उठा के आईना दिखला दिया उसे मैंने
न सूझी आरिजे गुलगूँ की जब मिसाल मुझे ---बर्क़
चमन परास्त हूँ दामन में भर लिए कांटे
न गुल छुआ न किसी गुल का परैहन छेड़ा ---असद
ख्वाहिशें सब मिट गयीं ,हसरत हमारी मिट चुकी
मिट गयी खुद से ख़ुशी ,हस्ती हमारी मिट चुकी
हो गया बर्बाद घर ,बस्ती हमारी लूट चुकी
मिट चुके हम खुद में खुद ,साड़ी खुदाई मिट चुकी
अपनी तबाहियों का मुझे कोई गम नहीं
तुमने किसी के साथ मोहब्बत निभा तो दी ---साहिर लुधियानवी
मिटते हुओं को देख कर क्यों रो न दे "मजाज़"
आखिर किसी के हम भी मिटाए हुए तो हैं --"मजाज़"
इधर न देख मुझे बेकरार रहने दे
मेरी नज़र में मेरा ऐतबार रहने दे ---फनी बदायुनी
नहीं चाह मेरी अगर उसे नहीं राह दिल में तो किसलिए
मुझे रोते देख वह रो दिया ,मेरा हाल सुन के हुआ क्लक ---मोमिन
लगता नहीं है दिल मेरा ,उजड़े दयार में ,
उम्र दराज मांग के लए थे चार दिन
दो आरज़ू में काट गए ,दो इंतज़ार में
कह दो इन हसरतों से कहीं और जा बसें
इतनी जगह कहाँ है दिले दागदार में
इतना है बदनसीब ज़फर दफ्न के लिए
दो गज ज़मीन भी न मिली कूचे यार में ---बहादुर शाह ज़फर
बिजलियों से ग़ुरबत में कुछ भरम तो बाकी है
जल गया मकां यानि कोई था मकां अपना
तकमीले बशर नहीं है सुलतान होना
या सफ़ में फ़रिश्ते को नुमाया होना
तकमील है अज्जे बंदगी का एहसास
इंसान की मेराज़ है इन्सां होना --फनी बदायुनी
हम किया करते हैं अश्कों से तवाजो क्या क्या
जब ख्यालों में वो आ जाते हैं मेहमां की तरह
यूँ तेरे माहौल में ढल कर अपना आप भुला बैठा हूँ
जैसे टूटे तारे की लौ जैसे ढलते चाँद के साए -----क़त्ल शिफ़ाई
कहीं मज़ाके नज़र को करार मिल न सका
कभी चमन से कभी कहकशां से गुज़रा हूँ
तेरे करीब से गुज़रा हूँ इस तरह कि मुझे
खबर भी न हो सकी मैं कहाँ कहाँ से गुज़रा हूँ ---जगन्नाथ आज़ाद
कर न फ़रियाद ख़ामोशी में असर पैदा कर
दर्द बन कर दिले बदर्द में घर पैदा कर
तन्हाईए शामे गम के डर से
कुछ उनसे जवाब पा रहा हूँ
लज़्ज़त कश आरज़ू फानी
दानिस्ता फरेब खा रहा हूँ ---फनी बदायुनी
यही ज़िन्दगी मुसीबत यही ज़िन्दगी मसर्रत
यही ज़िन्दगी हक़ीक़त ,यही ज़िन्दगी फ़साना
जिसे पा सका न ज़ाहिद जिसे छू सका न सूफी
वही तार छेड़ता है मेरा सोज़े शायराना ---जज़्बी
ज़िन्दगी उनवाने अफ़साना भी ,अफ़साना भी है
तुझको ए दिल खुद तड़प कर उनको तड़पाना भी है ---अर्श मल्शियनि
वह यूँ दिल से गुज़रते हैं ,कि आहात नहीं होती
वह यूँ आवाज़ देते हैं कि पहचानी नहीं जाती ---जिगर
दिल ले के मुफ्त कहते हैं कुछ काम का नहीं
उलटी शिकायतें हुईं एहसान तो क्या ---दाग
कहानी मेरी रुदादे जहाँ मालूम होती है
जो सुनाता है उसी की दास्ताँ मालूम होती है ---सीमाब
यूँ भी तन्हाई में हम दिल को सजा देते हैं
नाम लिखते हैं तेरा लिख के मिटा देते हैं --सईद
बादलों में इक बिजली ले रही थी अंगड़ाई
बागबां ने घबरा कर कह दिया बहार आयी ---आरज़ू लखनवी
है तरब का अलम से याराना
जिंदगी मौत की सहेली है
तेरी दुनिया तो ए मेरे खालिक
इक पर असरार पहेली है ---नरेश कुमार "शाद "----प्रसन्नता गम की सहेली है ए मेरे ख़ुदा सचमुच तेरी दुनिया रहसयपूर्ण पहेली है
आ पड़े हैं मिसले शबनम सैर दुनिया की कर चलें
देख अब ए बागबां अपना चमन हम घर चले ---बहादुर शाह ज़फर
ए अर्श तलाश ए मंज़िल में अंजाम ए दिल की फ़िक्र न कर
गम होना शान ए दिल ठहरी होने दे अगर गुम होता है ---अर्श मल्शियनि
हमें पतवार अपने हाथ में लेने पड़े शायद
ये कैसे नाख़ुद हैं जो भंवर तक जा नहीं सकते ---क़तील शिफ़ाई
अभी न जाओ क़ि तारों का दिल धड़कता है
तमाम रात पड़ी है ज़रा ठहर जाओ ----ज़ेहरा बानो "निगाह"
