भागती फिरती  थी दौलत जब तलब करते  थे हम
अब जो  नफरत  हमने की तो बेकरार आने को है!
होठों ने रुसवा किया पर दिल उन्हें रुसवा करे कैसे,
आँखों से दूर किया मगर साँसों से कैसे दूर करे।
जिंदगी ख़त्म होने को है,पर कुछ निशां हैं बाकी,
दिल की गहराई नापने को,एक ऐसी मुलाकात है बाकी!
या अनुरागी चित्त की गति समझे नहीं कोय,
ज्यों ज्यों डूबे श्याम रंग,त्यों त्यों उज्जवल होय!
आज क्या सूझी मेरे महबूब को,
मुस्कुराकर एक झलक दिखला गया!
अपना काम है मोहब्बत,बाकि उसका काम,
जब चाहे वो रूठे हमसे,जब चाहे मान जाए!
पहले इसमें एक अदा थी,नाज़ था अन्दाज़ था,
रूठना अब तेरी आदत में शामिल हो गया!
हम यादों की  दहलीज पर  बैठे हुए कब से, 
इस दिल के सुलगने का सबब सोच रहे   हैं!
तुमने न किया याद कभी भूल कर हमें,
हमने तुम्हारी याद में सबकुछ भुला दिया!
एक बार जो मुस्कुरा कर देखा था आपने,
नाजुक जिगर में दर्द सा उठता मिला मुझे!
क्यूँ वो सजदा करे क्यूँ वो इबादत करे,
खुशनसीब है वो शख्स जिसकी तू चाहत करे!
एक ही डोरे में बंधी उनकी नजाकत ,
जब हिलती है गर्दन तो लचकती है कमर भी!
जब भी तकमील मोहब्बत का ख़याल आता है,
मुझको अपने ही ख्यालों पे हंसी आती है!
वो कांटें बो रहे हैं हर कदम,
और मैं हंस हंस के गुजरता जा रहा हूँ!
रोज खा लेते हैं हँसते हुए चेहरों से फरेब,
क्या करें अपनी निगाहों में मुरव्वत है बहुत!
मिल के  एहसास उसने दूना कर दिया,
कुछ इस तरह किया आबाद कि सूना कर दिया!
कहीं जवाब है इस हद की बेगुमानी का,
कि शुक्र भी करूँ आप इसे गिला कहिये!
नसीम तेरे शबिस्तां से गुजर के आई है ,
मेरी सहर में है महक तेरे बदन की सी!
घर से हर वक़्त निकल आते हो खोले हुए बाल,
शाम देखो न मेरी जान सवेरा देखो!
तमाशा इसको समझे खेल समझे,जिंदगी समझे ,
बस उसकी जिंदगी है मौत को जिंदगी समझे!
हमसे कर लेते गिला क्यों गैर से शिकवा किया,
बात तो कुछ भी न थी,जिसका फ़साना कर दिया!
शायद उन्हें याद आ गयी मेरी निगाहे शौक ,
आईने से वह मुंह फेर कर शर्माए हुए हैं!
मुद्दतें हो गयीं खता करते करते,
शर्म आती है अब दुआ करते!
यह शोखी है नै,यह शर्म दुनिया से निराली है,
मिला कर आँख कहते हैं इधर देखे तो अँधा हो!
नाम मेरा सुनते ही शर्मा गए,
तुमने खुद आप को रुसवा किया!
जवाब सोच कर वो दिल में मुस्कुराते हैं,
अभी जबान पर मेरे सवाल भी न था!
यह नाजे हुस्न तो देखो,दिल को तडपा  कर ,
नज़र मिलाते नहीं मुस्कुराये जाते हैं!
उफ़!वह देखना नीची नज़र से,
सितम,मुस्कुराना मुंह फिरा कर!
हया से सर झुका लेना ,अदा से मुस्कुरा देना,
हसीनो को भी कितना आसान है,बिजली गिरा देना!
वाबस्ता मेरी याद से कुछ तल्खियाँ भी थीं,
अच्छा किया जो मुझको फरामोश कर दिया!
भुला बैठे हो हमको आज लेकिन ,यह समझ लेना,
बहुत पछताओगे जिस वक़्त कल हम याद आयेंगे!
करता हूँ तेरे मिलने की दिन रात दुआएं,
वाबस्ता तेरी याद से याद खुदा भी  है!
याद एक ज़ख्म बन गई वरना ,
भूल जाने का कुछ ख्याल तो था!
हममे ही थी न कोई बात ,याद न तुम कर सके,
तुमने हमें भुला दिया ,हम तुम्हे भुला न सके!
  
आँखों में आँखें डाल कर जो देखा आपने,
बेखुदी में मैं आपको खुदा कह गया!
अपनी निगाहे शौक से छुपिये तो जानिए,
महफ़िल में आपने पर्दा किया तो क्या!
अदा आई ,जफ़ा आई ,गुरूर आया,हिजाब आया,
हजारों आफतें लेकर हसीनो पे शबाब आया!
जिंदगी से जो भी मिले सीने से लगा लो,
गम को सिक्के की तरह उछला नहीं करते!
आईना देखते हैं वो छुप छुप कर बार बार,
जुल्फे बिगाड़ कर,कभी जुल्फें संवार कर!
हवा के साथ साथ सौ सौ खा गए बल,
नजाकत देखिये उनकी कमर की!
उठा कर  की पत्ती नजाकत से मसल डाली,
इशारे से कहा हम दिल का ऐसा हाल करते हैं!
चांदी का बदन सोने की नज़र इसपे ये  क़यामत क्या कहना,
किस किस पे तुम्हारे जलवों ने तोड़ी है क़यामत क्या कहना!
क्यूँ वो सजदा करें क्यूँ वो इबादत करें,
खुशनसीब है वो शख्स जिसकी तू चाहत करे!
ज़िक्र जब छिड़ गया क़यामत का,
बात पहुंची तेरी जवानी तक!
एक ही डोरे बंधी उनकी नजाकत,
जब हिलती है गर्दन तो लचकती है कमर भी!
कम से कम गम दुनिया को भुला सकता था,
पर तेरी याद ने ये काम भी मुझे करने न दिया!
खुदाया मान भी जाइये हमारी जान जाती है,
तुम्हारी मुस्कराहट से जान में जान आती है!
शमा मुस्कुराती रही रात भर ,
परवाना जल के राख हो गया!
हर एक दागे तमन्ना कलेजे से लगाता हूँ,
कि घर आई दौलत को ठुकराया नहीं जाता!
दिए जलाये उम्मीदों के दिल के गिर्द बहुत,
किसी तरफ से न इस घर में रोशनी आयी!
कौन होता है बुरे वक़्त हालत का शरीक,
मरते दम आँख को देखा है कि फिर जाती है!
दोस्त या अज़ीज़ ,खुद्फरेबियों के नाम,
आज आपके सिवा कोई आपका नहीं!
गया शबाब तो अब आइना क्या देखूं ,
वो लुत्फ़ ही नहीं रहा बाग़ में बहार के बाद!
अब उन्ही बातों को सुनते हैं तो आती है हंसी,
बेतरहा ईमान ले आते हैं जिनकी बातों पर!
तमाम उम्र मेरा दम उसी धुंए में घुटा,
वो एक चिराग था मैंने उसे बुझाया है!
इस जहां में तो अपना साया भी 
रोशनी के साथ ही तो चलता है!
हाय ! बादल भी बेवफा निकले,
बस्तियां देख कर बरसते हैं!
मंजिलें इश्क की यूँ तय हुईं ,
कभी उठाये गए कभी बुलाये गए!
वैसे भी अब दिलों में ताल्लुक नहीं रहा,
क्यूँ दरम्या उठाते हो दीवार बेसबब!
मेरे नै तो मेरे सिम्त देखते क्यों हो,
मेरी समझ में अभी तक,ये बात आ न सकी!
 कर मेरी तहरीर चला आया है मिलने,
देखो मेरी तहरीर में दम है के नहीं!
आँखों में आँखे डाल कर ,जो देखा आपने,
बेखुदी में मैं आपको खुद कह गया!
ये सोचते ही रहे और बहार ख़त्म हुई,
कहाँ चमन में नशेमन बने न बने!
तन्हाई की खलिश है,यूँ दरमियान में,
हर शख्स जैसे कैद हो अंधे मकान में!
न आया हमें इश्क करना नहीं आया,
मरे उम्र भर और मरना न आया!
हम ही थे जी निभा गए जिन्दादिली के साथ,
वरना गुजर कठिन थी जिंदगी के साथ!
अब जिंदगी की भीड़ में मिलता है किससे कौन,
अब जिसको देखिये उसे अपनी तलाश है!
मैं भी ज़ख्म ज़ख्म,मेरा दिल भी दागदार,
मुझपे दोस्तों की नवाजिश बहुत हुई!
क्या ज़ख्म थे की रूह का नासॊए बन गए,
क्या दर्द था जो दिल की तहों में उतर गया!
इससे   वक़्त क्या ढाएगा इंसां पर सितम,
जिस्म बूढा कर दिया और दिल जवां रहने दिया!
ख़ामोशी से मुसीबत और भी संगीन होती है,
तड़प ए दिल तड़पने से ज़रा तस्कीन होती है!
वक़्त पे दोस्त काम आयेंगे,
दिल में यह मुगालता न रखना!
दामन झटक के वो तो अलग हो गए,
मुझको तमाम उम्र सम्हालना मुहाल है!
समंदर पुरसुकूं है  गहरा भी है,
वरना मचलती नदियों में कोई गहराई नहीं होती!
खुद गिरे लेकिन छलकने न दी मय,
अपने सर ले ली बालाएं जाम की!
मेरे सामने महफ़िल में आये बैठे हैं,
अपने हाथों में मेरा दिल छुपाये बैठे हैं,
जब हमने पूछा कि क्या है हाथों में,
बहन बना दिया कि मेहंदी लगाये बैठे हैं!
फिर याद आ गयी बेवफाई तेरी,
आज फिर आँख भर आयी है!
काबे से बुतकदे से कभी बज्मे जाम से 
आवाज़ दे रहा हूँ तुझे हर मकाम से!
मुफलिसी अपनों को बेगाना बना देती है 
कोई आता नहीं गिरती हुई दीवार के पास!
जिस तरह आशिक न जाए कू ए जाना छोड़ कर,
हमसे कहीं जाया न जाए दिल्ली की गलियां छोड़ कर!
जब तक जिए बिखरते रहे टूटते रहे ,
हम सांस सांस क़र्ज़ की सूरत  अदा हुए!
प्रेम गली अति सांकरी ,जा में दो न समाये ,
जब मैं हूँ तो तू नहीं जो तू है तो मैं नाही!—–कबीर 
माना की जमीं को गुलज़ार न कर सके,
कुछ ख़ार कम कर गए गुजरे जिधर से हम!
नाम लिख जाते हैं खण्डरात पे आने वाले,
लौट के कब आते हैं यहाँ से जाने वाले!
गैरों ने तो रहम कर के अपने तलवार कर दिए हैं म्यान,
पर अपनों के वार बड़े धारदार निकले!
आँखों को एक इशारे की ज़हमत तो दीजिये,
 कदमो में दिल बिछा दूँ इजाजत तो दीजिये!
यूँ देखती है जैसे नहीं  देखती नज़र 
ज़ालिम के देखने का,ये अंदाज़ देखना!
जान आँखों में रही जी से गुजरने न दिया,
अच्छी दीदार की हसरत थी के मरने न दिया!
अल्लाह रे बेखुदी की तेरे पास बैठ कर ,
तेरा ही इंतजार किया है कभी कभी !
तमाम उम्र तेरा इंतज़ार कर लेंगे,
मगर ये रंज रहेगा के जिंदगी कम है!
कहीं वो आके मिटा न दें इंतज़ार का लुत्फ़,
कहीं कुबूल न हो जाए इल्तजा मेरी!
अभी कहूँ तो लोग करेंगे शर्मसार मुझे,
क़ि किसके वादे पे है इंतज़ार मुझे!
मैं जिन्दा था कि तेरा इंतज़ार ख़त्म न हो,
जो तू मिला तो अब सोचता हूँ के मर जाऊं!
अब हम मिले तो कई लोग बिछड़ जायेंगे,
इंतज़ार ओर करो अगले जनम तक मेरा!
न अपनों से न बेगानों से है,कोई गिला मुझको ,
दिया धोखा तो मेरे ही मुकद्दर ने मुझको!
ज़माने भर को दुश्मन कर लिया तेरी मोहब्बत में,
बहुत महंगा तेरी उल्फत का अफसाना पड़ा मुझको!
लहराती हुई यह ज़ुल्फ़,हर हाल में क़यामत है,
उलझी तो पड़ी रुखसारों पर,सुलझी तो कमर से जा लगी!
आईना देख देख के यह कह रहे हैं वो,
लो ज़ुल्फ़ से वह काम की जंजीर से न हो!
यह कह कर सितमगर ने जुल्फों को झटका 
बहुत दिनों से दुनिया परेशान नहीं है!
