रतनगढ़ बहुत बड़ा स्थान न था। लगभग सभी लोग एक दूसरे को जानते थे तथा एक दूसरे के दुःख सुख में भी सम्मिलित हुआ करते थे।एक छोटा सा बाजार था ,आगे सब्जी मंडी। बाजार में छोटे मोटे दुकानदार तथा रोज ताज़ी सब्जियां लेकर आने वाले कुंजड़ों द्वारा लगाई सब्ज़ी मंडी। बाजार के बीच में बड़ा हवेलीनुमा एकमात्र मकान विश्वनाथ सिंह का था। दूसरी ओर महाविद्यालय तथा तहसील कसबे से बाहर जाने वाले रास्ते पर बनी थी। महाविद्यालय के सामने से एक पतली पगडण्डी थी जो आगे चल कर लगभग 2 किलोमीटर के बाद , एक छोटी सी टेकरी की ओर जाती थी। टेकरी के पूरे रास्ते में कुछ पेड़ कुछ झाड़ियां थीं ,टेकरी पर माँ दुर्गा का एक छोटा सा मंदिर था। तहसील महाविद्यालय से कुछ दूरी पर थी, अंजुरी कभी पैदल आती और कभी उसे सरकारी जीप छोड़ जाया करती थी। टेकरी पर चढ़ने के लिए लगभग 300 सीढ़ियां चढ़नी होती थीं. वहां रोजाना भीड़ नहीं होती थी,हाँ नवरात्रों पर व विशेष तिथियों त्योहारों पर काफी भीड़ हुआ करती थी,ये उन दिनों की बात है जब लड़का लड़की स्कूल कॉलेज के अलावा जैसे ही आपस में बात करते दिखते ,देखने वालों की आँखे विस्फारित हो जाती ,उनका दिमाग कभी इस बात को सामान्य रूप से ना ले पाता। उनके दिमाग की यह कुलबुलाहट एक से दूसरे ,दूसरे से तीसरे तक पहुंचते पहुँचते बात से बतंगड़ बन जाती और लड़का तथा लड़की दोनों की ही अपने अपने माता पिता के कोर्ट में पेशी हो जाती जिसकी सफाई उन्हें देनी होती थी। लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि सभी लडके लड़कियां ऐसे ही थे। कुछ थे जो लुक छुप कर अपने प्रेम की पतंग आकाश में उड़ाया करते थे। इन्ही में आगे चलकर कमलेश्वर और अंजुरी भी सम्मिलित हो गए। काफी दिनों तक तो दोनों बस एक दूसरे को ताकते रहे.दोनों में किसी की हिम्मत ही नहीं हुई आगे कदम बढाने की ---क्रमशः
मेरे बारे में---Nirupama Sinha { M,A.{Psychology}B.Ed.,Very fond of writing and sharing my thoughts
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