*नूडल्स का कटोरा*
उस रात मीशा अपनी माँ से झगड़कर घर से निकल गई। रास्ते में उसे याद आया कि उसकी जेब में पैसे नहीं हैं, न ही उसके पास घर बुलाने के लिए कोई सिक्का है।
जल्द ही वह एक नूडल की दुकान के सामने पहुँची। अचानक, नूडल्स की खुशबू से उसे भूख लग आई। उसे एक कटोरा नूडल्स चाहिए था, लेकिन उसके पास पैसे नहीं थे।
दुकानदार ने उसे काउंटर के सामने खड़ा देखा और पूछा, "अरे प्यारी, क्या तुम एक कटोरा नूडल्स खाना चाहती हो?"
"लेकिन... मेरे पास पैसे नहीं हैं।" उसने झिझकते हुए जवाब दिया। "चिंता मत करो, मेरे पास इसका भी उपाय है।" दुकानदार ने कहा। "अंदर आओ, मैं तुम्हारे लिए एक कटोरा नूडल्स बना दूँगा।"
कुछ मिनट बाद, दुकानदार उसके लिए गर्म नूडल्स से भरा कटोरा लाया। इसे खाने के कुछ मिनट बाद, मीशा रोने लगी।
"क्या हुआ बच्ची?" दुकानदार ने पूछा। "कुछ नहीं! मैं आपकी दयालुता से अभिभूत हूँ।" मीशा ने आँसू पोंछते हुए कहा। "सड़क पर एक अजनबी ने मुझे नूडल्स का कटोरा दिया, और मेरी अपनी माँ ने एक छोटी सी लड़ाई के बाद मुझे घर से बाहर निकाल दिया। उसने जो किया वह गलत था!!"दुकानदार कुछ देर चुप रहा और उसकी बातें सुनता रहा। फिर जब उसने नूडल्स खा लिए, तो वह उसके पास बैठ गया और उससे बहुत धैर्य और स्नेह से पूछा, "प्यारी, तुमने ऐसा क्यों सोचा? फिर से सोचो!! मैंने तुम्हें नूडल्स का एक कटोरा दिया और तुम्हें कृतज्ञता का भाव आया...जबकि तुम्हारी माँ तुम्हें गर्भ में रहने से ही, यहाँ तक कि तुम्हारे जन्म से भी पहले से पाल रही है। क्या तुमने कभी उसकी ओर ध्यान दिया है? क्या तुमने कभी उसके प्रति हृदय से कृतज्ञता महसूस की है?"
मीशा यह सुनकर वाकई चौंक गई। उसने मन ही मन सोचा, "मैंने ऐसा क्यों नहीं सोचा? एक अजनबी के नूडल्स के कटोरे ने मुझे कृतज्ञता का एहसास कराया और मैंने अपनी माँ के प्रति कभी ऐसा आभार महसूस नहीं किया, जिसने मुझे बचपन से पाला है। मुझे इसका ज़रा सा भी एहसास नहीं हुआ।"
उस पल वह अपनी माँ से मिलने के लिए बेचैन हो उठी। थोड़ी देर पहले उसकी आँखों में अपनी माँ के प्रति नफ़रत थी, लेकिन अब उसकी आँखों में माँ के प्रति प्यार के आँसू थे।
उसने दुकानदार को दिल से धन्यवाद दिया और घर वापस चली गई।
मीशा जैसे ही घर पहुँची, उसने देखा कि उसकी माँ दरवाजे पर इंतज़ार कर रही थी। वह परेशान और थकी हुई लग रही थी, और उसे हर जगह ढूँढ रही थी। मीशा को देखकर उसकी माँ ने धीरे से कहा, "कहाँ चली गई मीशा, अंदर आओ, प्यारी। तुम्हें बहुत भूख लगी होगी? मैंने तुम्हारे लिए तुम्हारा पसंदीदा चावल बनाया है। अभी गरम-गरम खा लो।"
मीशा दौड़कर अपनी माँ के पास गई और उनकी बाँहों में लिपटकर रोने लगी। माँ का दिल भी प्यार से भर गया, माहौल प्यार से भर गया।
जीवन में कई बार हम किसी अजनबी की छोटी-सी दयालुता से इतने प्रभावित हो जाते हैं कि उनकी सराहना करना और उनके प्रति कृतज्ञ होना आसान हो जाता है। वहीं दूसरी ओर, हम उन लोगों के प्यार और समर्थन को हल्के में ले लेते हैं, जिनके हम बहुत करीब होते हैं, खासकर अपने माता-पिता के। हम उनके प्यार, देखभाल, प्रोत्साहन, समर्थन और त्याग के इतने आदी हो जाते हैं कि हम यह सब अपने प्रति उनकी जिम्मेदारी समझने लगते हैं और खुद को इसके *हकदार* समझने लगते हैं!
और कई बार बिना सोचे-समझे हम उन पर अपना गुस्सा निकाल देते हैं!
माता-पिता का प्यार और चिंता सबसे कीमती तोहफा है, जो हमें जन्म से ही मिलता है। वैसे तो माता-पिता हमारे पालन-पोषण के बदले में हमसे कुछ भी उम्मीद नहीं करते, लेकिन फिर भी हम कभी नहीं सोचते कि हम अपने माता-पिता के लिए क्या कर सकते हैं, जो हमें खुद से भी ज्यादा प्यार करते हैं!!
उनके लिए दिल की गहराइयों से प्यार भरा आलिंगन और सम्मान, शायद यही उन्हें सबसे खुशी के पल दे!
*चिंतन*
प्यार में उम्मीद के लिए कोई जगह नहीं होती, सिर्फ कृतज्ञता के लिए जगह होती है। इसलिए प्यार इंसानी बड़प्पन की पराकाष्ठा है।
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