हुई है
मुफ्तखोर
कर्मचारी है,
वेतन
आयोग की सिफारिशों से
पैसे
की भरमारी है
जनता
जाए भाड़ में
इनकी
उससे क्या रिश्तेदारी है,
इनके
ढर्रे को देख प्रायवेट दिखाए मक्कारी है
नेता
,राजा बने हुए हैं,
आस
पास दरबारी है
काहिल
बनकर छेड़ रहे हैं
सारे
राग दरबारी हैं
लानत
भेजो हर पल इन
पर
पानी
पी पीकर कोसो,
जनता
के पैसों की ऐश इन्हे
पड़
जाए भक्कम भारी है !!!
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