बहुत दिनों से मैं सुन रहा था
सजा वह देते हैं वह हर खता पर
मुझे तो इसकी सजा मिली है
कि मेरी कोई खता नहीं है ----राज "
आरज़ूओं की चुभन दिल में घुली जाती है
मेरी सोई हुई रातों को जगाने के लिए ----क़तील शिफ़ाई
जो हसरतें तेरे गम की कफ़ील है प्यारी
अभी तलाक मेरी तन्हाइयों में बसती हैं ---फैज़ अहमद फैज़
ये भी मुमकिन नहीं कि मर जाएं
ज़िन्दगी आह कितनी ज़ालिम है ---अख्तर अंसारी
तारों का गो शुमार में आना मुहाल है
लेकिन किसी को नींद न आये तो क्या करें ---अफसर मेरठी
समय की शीला पर
मधुर चित्र कितने
किसी ने बनाए
किसी ने मिटाए
अच्छा है अगर दो आग के दरिया आंसूं बन कर बहते हैं
आँखों में तो रहकर ये कितने तूफ़ान उठाया करते हैं
इश्क ने दिल में जगह की तो कज़ा भी आई
दर्द दुनिया में जब आया तो दवा भी आई----फनी बदायुनी
जिस दिल पै तुझे नाज़ था वह दिल नहीं रहा
ए दोस्तों ! इस इश्क ने बीरान कर दिया
इस दर्दे दिल की मेरे दवा कीजिये ज़रूर
बीमार गम को आके शफा दीजिये ज़रूर
दिल को दिलदार मिला अब तो यह दिल शाद हुआ
खाना वीरानी थी पहले अब आबाद हुआ
जहाँ ख़ुशी है अलम के नज़ारे रहते हैं
निहाँ नक़ाब में शब के सितारे रहते हैं
चलने को चल रहा हूँ पर इसकी खबर नहीं
मैं हूँ सफर में या मेरी मंज़िल सफर में है ---शमीम
जल के आशियाँ अपना खाक हो चुका कब का
आज तक ये आलम है रौशनी से डरते हैं ---खुमार बाराबंकी
ये क्या मंज़िल है बढ़ते हैं न हटते हैं कदम
तक रहा हूँ देर से मंज़िल को मैं मंज़िल मुझे ---जिगर मुरादाबादी
ए निगाहें सहर तू कहाँ खो गई
ज़िन्दगी मौत की सेज़ पर सो गई---अनवर फरहाद
यही तारा भी वही बेनूर अर्ज़े खाकी है
जहाँ से मैंने मुहब्बत की इब्तदा की है ---युसुफ ज़फर
फरार का यह नया रूप है अगर हम लोग
चिराग तोड़ कर नूरे कमर का ज़िक्र करें ---अहमद नदीम काज़मी
कड़ी टूटी कि लड़ी टूटी ---जर्मन कहावत
हाले दिल होते हैं हसरत की निगाहों से अयां
मेरी उनकी गुफ्तगू में अब ज़बां खामोश है ---आतिश
हमसे खिलाफ नाहक सैयदों बागबां हैं
नालों से अपने बिजली किस दिन गिरी चमन पर---आतिश
तलाशे यार में क्या ढूँढिये किसी का साथ
हमारा साया हमें नागवार राह में है ----आतिश
क़ुफ़्रो इस्लाम की कुछ कैद नहीं ए आतिश
शेख हो या कि बिरहमन हो पर इन्सा होवे
हममे ही न थी कोई बात याद तुमको न आ सके
तुमने भुला दिया हम न तुम्हे भूला सके
तुम ही न सुन सको अगर किस्सा ए गम सुनेगा कौन
किसकी जुबां कहेगी फिर हम न अगर सुना सके
होश में आ चुके थे हम जोश में आ चुके थे हम
बज़्म का रंग देख कर सर न मगर उठा सके ----हफ़ीज़ जालंधरी
अदा आयी ज़फ़ा आयी गरूर आया हिज़ाब आया
हज़ारों आफतें लेकर हसीनो का शबाब आया
शबे गम किस तरह गुज़री ,शबे गम इस तरह गुज़री
न तुम आये न चैन आया न मौत आई न ख्वाब आया ----नूर नारवी
खामोश लैब हैं दर्दे मोहब्बत जिगर में है
सदियों का इंतज़ार मेरी इक नज़र में है
कई बार डूबे कई बार उबरे
कई बार साहिल से टकरा के आये
तलाशो तालाब में वो लज़्ज़त मिली है
दुआ कर रहा हूँ कि मंज़िल न आये
जोशी जूनून में एक से हैं दोनों
क्या गरदे सेहरा क्या खाके मंज़िल
दिल और वह भी टूटा हुआ दिल
अब जिंदगी है जीने के काबिल
कहते हैं लोग मौत से बदतर है इंतज़ार
मेरी तमाम उम्र कटी इंतज़ार में ---मजाज़
सूफियों की उपासना ----
जिसे इश्क का तीर कारी लगे
उसे जिंदगी जग में भारी लगे
न छोड़े मोहब्बत दमे मर्ग तक
जिसे यार जानीसू यारी लगे
न होवे उसे जग में हरगिज़ करार
जिसे इश्क की बेकरारी लगे
हर इक वक़्त मुझ आशिके ज़ार कूं
पियारे तेरी बात प्यारी लगे
वाली कूं कहे तू अगर एक वचन
रकीबों के दिल में कटारी लगे !
