मेरे बारे में---Nirupama Sinha { M,A.{Psychology}B.Ed.,Very fond of writing and sharing my thoughts

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गुरुवार, 21 सितंबर 2017

EK BHAVPOORNN KAVITA !!





एक कवि​ नदी के किनारे खड़ा था ! 
तभी वहाँ से ​एक लड़की​ का ​शव​ 
नदी में तैरता हुआ जा रहा था।
तो तभी ​कवि ने उस शव​ से पूछा ----


कौन हो तुम ओ सुकुमारी,
​बह रही नदियां के जल में ?​

कोई तो होगा तेरा अपना,
​मानव निर्मित इस भू-तल में !​

किस घर की तुम बेटी हो,
​किस क्यारी की कली हो तुम ?​

किसने तुमको छला है बोलो,
​क्यों दुनिया छोड़ चली हो तुम ?​

किसके नाम की मेंहदी बोलो,
​हांथों पर रची है तेरे ?​

बोलो किसके नाम की बिंदिया,
​मांथे पर लगी है तेरे ?​

लगती हो तुम राजकुमारी,
​या देव लोक से आई हो ?​

उपमा रहित ये रूप तुम्हारा,
​ये रूप कहाँ से लायी हो?​
..........

​दूसरा दृश्य----​

​कवि​ की बातें सुनकर
​लड़की की आत्मा​ बोलती है...


कविराज मुझ को क्षमा करो,
​गरीब पिता की बेटी हूं !​

इसलिये मृत मीन की भांती,
​जल धारा पर लेटी हुँ !​

रूप रंग और सुन्दरता ही,
​मेरी पहचान बताते है !​

कंगन, चूड़ी, बिंदी, मेंहदी,
​सुहागन मुझे बनाते है !​

पिता के सुख को सुख समझा,
​पिता के दुख में दुखी थी मैं !​

जीवन के इस तन्हा पथ पर,
​पति के संग चली थी मैं !​

पति को मेने दीपक समझा,
​उसकी लौ में जली थी मैं !​

माता-पिता का साथ छोड़ 
​उसके रंग में ढली थी मैं !​

पर वो निकला सौदागर,
​लगा दिया मेरा भी मोल !​

दौलत और दहेज़ की खातिर
​पिला दिया जल में विष घोल !​

दुनिया रुपी इस उपवन में,
​छोटी सी एक कली थी मैं !​

जिस को माली समझा,
​उसी के द्वारा छली थी मैं !​

इश्वर से अब न्याय मांगने,
​शव शैय्या पर पड़ी हूँ मैं !​

दहेज़ की लोभी इस संसार मैं,
​दहेज़ की भेंट चढ़ी हूँ में !​

​दहेज़ की भेंट चढ़ी हूँ मैं !!​


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