आज़ादी के बाद कभी नहीं देखा
जनहित का ठोस धरातल
सिर्फ शब्द सुनायी पड़े हमेशा
बड़े बड़े भारी भरकम
जिनसे भरमाई जाती रही
देश की जनता बरसों बरस
लिबास बदल बदल के
बदल के चेहरों के नक़ाब
दिमाग में जनता को बेवकूफ बना कर
लूटने तजवीजे
पकती हुई साज़िशें
ज़ुबान पर फिर वही शब्दों का जाल
जनता की गाढ़ें पसीने की कमाई
जाये ,यात्राओं में हवाई
धरती के इस छोर से उस छोर तक
छूट ना जाए कोई बची बचाई
जानता है ,अब ना मिलेगा दूसरा मौका ,
बस लग गया था तुक्का
क्या जाता है देने में भाषण
इस पर कौन सा लगा है राशन
सुनाये जाओ सुनाए जाओ
डेढ़ बरस से भाषण ही तो सुनाई पड़ रहे हैं
एकदम मुफ्त ,चाहो तो एक पर एक फ्री
लेकिन उन भाषणो के शब्दों का खोखलापन
अब गूंजने लगा है ,अब उसमे गंभीरता काफूर है
याद करो ! डेढ़ बरस पहले का समय ,
दीवाने हुए जा रहे थे हम और तुम
आज दिल कह रहा है “एक अदद वोट की कीमत
तुम क्या जानो रमेश बाबू !
ये एक वोट तुम्हारे पांच बरस खा जाता है
सुना है ताज महल बनाने के बाद
कारीगरों के हाथ काट दिए गए थे
इ वी एम का बटन दबाते ,
ख़त्म हो जाता है आपका “वजूद”
बस पांच बरस के लिए
आप नालायक नामाकूल हो गए
अब अगले चुनावों के डेढ़ बरस पहले
फिर से शुरुआत होगी
एक नए अभियान की
कौन सा तीर बाकी है तरकश में
अब कैसे नाचेगी जनता
राजनीति के सर्कस में
कौन सा दिखाऊं जादू
कौनसा फेर दूँ मैं मंतर !
याद आ जाता सड़क पर डुगडुगी बजाता
वो कलन्दर ,जो चिल्लाता है
“चल जमूरे ! जो बोलूंगा वो करेगा”
कम्बल के अंदर छुपा जमूरा बोलता है “जी उस्ताद”
हर बात उस्ताद की मानता चला जाता है,जमूरा
चाहे बड़ी सी तलवार से उसका पेट ही
क्यों ना काट डाले उसका उस्ताद
वो तो आँखों का धोखा है ,क्योंकि ,
आखिर में हँसता मुस्कुराता खड़ा हो जाता है जमूरा ,
चिल्ला चिल्ला कर चिल्लर बटोरता है जमूरा
और असली पेट काटने वाला ,पांच साल बाद फिर ,
नए तमाशे के साथ झोली फैलाता है ये उस्ताद !
चिल्ला चिल्ला कर कहता है
अपना अनमोल वोट इसमें डाल दीजिये जनाब !!!