तुम राह में चुपचाप खड़े हो तो गए हो,
किस किस को बताओगे कि घर क्यों नहीं जाते!
अब मुझको उनसे कोई शिकायत नहीं रही,
इसकी भी उनको शिकायत है क्या करूँ?
 खुद हुए रुसवा ,मुझको रुसवा किया,
जिस जगह बैठे ,मेरा चर्चा किया!
मेरी सूरत में कोई और सही,
अपनी तस्वीर में तुमने भी किसी को देखा!
अपनी हालत का खुद एहसास नहीं है मुझको,
मैंने औरों से सुना है कि परेशान हूँ मैं!
या वो मेरे बिगड़े हुए तेवर पहचान गए,
या कुछ बात ही ऐसी थी कि झट मान गए!
दामन झटक के मंजिल ए गम से गुजर गया,
 उड़ के देखती रही गर्द ए सफ़र मुझे!
मुझे यह  डर है तेरी आरजू नमित जाए,
बहुत दिनों से तबियत मेरी उदास नहीं!
उन्हें हम याद आए या हमारी मौत मंडराई  है,
मुसलसल आई है क्यों हिचकियाँ भगवान ही जाने!
अचरज है मर मर के जिन्दा हूँ अब तलक ,
लोगों ने तो सौ सौ बार मेरा क़त्ल किया है!
रोते रोते हंसते जाना,सबके बस की बात नहीं,
चीर के सीना ज़ख्म दिखाना सबके बस की बात नहीं!
या इलाही क्या क़यामत है वह लेते हैं जब अंगड़ाई ,
मेरे सीने में सब ज़ख्मों के टाँके टूट जाते हैं!
एक सीने में न थी दो की जगह,
दिल को खोया दर्द को पैदा किया!
हमने सीने से लगे लगाया दिल न अपना हो सका,
मुस्कुराकर तुमने देखा दिल तुम्हारा हो गया!
सर शमा सा कटाईये पर दम न मारिये,
मंजिल हज़ार दूर हो हिम्मत न हारिये!
मुझमे और शमा में होती थीं ये बातें शबे हिज्र ,
आज की रात बचेंगे तो सहर देखेंगे!
चार तिनके ही सही मगर सैयाद ,
मेरी दुनिया थी आशियाने में!
है खबर गर्म उनके आने की,
आज घर में बोरिया न हुआ!
मेरे गम ने होश उनके भी खो दिए,
वो समझाते समझाते खुद रो दिए!
ताज पर ख़त्म हुई प्यार की अजमत रज्मी ,
मकबरे अब कभी  शाहकार नहीं बन सकते!
न जाने दिल को क्या होता है,क्या क्या भूल जाता है,
तुझे जब देखता है ,धड़कना भूल जाता है!
हाथ बेशक मिलाएं हर सियासतदां से आप,
लेकिन उसके बाद अपनी उंगलियाँ गिन लीजिये!
गुलशन में उसको रहने का हक नहीं,
गुलशन की हिफाज़त को जो तैयार नहीं!
इन शोख हसीनो पे जो आती है जवानी,
तलवार बना देती है एक एक अदा को!
कितनी जादूगर है जवानी
 मिटटी पर सोने का पानी !
क्या कैसे किस तरह यह जवानी गुजर गयी,
बदनाम करने आई थी बदनाम कर गयी!
मुंह फेर के यूँ गयी जवानी,
याद आ गया रूठना किसी का!
वह लड़कपन के दिन थे ये जवानी की बहार,
पहले भी रुख पर तेरे तिल था,मगर कातिल न था!
इधर आँख लगी उधर ढल गयी,
 जवानी भी थी एक दोपहर धूप की!
उम्मीद क्या फिर आये गुजरी हुई जवानी,
वापस न तीर आया छूट कर कभी कमां से!
कर रहा था गेम जहाँ का हिसाब,
आज तुम बेहिसाब याद आये!
न गरज किसी से न वास्ता,मुझे काम अपने ही काम से,
तेरे ज़िक्र से तेरी फ़िक्र से तेरी याद से तेरे नाम से!
सिर्फ एक कदम गलत उठा था राहे शौक में,
मंजिल तमाम उम्र मुझे  ढूँढती  रही!
सुनते हैं इश्क  नाम के गुजरे हैं एक बुजुर्ग ,
हम भी फ़कीर उसी सिलसिले के हैं!
जख्म हैं दिल में तेरी याद दिलाने के लिए,
मैं हूँ मिटने के लिए तू है मिटाने के लिए!
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