भारत से प्रवासी को पत्र ------
हर बार जब तुम घर आओगे
मुझे बूढ़ा और बूढ़ा होता पाओगे
कम होती जाएगी रोशनी आँखों की
श्रवण शक्ति में भी कमी होती पाओगे
कांपती काया से कर पाऊँगी शायद तुम्हारा स्वागत
आँखों में हर्ष और स्नेह के समंदर को हर बार बढ़ता ही पाओगे
आशीषों की संख्या बढती जाएगी
जब जब तुम घर आओगे
हर बार जब तुम भारत आओगे
जनसँख्या का बोझ बढ़ता ही पाओगे
बढ़ती जाएगी भीड़ सीमेंट की इमारतों की
जंगलों को समाप्त होता हुआ पाओगे
बढ़ते जायेंगे हर प्रकार के प्रदूषण
हर सांस में ज़हर घुलता हुआ पाओगे
भ्रष्टाचार जो थोड़ा ढका छुपा है अब तक
खुल कर उसे लोगों से खेलता हुआ पाओगे
पूर्व की खिचड़ी पश्चिम का पास्ता
अधकचरा स्वाद ही दिखेगा चारों ओर
सभ्यता और संस्कृति का अटपटा सा
एक नया रूप ही देख पाओगे
न चल पाएंगे दोनों वर्ग कभी साथ साथ
गरीबों को और गरीब
अमीरों को और अमीर
होता हुआ पाओगे
अमीरों का इंडिया चमकता दिखेगा
गरीबों के बूढ़े भारत को
बीमार कृषकाय
गरीबी से लड़ता हुआ पाओगे !
हर बार जब तुम घर आओगे
मुझे बूढ़ा और बूढ़ा होता पाओगे
कम होती जाएगी रोशनी आँखों की
श्रवण शक्ति में भी कमी होती पाओगे
कांपती काया से कर पाऊँगी शायद तुम्हारा स्वागत
आँखों में हर्ष और स्नेह के समंदर को हर बार बढ़ता ही पाओगे
आशीषों की संख्या बढती जाएगी
जब जब तुम घर आओगे
हर बार जब तुम भारत आओगे
जनसँख्या का बोझ बढ़ता ही पाओगे
बढ़ती जाएगी भीड़ सीमेंट की इमारतों की
जंगलों को समाप्त होता हुआ पाओगे
बढ़ते जायेंगे हर प्रकार के प्रदूषण
हर सांस में ज़हर घुलता हुआ पाओगे
भ्रष्टाचार जो थोड़ा ढका छुपा है अब तक
खुल कर उसे लोगों से खेलता हुआ पाओगे
पूर्व की खिचड़ी पश्चिम का पास्ता
अधकचरा स्वाद ही दिखेगा चारों ओर
सभ्यता और संस्कृति का अटपटा सा
एक नया रूप ही देख पाओगे
न चल पाएंगे दोनों वर्ग कभी साथ साथ
गरीबों को और गरीब
अमीरों को और अमीर
होता हुआ पाओगे
अमीरों का इंडिया चमकता दिखेगा
गरीबों के बूढ़े भारत को
बीमार कृषकाय
गरीबी से लड़ता हुआ पाओगे !
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