देस – परदेस !!
पैदा होते ही मिल जाए गर
आपको इतनी “पॉकेट मनी”
जिसमे हो जाए “दूध””नैपी” के खर्च के साथ
सम्हालने वाली एक “नैनी”
तेरह बरस की उम्र से,
आपके खाते में जमा होने लगे
“काफी से ज्यादा मनी”
बेरोज़गार रहने तक
आपको मिले इतनी मनी
कि आप हर छह महीने में घूम आएं
उससे कभी “स्पेन”कभी “जर्मनी”
जब बूढ़े हो जाएँ आप,
निर्बल””नि:सहाय”
यह ना सोचें “पिलाने वाला भी नहीं है कोई पानी”
आपको मिलती है प्रति माह पर्याप्त पेंशन
कहलाती है जो “बेनिफिशरी मनी”
अलावा इसके,उपलब्ध है आपको,
न सिर्फ बस ,रेल,फोन नि:शुल्क बल्कि
स्नान,भोजन चिकित्सा दवा
साथ ही बाजार पार्क घुमाने हेतु “परिचारिका ”
भी मिले “मुफ्त” अपनी
यह स्वर्ग की “परिकल्पना नहीं है
यह है “सच्चाई”विकसित देशों की
नहीं है कोई “काल्पनिक “कहानी”
जहाँ रोज़-बा-रोज़ घूमने जाते हैं “वो”
हवा पर सवार ,गाते गुनगुनाते “मौजों की रवानी”
अब सुनो अपने देश की
कटु कठोर कलुषित ग्लानि
क्या देती है सरकार हमें
बस चले तो जनता की थाली की रोटी
और बदन से “लंगोटी”छीन लेने की
नीयत रखते अफसर नेताओं की
रोज़ खुलती है “नंगई”
रोज़ चुभती है कंटीली “नागफनी”
यही तो है “किस्मत हिंदुस्तानी ”
परदेस में फर्क नहीं होता अधिक
कौन “गरीब”कौन “धनी”
देस में घिसट घिसट कर जीता है
70% आम आदमी
और उसका “खून चूसता”दिखता है
30% “पावर””राजनीति”और पैसे का “धनी”
इतना मजबूत बना रक्खा है ,इन्होने जाल”
“अपने हिस्से का लाभ–और जनता को हानि ही हानि”
प्रयत्न करता है हर नागरिक सतत , तौर पर “अपनी अपनी”
मिल जाए छुटकारा “ऐसी व्यवस्था “”ऐसी नेतृत्व जमात से ”
ना जाने पीड़ा भोगनी होगी “कबतक”और”कितनी”
कब पाएंगे हम “विकसित देश”की श्रेणी
जब तक मिलता नहीं सच्चा “सेवक””हितचिंतक”
जो जिए “आम आदमी का जीवन”समझे “आम आदमी का दर्द”
देश के “अंतिम व्यक्ति” तक पर हो जिसकी दृष्टि
और “उसके भी “विकास की जिसने हो “ठानी”!!!!