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मंगलवार, 2 अगस्त 2016

Aakahri Padaaw !!

आखरी पड़ाव  ------

दबे पाँव आता है
और आकर ठहर जाता है
वो मेहमान जो दिल में नहीं
दिमाग में दाखिल  हो जाता है
और आँखों में खुबता है
जब आईने पर जाती है नज़र
दिखाई देते हैं आँखों के नीचे गड्ढे
नाक और होंठों के पास दो लकीरें
बचपन में साईकिल चलाना सीखते हुए
गिर कर छिल जाती थी कोहनियां और घुटने
लेकिन फिर उठ कर चल देने की ,
होती थी हिम्मत और कूव्वत,
अब ,दर्द आते हैं अलग अलग,किस्म किस्म के ,
बेशर्म मेहमानों की मानिंद,बिना इत्तला किये
और ठहर जाते हैं,
आज कल परसों--हम करते हैं ,जाने का इंतज़ार
वो अकेले भी नहीं आते ,
ले आते हैं मुसीबतें साथ में कई ,
खुद के लिए भी और अपनों के लिए भी ,
गर लंबे ठहरते हैं तो ,ऊब भी जाते हैं खिदमतगार ,
बचपन में दादा-दादी,और नाना-नानी को ,
जवानी में माता - पिता को देख कर भी
जो समझ में नहीं आता
,वो अच्छी तरह समझ में आ जाता है ,
जब हम अकेले होते हैं ,अपने दर्द और दवा के साथ
लंबे ठहरने वाले ये  बेदर्द दर्द,
अक्सर हमारी जान लेकर ही जाते हैं !!  

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