अमृत बिंदू ----------
सागर से बनो अतल अथाह ,
हो ज्ञान रत्न आदान प्रदान
नील गगन का हो विस्तार,
बन कर विहग लो ऊंची उड़ान ,
जीवन में नित नवीन मार्ग का ,
सदा करो तुम अनुसंधान ,
हम सब के तुम बनो गर्व और,
स्वयं तुम्हारा हो उत्थान ,
लक्ष्य सदा ही रखो सामने ,
शर का करो तुम संधान,
दसों दिशाओं में कीर्ति हों ,
व्यक्तित्व
के हों बहु आयाम ,
तुमसा ना हो कोई जग में ,
एक मात्र तुम ही विहान!!
शब्द - अर्थ -- बहुआयाम -multi dimensional ,
शर संधान - धनुष पर तीर रख कर साधना
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें