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शुक्रवार, 23 सितंबर 2016

Dharm & Darshan ! Shiv Manas Pooja Arth !!

आवाहनं न जानामि न जानामि च पर्जनम्
पूजां चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्वरम्
गतं पापं गतं दुःखं गतं दारिद्र्य मैवच
आगतः सुख सम्पतिः पुन्याहाम तव दर्शनात्
मन्त्र हीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरम
यात पूजित मेयो देवः परिपूर्णं तदस्तुमे
अच्युतम केशवं रामनारायणं
श्री कृष्ण दामोदरं वासुदेवं हरे
श्रीधरम माधवं गोपिका वल्लभं
श्री जानकी नायकं रामचन्द्रम भजे
शिव मानस पूजा —-हे दयानिधे ! हे पशुपते! हे देव!यह रत्ननिर्मित सिंहासन शीतल जल से स्नान नाना रत्नावली विभूषित दिव्य वस्त्र ,कस्तूरी का गंध ,समन्वित चन्दन जूही व बिल्व पत्र से रचित पुष्पांजलि तथा धुप डीप यह सब मानसिक पूजोपहार ग्रहण कीजिये मैंने नवीन रत्नखण्डों से रचित सुवर्ण पात्र में घृत युक्त खीर दूध दधि सहित पांच प्रकार के व्यंजन कदलीफल ,शरबत अनेको शाक कपूर से सुवासित मीठा किया हुआ जल और ताम्बूल ये सब मन के द्वारा बना कर प्रस्तुत किये हैं कृपया इन्हे स्वीकार कीजिये
छात्र दो चंवर पंखा निर्मल दर्पण वीणा भेरी मृदंग दुन्दुभि के वाद्य गान और नृत्य साष्टांग प्रणाम नाना विधि स्तुतिं ये सब मैं संकल्प से ही आपको समर्पण करता हूँ प्रभो मेरी यह पूजा ग्रहण कीजिये हे शम्भो !मेरी आत्मा तुम हो बुद्धि पार्वती जी है प्राण आपके गुण हैं शरीर आपका मंदिर है ,सम्पूर्ण विषय भोग की रचना आपकी पूजा है निद्रा समाधी है मेरा चलना फिरना आपकी परिक्रमा है तथा सम्पूर्ण शब्द आपके स्तोत्र है इस प्रकार मई जो जो भी कर्म करता हूँ वह सब आपकी आराधना ही है प्रभो मैंने हाथ पैर वाणी शरीर कर्म कारण नेत्र अथवा मन से जो भी अपराध किये हैं वे विहित हों अथवा अविहित हों उन सबको आप क्षमा कीजिये हे करुणासागर ! श्री महादेव !! श्री शंकर ! आपकी जय हो !
ज्ञान रूपी अंधकार से अंधे हुए जीवों के नैत्र जिन्होंने ज्ञान रूपी अंजन की शलाका से खोल दिए हैं उन गुरु के लिए नमस्कार है। अखंड मंडलाकार यह जगत जिसमे व्याप्त है और जिन्होंने उस परम पद के दर्शन करा दिए है उन्हें नमस्कार
यह जो कुछ स्थावर जंगम जड़ चेतन जगत जिससे व्याप्त है और जिन्होंने उस परम पद के दर्शन करा दिए हैं उन गुरु के लिए नमस्कार है जिस चिन्मय अर्थात ज्ञान स्वरुप गुरु से यह चराचर त्रिभुवन व्याप्त है तथा जिन्होंने परम पद के दर्शन करा दिए हैं ,जो सम्पूर्ण वेदों के ज्ञान में मूर्धन्य हैं और जिनके चरण कमलों में वह श्रेष्ठ ज्ञान विद्यमान है तथा वेदांत रूपी कमल के लिए जो sury roop है उन गुरु को नमस्कार है चैतन्य मूर्ति चिरंतन आकाश से पर निर्लेप तथा बिंदु नाद तथा कला से भी जो पर हैं उन गुरु के लिए नमस्कार है।

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10 & 12 Nibandh Sangrah !! ( Hindi Essays For 10th & 12 Class Students !!

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