मेरे बारे में---Nirupama Sinha { M,A.{Psychology}B.Ed.,Very fond of writing and sharing my thoughts

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सोमवार, 27 जनवरी 2020

Dharavahik Upanyas ---Anhoni--{7}

एक बजकर बीस मिनिट पर लगभग सभी क्लासेज हो जाया करतीं थी। उसके बाद लंच टाइम और दोपहर तीन से साढ़े चार बजे तक कुछ विज्ञानं की क्लासेज और प्रैक्टिकल इत्यादि टाइम टेबल के अनुसार थे। विज्ञानं संकाय और लैब हाल ही में आरम्भ हुई थी और उसमे एडमिशन  लेने वाले छात्र छात्राओं की संख्या नगण्य थी। महाविद्यालय के सामने से टेकरी की ओर जाने वाली पगडण्डी काफी बड़ी बड़ी लेंटाना की जंगली झाड़ियों से छुपी हुई मुख्य मार्ग से कुछ नीचे की ओर थी और महाविद्यालय के मुख्य गेट से सीधे तौर पर देखने पर वह पगडंडी दिखाई भी नहीं पड़ती। टेकरी और मंदिर ज़रूर दिखाई पड़ता था लेकिन वह ऊचांई के कारण काफी  छोटे आकार में ही दिखाई देती थी। 
अपना बचपन और स्कूली जीवन शहर में बिताने के बावजूद यह कदम अंजुरी के लिए नया था ,एक प्रश्नचिन्ह की तरह ,उसका मन कहता सही है और मस्तिष्क कहता कि सही नहीं है। यह साहसिक कदम था अथवा दुस्साहस उसके मन में निरंतर संघर्ष हो रहा था। उसने इस द्वन्द को झटक दिया और धीमे धीमे पगडण्डी की ओर बढ़ने लगी। उसके दोनों ओर लेंटाना की झाड़ियां थी और उन फूलों की जंगली सुगंध ,उसे अच्छी लग रही थी।  उसके हाथ में नोट्स का फोल्डर था। वह सोचती जा रही थी ,कमलेश्वर ने कोई जवाब भी नहीं दिया ,क्या उसने वह परचा पढ़ लिया होगा ? अगर वह नहीं आया तो ? नहीं नहीं ! वो ज़रूर आएगा ,उसके मन ने कहा ,अगर न आया तो ? फिर से एक प्रश्न ने सर उठाया। "न आया तो कोई बात नहीं वह स्वयं ही टेकरी पर जाकर दुर्गा माँ के दर्शन कर के लौट आएगी।  अगर किसी ने मम्मी पापा तक यह बात पहुंचा दी तो ? भय से उसके पूरे शरीर में सिहरन सी दौड़ गई।  वह अब सीढ़ियों के मुहाने पर पहुँच गई थी ,उसने मुड़ कर देखा कमलेश्वर उसे नज़र नहीं आया। वह उदास हो गई ,सोचने लगी चढ़ूँ या ना चढ़ूँ ,अच्छा ,एक से सौ तक गिनती गिनती हूँ ,तब भी यदि वह नहीं आया तो लौट जाउंगी ,वह मन ही मन  धीरे धीरे गिनती गिनने लगी। एक ,दो ,तीन ,--------क्रमशः 

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