काबे से बुतकदे से कभी बज्मे जाम से 
आवाज़ दे रहा हूँ तुझे हर मकाम से!

मुफलिसी अपनों को बेगाना बना देती है 
कोई आता नहीं गिरती हुई दीवार के पास!

जिस तरह आशिक न जाए कू ए जाना छोड़ कर,
हमसे कहीं जाया न जाए दिल्ली की गलियां छोड़ कर!

जब तक जिए बिखरते रहे टूटते रहे ,
हम सांस सांस क़र्ज़ की सूरत  अदा हुए!

प्रेम गली अति सांकरी ,जा में दो न समाये ,
जब मैं हूँ तो तू नहीं जो तू है तो मैं नाही!—–कबीर 

माना की जमीं को गुलज़ार न कर सके,
कुछ ख़ार कम कर गए गुजरे जिधर से हम!

नाम लिख जाते हैं खण्डरात पे आने वाले,
लौट के कब आते हैं यहाँ से जाने वाले!

गैरों ने तो रहम कर के अपने तलवार कर दिए हैं म्यान,
पर अपनों के वार बड़े धारदार निकले!

आँखों को एक इशारे की ज़हमत तो दीजिये,
 कदमो में दिल बिछा दूँ इजाजत तो दीजिये!

यूँ देखती है जैसे नहीं  देखती नज़र 
ज़ालिम के देखने का,ये अंदाज़ देखना!

जान आँखों में रही जी से गुजरने न दिया,
अच्छी दीदार की हसरत थी के मरने न दिया!

अल्लाह रे बेखुदी की तेरे पास बैठ कर ,
तेरा ही इंतजार किया है कभी कभी !

तमाम उम्र तेरा इंतज़ार कर लेंगे,
मगर ये रंज रहेगा के जिंदगी कम है!

कहीं वो आके मिटा न दें इंतज़ार का लुत्फ़,
कहीं कुबूल न हो जाए इल्तजा मेरी!

अभी कहूँ तो लोग करेंगे शर्मसार मुझे,
क़ि किसके वादे पे है इंतज़ार मुझे!

मैं जिन्दा था कि तेरा इंतज़ार ख़त्म न हो,
जो तू मिला तो अब सोचता हूँ के मर जाऊं!

अब हम मिले तो कई लोग बिछड़ जायेंगे,
इंतज़ार ओर करो अगले जनम तक मेरा!

न अपनों से न बेगानों से है,कोई गिला मुझको ,
दिया धोखा तो मेरे ही मुकद्दर ने मुझको!

ज़माने भर को दुश्मन कर लिया तेरी मोहब्बत में,
बहुत महंगा तेरी उल्फत का अफसाना पड़ा मुझको!

लहराती हुई यह ज़ुल्फ़,हर हाल में क़यामत है,
उलझी तो पड़ी रुखसारों पर,सुलझी तो कमर से जा लगी!

आईना देख देख के यह कह रहे हैं वो,
लो ज़ुल्फ़ से वह काम की जंजीर से न हो!

यह कह कर सितमगर ने जुल्फों को झटका 
बहुत दिनों से दुनिया परेशान नहीं है!

तुम राह में चुपचाप खड़े हो तो गए हो,
किस किस को बताओगे कि घर क्यों नहीं जाते!

अब मुझको उनसे कोई शिकायत नहीं रही,
इसकी भी उनको शिकायत है क्या करूँ?

 खुद हुए रुसवा ,मुझको रुसवा किया,
जिस जगह बैठे ,मेरा चर्चा किया!

मेरी सूरत में कोई और सही,
अपनी तस्वीर में तुमने भी किसी को देखा!

अपनी हालत का खुद एहसास नहीं है मुझको,
मैंने औरों से सुना है कि परेशान हूँ मैं!

या वो मेरे बिगड़े हुए तेवर पहचान गए,
या कुछ बात ही ऐसी थी कि झट मान गए!

दामन झटक के मंजिल ए गम से गुजर गया,
 उड़ के देखती रही गर्द ए सफ़र मुझे!

मुझे यह  डर है तेरी आरजू नमित जाए,
बहुत दिनों से तबियत मेरी उदास नहीं!

उन्हें हम याद आए या हमारी मौत मंडराई  है,
मुसलसल आई है क्यों हिचकियाँ भगवान ही जाने!

अचरज है मर मर के जिन्दा हूँ अब तलक ,
लोगों ने तो सौ सौ बार मेरा क़त्ल किया है!

रोते रोते हंसते जाना,सबके बस की बात नहीं,
चीर के सीना ज़ख्म दिखाना सबके बस की बात नहीं!

या इलाही क्या क़यामत है वह लेते हैं जब अंगड़ाई ,
मेरे सीने में सब ज़ख्मों के टाँके टूट जाते हैं!

एक सीने में न थी दो की जगह,
दिल को खोया दर्द को पैदा किया!

हमने सीने से लगे लगाया दिल न अपना हो सका,
मुस्कुराकर तुमने देखा दिल तुम्हारा हो गया!

सर शमा सा कटाईये पर दम न मारिये,
मंजिल हज़ार दूर हो हिम्मत न हारिये!

मुझमे और शमा में होती थीं ये बातें शबे हिज्र ,
आज की रात बचेंगे तो सहर देखेंगे!

चार तिनके ही सही मगर सैयाद ,
मेरी दुनिया थी आशियाने में!

है खबर गर्म उनके आने की,
आज घर में बोरिया न हुआ!

मेरे गम ने होश उनके भी खो दिए,
वो समझाते समझाते खुद रो दिए!

ताज पर ख़त्म हुई प्यार की अजमत रज्मी ,
मकबरे अब कभी  शाहकार नहीं बन सकते!

न जाने दिल को क्या होता है,क्या क्या भूल जाता है,
तुझे जब देखता है ,धड़कना भूल जाता है!

हाथ बेशक मिलाएं हर सियासतदां से आप,
लेकिन उसके बाद अपनी उंगलियाँ गिन लीजिये!

गुलशन में उसको रहने का हक नहीं,
गुलशन की हिफाज़त को जो तैयार नहीं!

इन शोख हसीनो पे जो आती है जवानी,
तलवार बना देती है एक एक अदा को!

कितनी जादूगर है जवानी
 मिटटी पर सोने का पानी !

क्या कैसे किस तरह यह जवानी गुजर गयी,
बदनाम करने आई थी बदनाम कर गयी!

मुंह फेर के यूँ गयी जवानी,
याद आ गया रूठना किसी का!

वह लड़कपन के दिन थे ये जवानी की बहार,
पहले भी रुख पर तेरे तिल था,मगर कातिल न था!

इधर आँख लगी उधर ढल गयी,
 जवानी भी थी एक दोपहर धूप की!

उम्मीद क्या फिर आये गुजरी हुई जवानी,
वापस न तीर आया छूट कर कभी कमां से!

कर रहा था गेम जहाँ का हिसाब,
आज तुम बेहिसाब याद आये!

न गरज किसी से न वास्ता,मुझे काम अपने ही काम से,
तेरे ज़िक्र से तेरी फ़िक्र से तेरी याद से तेरे नाम से!

सिर्फ एक कदम गलत उठा था राहे शौक में,
मंजिल तमाम उम्र मुझे  ढूँढती  रही!

सुनते हैं इश्क  नाम के गुजरे हैं एक बुजुर्ग ,
हम भी फ़कीर उसी सिलसिले के हैं!

जख्म हैं दिल में तेरी याद दिलाने के लिए,
मैं हूँ मिटने के लिए तू है मिटाने के लिए!