पुस्तकों का मूल्य रत्नों से भी अधिक है क्योंकि रत्न बाहरी चमक दमकदीखते हैं जबकि पुस्तकें अन्तः कारन को उज्जवल कर देतीं हैं --गाँधी
विचारों के युद्ध में पुस्तकें अस्त्र हैं --बर्नार्ड शॉ
पुस्तकें जीते जागते देवता हैं उनकी सेवा करके तुरंत वरदान प्राप्त किया जा सकता है --अज्ञात
मानव जाती ने जो कुछ किया सोचा और पाया है वह पुस्तकों के जादू भरे पृष्ठों में सुरक्षित है --कार्लाइल
पुस्तक जेब में रखा हुआ बाग़ है
मैं नरक में भी पुस्तकों का स्वागत करूँगा क्योंकि इसमें वो शक्ति है की जहाँ ये होंगी वहां आप ही स्वर्ग बन जाएगा --लोकमान्य तिलक
बिना पुस्तकों के ईश्वर मौन है न्याय निद्रित है प्राकृतिक विज्ञानं स्तब्ध है दर्शन लंगड़ा है शब्द गूंगे हैं और सभी वस्तुएं पूर्ण अन्धकार में हैं--बारथोलिन
जो पैन गईं कर पुस्तकों का मूल्य देते हैं उनका मन पुस्तक के नीचे दबकर ही कब्र में पहुँच जाता हैं --टैगोर
पूजा --हम जिसकी पूजा करते हैं उनके सामान हो जाते हैं पूजा का अधिक कुछ मतलब नहीं--गाँधी
तुम ईश्वर और धन दोनों की पूजा एक साथ नहीं कर सकते --बाइबिल
मनुष्य ही परमात्मा का सर्वोच्च साक्षात् मंदिर है इसलिए
पेट--इंसान अपने आप को ईश्वर नहीं समझता इसका कारण पेट है --नीत्शे
पापी पेट तू सब कुछ कर सकता है मान और अभिमान,ग्लानि और लज्जा ये सब काली घटाओं की ओट में छिप जाते हैं --प्रेमचंद
प्रकृति ---प्रकृति ईश्वर की कला है --दांते
प्रकृति और ववेक सदा एक ही बात करते हैं --जुवेनल
प्रकृति की आज्ञा मान कर ही हम उसका नेतृत्व करते हैं --बेकन
विचारों के युद्ध में पुस्तकें अस्त्र हैं --बर्नार्ड शॉ
पुस्तकें जीते जागते देवता हैं उनकी सेवा करके तुरंत वरदान प्राप्त किया जा सकता है --अज्ञात
मानव जाती ने जो कुछ किया सोचा और पाया है वह पुस्तकों के जादू भरे पृष्ठों में सुरक्षित है --कार्लाइल
पुस्तक जेब में रखा हुआ बाग़ है
मैं नरक में भी पुस्तकों का स्वागत करूँगा क्योंकि इसमें वो शक्ति है की जहाँ ये होंगी वहां आप ही स्वर्ग बन जाएगा --लोकमान्य तिलक
बिना पुस्तकों के ईश्वर मौन है न्याय निद्रित है प्राकृतिक विज्ञानं स्तब्ध है दर्शन लंगड़ा है शब्द गूंगे हैं और सभी वस्तुएं पूर्ण अन्धकार में हैं--बारथोलिन
जो पैन गईं कर पुस्तकों का मूल्य देते हैं उनका मन पुस्तक के नीचे दबकर ही कब्र में पहुँच जाता हैं --टैगोर
पूजा --हम जिसकी पूजा करते हैं उनके सामान हो जाते हैं पूजा का अधिक कुछ मतलब नहीं--गाँधी
तुम ईश्वर और धन दोनों की पूजा एक साथ नहीं कर सकते --बाइबिल
मनुष्य ही परमात्मा का सर्वोच्च साक्षात् मंदिर है इसलिए
पेट--इंसान अपने आप को ईश्वर नहीं समझता इसका कारण पेट है --नीत्शे
पापी पेट तू सब कुछ कर सकता है मान और अभिमान,ग्लानि और लज्जा ये सब काली घटाओं की ओट में छिप जाते हैं --प्रेमचंद
प्रकृति ---प्रकृति ईश्वर की कला है --दांते
प्रकृति और ववेक सदा एक ही बात करते हैं --जुवेनल
प्रकृति की आज्ञा मान कर ही हम उसका नेतृत्व करते हैं --बेकन
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