मकर संक्रांति जिसे तिल संक्रांति भी कहा जाता है। विभिन्न प्रदेशों में इसके नाम हैं-
बंगाल -पौष संक्रांति
उत्तर प्रदेश -खिचड़ी
उत्तराखंड - घुघुतिया
असम- बिहु या भोगाली बिहु
गुजरात -उत्तरायण संक्रांति
दक्षिण भारत - पोंगल,ताई पोंगल,उझवर तिरूनल
जम्मू - उत्तरैन,माघी संगराद
कश्मीर - शिशुर सेंक्रांत
, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश - माघी
पंजाब -लोहड़ी
इसके अतिरिक्त विदेश के
थाईलैंड - सोंगकरन
लाओस - पिमालाओ
म्यांमार - थिंयान
कम्वोडिया - मोटा संगक्रान
श्रीलंका - उझवर तिरूनल
बंगला देश -पौष संक्रांति
इस पर्व से जुड़ी कई पौराणिक और दंत कथाएं भी है।
आज ही के दिन श्री राम के पूर्वज भगीरथ जी ने कपिल मुनि के श्राप भस्म हुए अपने पूर्वज सगर के हजार पुत्रों के मोक्ष के लिए गंगा को स्वर्ग से लाकर कपिल मुनि के आश्रम, गंगा सागर पहूंचाया था। कपिल मुनि के निर्देशानुसार तिलार्पण किया था।
दुसरी कथा है कि आज ही के दिन भगवान विष्णु ने असुर भाई मधु कैटभ को मारकर मंदार पर्वत के तलहटी में दबा कर संसार को उसके आतंक से मुक्त किया था। दोनों भाइयों के मरने के बाद देवों ने विष्णु से वर मांगा था की वो हर वर्ष इस तिथि पर आकर उस स्थल निरीक्षण करें ताकि दोनों दस्यु पुनर्जन्म ना ले सके। मधू का वध करने के कारण बिष्णु यहां मधूसुदन कहलाये।इसीलिए हर साल आज के दिन भगवान मधूसुदन को मंदिर के गर्भ गृह से निकाल कर गाजे-बाजे के साथ यहां लाया जाता है।
एक पौराणिक कथा के अनुसार सूर्य पुत्र शनि का जन्म छाया से होने के कारण, शनि का वर्ण गहरा काला हुआ जो सूर्य देव को नहीं भाया।
उन्होंने पत्नी छाया और पुत्र शनि का यह कह कर परित्याग कर दिया कि "उनका पुत्र ऐसा नहीं हो सकता"!
परिणाम स्वरूप इस अपमान से क्रोधित छाया ने सूर्य देव को कुष्ठ होने का श्राप दिया और पुत्र के कुंभ नामक घर में रहने चली गई।
भगवान सूर्य ने भी इस श्राप से क्रोधित होकर कुंभ को जलाकर भस्म कर दिया।
पिता को कुष्ठ से अपार कष्ट में देख दुसरे पुत्र यमदेव (माता विश्वकर्मा पुत्री संज्ञा या सरण्यु) ने कठिन प्रयासों से उन्हें रोग मुक्त कराया और उनकी गलतियों का अहसास कराते हुए वचन लिया कि वो माता छाया से रुखा और अनुचित व्यवहार नहीं करेंगे।
ग़लती का भान होते ही सूर्य देव द्रवित होकर पुत्र और पत्नी के पास गये।
चूंकि शनिदेव का कुंभ स्थित घर जलने से घर की सभी वस्तुएं भी जल गई थी अतः पिता का स्वागत जली हुई काली तिल और गुड़ से किया।
सूर्य देव अत्यंत प्रसन्न हुए और एक अन्य घर मकर शनि देव को तत्काल प्रदान किया।
चूंकि उस वक्त सूर्य धनु में निवास कर रहे थे इसलिए धनु से मकर आने की उस तिथि मकर संक्रांति कहा गया।
तब से शनि देव का प्यारा तिल सूर्य देव को भी प्रिय हो गया।
चूंकि शनिदेव विष्णु के अनन्य भक्त हैं और तिल की उत्पत्ति विष्णु के शरीर से हुई है इसलिए उन्हें तिल अति प्रिय है। गुड़ सूर्य देव को प्रिय है।
इसीलिए मकरसंक्रांति में तिल और गुड़ का महत्व है।
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