अनमोल—————–
तुम वह हो जिसे सबसे पहले
छुआ मैंने,अपने तन में,अपने मन में,
सुनना तुम्हारा स्पंदन,
मेरे जीवन का सबसे आल्हादित क्षण,
अकल्पनीय सुख का आभास,
तुम्हारे आने की आहट ,
चंद्रकलाओं की तरह,
तुम्हारे बढ़ने का अनुभव,
तुम्हारी अठखेलियां और नटखटपन,
मैंने छुआ,बिन देखे ही,अपने तन में,अपने मन में,
अपनी दोनों हथेलियों में तुम्हे रखे जाने का स्पर्ष ,
मेरे जीवन का सर्वाधिक अनमोल क्षण!
पुत्रवधु —————
तुम मेरे स्वप्नों में थीं,
उसी क्षण से,
जिस क्षण मैंने पहली बार उठाया था,
हौले से अपना नवजात शिशु।
वह धीरे धीरे समय के साथ ,
युवा होता रहा,
और मेरे मन के कोने में बसा,
तुम्हारा स्वप्न भी युवा होने लगा साथ साथ।
जब मैंने तुम्हे देखा पहली बार,
मुझे लगा अब हुआ मेरा स्वप्न साकार,
मेरे मन ने कहा ,तुम्ही तो हो,
जिसके लिये वर्षों से खुले थे मन के स्वागत द्वार।
हां वह तुम्ही हो,
जो मेरे स्वप्नों में थीं कल तक,
आज सामने खड़ी हो सशरीर .साकार,
चुरा लिया है तुमने हम सबका मन।
मोहित कर लिया है सबको,
आश्वस्त हो गई हूं ,
और निश्चिंत भी,
तुम्हे सौंप कर उत्तराधिकार।
नहीं हूं तुम्हारी जन्मदायिनी,
पर पाओगी तुम मुझमे,
एक माँ ,एक सखी,
एक संगिनी।
असीम आशीष रहेंगे सदैव,
तुम्हारे घर संसार के लिये ,
पुत्री रूपा ही रहोगी तुम,
बन कर मेरी पुत्रवधु!
तुम वह हो जिसे सबसे पहले
छुआ मैंने,अपने तन में,अपने मन में,
सुनना तुम्हारा स्पंदन,
मेरे जीवन का सबसे आल्हादित क्षण,
अकल्पनीय सुख का आभास,
तुम्हारे आने की आहट ,
चंद्रकलाओं की तरह,
तुम्हारे बढ़ने का अनुभव,
तुम्हारी अठखेलियां और नटखटपन,
मैंने छुआ,बिन देखे ही,अपने तन में,अपने मन में,
अपनी दोनों हथेलियों में तुम्हे रखे जाने का स्पर्ष ,
मेरे जीवन का सर्वाधिक अनमोल क्षण!
पुत्रवधु —————
तुम मेरे स्वप्नों में थीं,
उसी क्षण से,
जिस क्षण मैंने पहली बार उठाया था,
हौले से अपना नवजात शिशु।
वह धीरे धीरे समय के साथ ,
युवा होता रहा,
और मेरे मन के कोने में बसा,
तुम्हारा स्वप्न भी युवा होने लगा साथ साथ।
जब मैंने तुम्हे देखा पहली बार,
मुझे लगा अब हुआ मेरा स्वप्न साकार,
मेरे मन ने कहा ,तुम्ही तो हो,
जिसके लिये वर्षों से खुले थे मन के स्वागत द्वार।
हां वह तुम्ही हो,
जो मेरे स्वप्नों में थीं कल तक,
आज सामने खड़ी हो सशरीर .साकार,
चुरा लिया है तुमने हम सबका मन।
मोहित कर लिया है सबको,
आश्वस्त हो गई हूं ,
और निश्चिंत भी,
तुम्हे सौंप कर उत्तराधिकार।
नहीं हूं तुम्हारी जन्मदायिनी,
पर पाओगी तुम मुझमे,
एक माँ ,एक सखी,
एक संगिनी।
असीम आशीष रहेंगे सदैव,
तुम्हारे घर संसार के लिये ,
पुत्री रूपा ही रहोगी तुम,
बन कर मेरी पुत्रवधु!
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