आखिर में पहल करने की हिम्मत अंजुरी ने ही दिखाई ,क्योंकि वह शहर में अपनी स्कूली शिक्षा पूर्ण कर के अपेक्षाकृत छोटी जगह पर आ गई थी। शहर में लड़कियां स्वतंत्रता से विचरण करती थीं ,वे नौकरी करती ,साइकिल से स्कूल आना जाना करती और निर्भीक हो कर लड़कों से न सिर्फ बातें करती बल्कि किसी विषय पर मुक्त रूप से अपने विचारों को अभिव्यक्त करती। अंजुरी भी ऐसी ही लड़की थी बल्कि आम लड़की से अधिक ,कुछ विशेष थी। वह अपने बाल्य काल से ही स्टेज के साथ मित्रवत रही चाहे कोई भाषण देना हो ,अथवा किसी डिबेट में प्रतिनिधित्व करना हो,नृत्य करना हो ,छोटी सी हास्य नाटिका अथवा बड़े से नाटक में भरी भरकम डायलॉग बोलने हों। उससे कभी चूक नहीं होती थी। वह एकमात्र थी जिसे 'सेंटर ऑफ़ अट्रैक्शन "कहा जाता था। अभी वह यहाँ नई नई थी लेकिन अध्यापकों और सहपाठियों पर उसके ज्ञान का रुतबा पड़ चुका था। लेकिन उस पर जिसका प्रभाव पड़ा था वो कमलेश्वर था। वह कई दिनों तक उसकी पहल की प्रतीक्षा करती रही अंततः छह महीनो की प्रतीक्षा के बाद उसने एक दिन फिर से कमलेश्वर से इकोनॉमिक्स के रीसेंट लेसन के नोट्स मांगे ,अगले दिन ही उसने कमलेश्वर को उसकी कॉपी लौटा दी,उसमे उसने एक बड़े से पन्ने पर सिर्फ इतना ही लिखा "क्या हम छुटटी के बाद टेकरी पर मिल सकते हैं ? "उसने वह मंदिर नहीं देखा था और उसे उस मंदिर को देखने की उत्कट इच्छा थी. उसने अपनी मम्मी से पहले ही कह दिया था कि वह टेकरी वाले मंदिर से दर्शन कर के लौटेगी। मम्मी ने पूछा ," अकेले ही जाएगी ? नहीं कुछ सहेलियां भी जाएँगी। यह पहला झूठ था जिसे उसने झिझकते हुए बोला और बोल कर गहन दुःख और पश्चाताप भी हुआ। ---क्रमशः
मेरे बारे में---Nirupama Sinha { M,A.{Psychology}B.Ed.,Very fond of writing and sharing my thoughts
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