प्राजक्ता को श्रद्धांजली-----
प्राजक्ता वो पेड़ था, जो सात वर्षों पूर्व ,
मैंने बड़े प्यार से अपने घर के सामने लगाया था
वो छोटा सा था ,सुन्दर सा पौधा था,
मैंने उसके इर्द गिर्द एक चौरा बनवाया
पशुओं से बचाने के लिए
सुन्दर सा बुने हुए तार का घेरा बनाया
वह बढ़ता रहा ,धीरे धीरे ,
हर्षाता रहा मुझे,विशाल वृक्ष बन कर
पहचान बन गया मेरे घर की
अगस्त से नवम्बर तक,प्रतिदिन
सैकड़ों की संख्या में फूलों से,लदा रहता,
सुबह सवेरे, जिसके नीचे चारो ओर,
उन फूलों का गलीचा सा बिछा रहता
वो जो "कान्हा जी"का पेड़ कहलाता है,
जिसके फूल "GOD'S FLOWER" कहलाते हैं,
उसका "MURDER "कर दिया
राजनीतिज्ञों की राजनीति ने ,
जो आधे काम इस चुनाव में वोट लेने के लिए ,
और आधे बचा के रखते हैं अगले चुनावों के लिए ,
दिल्ली विधान सभा चुनाव में,
सीवर के पाइप तो बिछाए ,
लोगों को रिआयती दरों पर कनेक्शन भी दे दिए,
लेकिन उनके आउटलेट मुख्य कनेक्शन
बचा रखे अगले चुनाव के लिए
लोगों ने उनका उपयोग शुरू कर दिया ,
पानी ,कहीं गया नहीं ,ज़मीन के अंदर ही संचित होता रहा
धरती ने सोखना बंद कर दिया ,
मेरे प्राजक्ता की तरह ,लोगों ने लगाए हुए ,
सैंकड़ों पेड़ ,लगातार जड़ों में गंदे पानी के जमाव से
अकाल ही काल के गाल में समा गए ,
कल होली पर मैंने मोहल्ले के बच्चों को अपना "प्राजक्ता"दे दिया ,
वो जल रहा था धू धू कर के ,
मैं समझ नहीं पा रही थी,मेरी आँखों में आंसू थे,
"होली" जल रही थी मेरे सामने ,
या "प्राजक्ता " की चिता थी वो ??
प्राजक्ता वो पेड़ था, जो सात वर्षों पूर्व ,
मैंने बड़े प्यार से अपने घर के सामने लगाया था
वो छोटा सा था ,सुन्दर सा पौधा था,
मैंने उसके इर्द गिर्द एक चौरा बनवाया
पशुओं से बचाने के लिए
सुन्दर सा बुने हुए तार का घेरा बनाया
वह बढ़ता रहा ,धीरे धीरे ,
हर्षाता रहा मुझे,विशाल वृक्ष बन कर
पहचान बन गया मेरे घर की
अगस्त से नवम्बर तक,प्रतिदिन
सैकड़ों की संख्या में फूलों से,लदा रहता,
सुबह सवेरे, जिसके नीचे चारो ओर,
उन फूलों का गलीचा सा बिछा रहता
वो जो "कान्हा जी"का पेड़ कहलाता है,
जिसके फूल "GOD'S FLOWER" कहलाते हैं,
उसका "MURDER "कर दिया
राजनीतिज्ञों की राजनीति ने ,
जो आधे काम इस चुनाव में वोट लेने के लिए ,
और आधे बचा के रखते हैं अगले चुनावों के लिए ,
दिल्ली विधान सभा चुनाव में,
सीवर के पाइप तो बिछाए ,
लोगों को रिआयती दरों पर कनेक्शन भी दे दिए,
लेकिन उनके आउटलेट मुख्य कनेक्शन
बचा रखे अगले चुनाव के लिए
लोगों ने उनका उपयोग शुरू कर दिया ,
पानी ,कहीं गया नहीं ,ज़मीन के अंदर ही संचित होता रहा
धरती ने सोखना बंद कर दिया ,
मेरे प्राजक्ता की तरह ,लोगों ने लगाए हुए ,
सैंकड़ों पेड़ ,लगातार जड़ों में गंदे पानी के जमाव से
अकाल ही काल के गाल में समा गए ,
कल होली पर मैंने मोहल्ले के बच्चों को अपना "प्राजक्ता"दे दिया ,
वो जल रहा था धू धू कर के ,
मैं समझ नहीं पा रही थी,मेरी आँखों में आंसू थे,
"होली" जल रही थी मेरे सामने ,
या "प्राजक्ता " की चिता थी वो ??
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