मेरे बारे में---Nirupama Sinha { M,A.{Psychology}B.Ed.,Very fond of writing and sharing my thoughts

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गुरुवार, 8 सितंबर 2016

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क्षरीर———
क्षरण होता रहता इसका
जाने कब से पता न चलता
जब घुटनो में दर्द पिराता,
जब आँखों से कम है सुझाता
बालों में चांदी झलकाता
दांत एक एक खोता जाता
अस्पताल के चक्कर खाता
दवाइयों के ढेर बढ़ाता
रूप रंग जिसपर इतराता
वो दूर कहीं खो जाएगा
तस्वीरों में देख जवानी ,
ठंडी आह निकल जायेगी
तब समझेगा,तो समझदार तू
वरना ,पता नहीं चल पायेगा
आज है दूजा तो कल तेरी बारी
तू भी बूढा हो जाएगा
अलग अलग क्षरणो से ,तेरा भी
समय ,सामना करायेगा ,
तेरी पीड़ा तुझे भोगनी
कोई साथ ना दे पायेगा
सोना चांदी हीरा मोती ,
बंगला बाड़ी,चाहे हो कितनी महँगी गाडी
उजाला काला सारा ,तेरा धन
दूजे के काम ही आएगा
तू आया था खाली हाथ
खाली हाथ ही जाएगा
“ऊपरवाला पूछेगा “आओ महारथी !
“अब आये हो ,वो भी खाली हाथ ?”
जिस दौलत का वो हिसाबी ,
जोड़ो अब भी ,हर पल हर दिन
किये गुनाह ,तो कर लो तौबा
वहां पुण्य काम आएगा
दिल तोडा हो कभी किसी का
मांग ले क्षमा ,क्या तेरा घट जाएगा
कौन करेगा सेवा तेरी ,जब बेबस हो जाएगा
बिना सहारे कैसे तू ,बुढ़ापा अपना काटेगा
लेकिन रूपया अब बहुत ज़रूरी
गर इसको तू संजोयेगा
जो तेरा होगा मदद गार,
वो ही हक़दार कहाएगा,
नहीं चाहती तुम्हे डराना
सच्चाई से जब हो सामना
मेरी इस कविता में सबको मेरी याद दिलाएगा !!!

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