एक गडरिये का था बाल
बड़ी बुरी थी उसकी चाल,
भेड़ चराने जंगल जाता ,
झूठ मूठ वह था चिल्लाता
दौड़ो अरे ! भेड़िया आया !
उसने मेरी भेड़ उठाया ,
लोग दौड़ कर थे जब जाते ,
उसे मजे से हँसता पाते,
एक दिन सच में भेड़िया आया,
उसने उसकी भेड़ उठाया
तब वह मूर्ख बहुत चिल्लाया
झूठ बोलने पर पछताया,.
किन्तु उसे सब झूठा जान ,
बैठ रहे थे मौन को ठान,
झूठ बोलते हैं जो बच्चे ,
लोग न कहते उनको अच्छे,
टूट जाती है उनकी आस ,
पछताते खोकर विश्वास,
निरुपमा पेरलेकर सिन्हा
बड़ी बुरी थी उसकी चाल,
भेड़ चराने जंगल जाता ,
झूठ मूठ वह था चिल्लाता
दौड़ो अरे ! भेड़िया आया !
उसने मेरी भेड़ उठाया ,
लोग दौड़ कर थे जब जाते ,
उसे मजे से हँसता पाते,
एक दिन सच में भेड़िया आया,
उसने उसकी भेड़ उठाया
तब वह मूर्ख बहुत चिल्लाया
झूठ बोलने पर पछताया,.
किन्तु उसे सब झूठा जान ,
बैठ रहे थे मौन को ठान,
झूठ बोलते हैं जो बच्चे ,
लोग न कहते उनको अच्छे,
टूट जाती है उनकी आस ,
पछताते खोकर विश्वास,
निरुपमा पेरलेकर सिन्हा
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