ज़िन्दगी के रंग –
रफ्ता रफ्ता पकड़ती है
रफ़्तार ज़िन्दगी
कभी धीमी कभी
तेज़, कभी फूलों
की सेज़ कभी
खार ज़िन्दगी
कभी ग़मख़्वार कभी दुश्वार
कभी खुशगवार ज़िन्दगी
जब तक समझ
में आये,तब
तक
पहुँच जाती है
उम्मीद के पार
ज़िन्दगी,
कभी इकरार,कभी इसरार
,कभी इंकार ज़िन्दगी
जाने कितने फलसफों का
है सार ज़िन्दगी
जितनी अच्छी बेहतरीन हो
,तो प्यार ज़िन्दगी
वरना तो समझो
की बंठा ढार
ज़िदगी
ख़ाली हाथ आने
और खाली हाथ
जाने
इसके बीच का
बस एक सरोकार
ज़िन्दगी
इस बीच के
हिस्से की उठापटक
धन दौलत,भाग
दौड़,सपनो का
साकार ज़िन्दगी
बस आखिर में
तो ,चार कन्धों
की सवार ज़िन्दगी
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