*श्रीकृष्ण कथा*
भगवान दूर खड़े मुस्कुरा रहे हैं।तभी भगवान के परम मित्र मनसुखा आ गए तो मैया मनसुखा से कहती है-"मनसुखा तू आज लल्ला को पकड़वाने में मदद करेगा तो तुझको खाने को माक्खन दूंगी"
मनसुखा बातों में आ जाते हैं। अब मनसुखा भी कन्हैया को पकड़ने भागे।कन्हैया बोले-"क्यों रे सखा तू आज माखन के लोभ में मैया से मार लगवायगो। सोच ले मैं तो तुझ को रोज चोरी करके माखन खाने के लिए देता हूँ। मैया तो तुझे सिर्फ आज माखन खाने को देगी।अगर तूने मुझे पकड़ा और मैया से मार लगवाई तो अपनी सखा मंडली से तोय बाहर कर दूंगो"
मनसुखा बोले-"देख कान्हा मैया का क्या है एक तो वो तुझ से प्यार इतना करती है जो तुझको जोर से मार तो लगाएगी नहीं और 2 चपत तेरे गाल पे लग जायेगी तो क्या इस ब्राहमण सखा का भला हो जायेगा और माखन खाने को मिल जायेगा चोरी भी नहीं करनी पड़ेगी।
कान्हा बोले-"अच्छा मेरी होए पिटाई और तेरी होय चराई।वाह मनसुखा वाह"
और यह सब कहते हुए उनके छोटे छोटे पैरों में घुंघरू छन-छन करके बज रहे हैं।यशोदा सब कुछ सुन रही हैं।अपने लाल की लीला देख के गुस्सा भी और प्रसन्न भी हो रही हैं। गुस्सा इसलिए हो रही है की इतना छोटा और इतना खोटा, पकड़ में ही नहीं आ रहा।अपने लाल की लीला जिसपे सारा बृज वारी-वारी जाता है। भगवान् सुंदर लीला कर रहे हैं। तभी मनसुखा ने माखन के लोभ में कृष्ण को पकड़ लिया व जोर से आवाज लगायी काकी जल्दी आओ मैंने कान्हा को पकड़ लिया है। आवाज सुनकर मैया दौड़ी-दौड़ी आई।जैसे ही मैया पास पहुंची मनसुखा ने कान्हा को छोड़ दिया। मनसुखा बोले मैया मैंने इतनी देर से पकड़ के रखो पर तू नाए आई। कान्हा तो हाथ छुड़वा के भाग गयो।
जब मैया थककर बैठ गयी तो मनसुखा मैया से बोलो-"मैया तू कहे तो कान्हा को पकड़ने को तरीका बताऊँ तू इसे अपने भक्तन (सखा और सखी गोपियों ) की सौगंध खवा"
मैया बोली-"या चोर को कौन भक्त बनेगो"
फिर भी मैया कन्हैया को सौगंध खवाती है कि कन्हैया तुझे तेरे भक्तों की सौगंध जो मेरी गोदी में न आयो।
भगवान् मन में सोचते हैं “अहम् भक्ता पराधीन “ मैं तो भक्त के आधीन हूँ और वो भागकर मैया के पास चले आते हैं। मैया से बोलते हैं -"अरी मैया अब तू मोये मार या छोड़ दे ले अब मैं तेरे हाथ में हूँ"
मैया बोली-"लल्ला आज मारूंगी तो नहीं पर छोडूंगी भी नहीं पर तेरी सब नटखटी तो बंद करनी ही पड़ेगी" मैया रेशम की डोरी से उखल से कृष्ण के पेट को बांध रही हैं। भगवान सोच रहे हैं मैया मेरे हाथ को बांधे तो बंध जाऊं पैर बांधे तो भी बंध जाऊं पर मैया तो पेट से बांध रही और मेरे पेट में तो पूरा ब्रहम्मांड समाया है। मैया बार बार बांध रही है पर हर बार डोरी 2 उंगल छोटी पड़ जाती है और डोरी जोड़के बांधती है तो भी 2 उंगल छोटी पड़ जाती है एक उंगल प्रेम है और दूसरा है कृपा भगवान सोच रहे है की अगर प्रेम है तो कृपा तो मैं अपने आप ही कर देता हूँ। आज जब मैया थक गयी और प्रेम में आ गयी तो प्रभु ने कृपा कर दी और अब मैया ने कान्हा को बाँध दिया है।
संस्कृत में डोरी को दाम कहते हैं और पेट को उदर कहते हैं जब भगवान् को रस्सी से पेट से बांधा तो कान्हा का ये नया नाम उत्पन्न हुआ दामोदर।
एक प्रेम की डोरी है जो मुझे बाँध सके..!
वरना संसार में कोई नहीं जन्मा जो मुझे बाँध सके..!!
*जय श्री कृष्ण*
RADHE RADHE JAI SHREE KRISHNA
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