आरे मेघा,कारे मेघा झलक ज़रा दिखला जाते,
केरल मुंबई में तो बरसे,हमको भी ज़रा भिगो जाते,
गर्मी से हम झुलस रहे हैं,और पसीने के धारे बहाते,
सरकारी अनुकम्पा से थोड़ी सी बिजली पा जाते,
लेकिन बिजली जाने पर,हलक में प्राण अटक जाते,
गर्मी जाये ,और तुम बरसो,इसी सोच में खो जाते,
मनभावन कल्पना तुम्हारी,हम होठों में मुस्काते,
आ जाओ अब देर करो ना,प्रतीक्षा में पलकें बिछाते,
सब कहते हैं दिल्ली पापी,इसीलिए तुम ना आते,
दिल्ली तक आते आते क्यूँ तुम रीते हो जाते?
निश्छल और निष्पाप यहाँ भी हैं बसते,
उनकी प्रतीक्षा को तो सार्थक कर जाते.-----निरुपमा पेरलेकर सिन्हा
केरल मुंबई में तो बरसे,हमको भी ज़रा भिगो जाते,
गर्मी से हम झुलस रहे हैं,और पसीने के धारे बहाते,
सरकारी अनुकम्पा से थोड़ी सी बिजली पा जाते,
लेकिन बिजली जाने पर,हलक में प्राण अटक जाते,
गर्मी जाये ,और तुम बरसो,इसी सोच में खो जाते,
मनभावन कल्पना तुम्हारी,हम होठों में मुस्काते,
आ जाओ अब देर करो ना,प्रतीक्षा में पलकें बिछाते,
सब कहते हैं दिल्ली पापी,इसीलिए तुम ना आते,
दिल्ली तक आते आते क्यूँ तुम रीते हो जाते?
निश्छल और निष्पाप यहाँ भी हैं बसते,
उनकी प्रतीक्षा को तो सार्थक कर जाते.-----निरुपमा पेरलेकर सिन्हा
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