आशिक़ को इम्तियाजे दैरो काबा कुछ नहीं
उसका नक़्शे पा जहाँ देखा वहीँ सर रख दिया
अगर इश्क न होता इंतेज़ाम आल में सूरत न पकड़ता
इश्क के बगैर जिंदगी बवाल है
इश्क को दिल दे देना कमाल है
इश्क बनाता है इश्क जलाता है
दुनिया में जो कुछ है इश्क का जलवा है
आग इश्क की गर्मी है
हवा इश्क की बेचैनी है
पानी इश्क की रफ़्तार है
खाक इश्क का कयाम है
मौत इश्क की बेहोशी है
जिंदगी इश्क की होशियारी है
रात इश्क की नींद है
दिन इश्क का जागना है
नेकी इश्क की कुर्बत है
गुनाह इश्क से दूरी है
बिहिश्त इश्क का शौक है
दोजख इश्क का जौंक है
हमी सोज़ हमी साज़ ओ हमी नगमा
ज़रा सम्हाल के सरे बज़्म छेड़ना हमको
न लुत्फ़ जीस्त का हासिल न मौत की तल्खी
खबर नहीं गेम उल्फत ने क्या दिया हमको ---जज़्बी
जो सतही आबें रवां पर निगाह जाती है
हर एक मौज कोई दास्ताँ सुनाती है----जगन्नाथ आज़ाद
अपनी निगाहे शोख से छुपिये तो जानिये
महफ़िल में हमसे आप ने पर्दा किया तो क्या ----अर्श मल्शियनि
जिस टीस में मज़ा था हमें वो भी अब नहीं
ज़ख्म ए जिगर को आपने अच्छा किया तो क्या----अर्श मल्शियनि
तसबीर अजनबी है मगर कुछ तो बात है
हर जाबिये से मेरी तरफ देखती लगे ---पवन कुमार "होश"
जिंदगी क्या किसी मुफ़लिस की कब है जिसमे
हर घडी दर्द के पैबंद लगे जाते हैं----फैज़ अहमद फैज़
कुछ इस कदर है गेम जिंदगी से दिल मायूस
खिज़ा गई तो बहारों में जी नहीं लगता ---जिगर मुरादाबादी
समझे थे तुझसे दूर निकल जाएंगे कहीं
देखा तो हर मुकाम तेरी रहगुज़र में है ---जिगर मुरादाबादी
जैसे वह सुन रहे हैं बैठे हुए मुकाबिल
और दर्द दिल हम अपना उनको सुना रहे हैं ---असर लखनवी
देर तक यूँ तेरी मस्ताना सदायें गूंजी
जिस तरह फूल चमकने लगे वीराने में ---साहिर
निगाहों में चमक दिल में ख़ुशी महसूस करता हूँ
कि तेरे बस में अपनी जिंदगी महसूस करता हूँ ---क़तील शिफ़ाई
पूछ मत कैफियत उनकी न पूछ उनका शुमार
चलती फिरती है मेरे सीने में जो परछाइयाँ ---फिराख गोरखपुरी
एक तेरी ही नहीं सूनसान राहें और भी हैं
कल सुबह की इंतज़ारी में निगाहें और भी हैं ---धर्मवीर भारती
अनजान तुम बने रहे ये और बात है
ऐसा तो क्या है तुमको हमारी खबर न हो ---बेदिल अज़ीमाबादी
यार तक पहुंचा दिया बेताबी ए दिल ने मेरी
इक तड़प में मंज़िलों का फासला जाता रहा
मेरी हसरत भरी ग़मज़दा रूह में
तेरी आवाज़ का रस उतरने लगा
जो तमन्ना दिल में थी वो दिल में घुट कर रह गयी
उसने पूछा भी नहीं हमने बताया भी नहीं ---सिराज़ लखनवी
न जाने चुपके से क्या कह दिया बहारों ने
कि दामनो को रफू कर रहे हैं सौदाई ---अख्तर प्यामी
तुम ख्वाब में भी आये तो मुंह छुपा लिया
देखो जहाँ में परदानशीं और भी तो हैं ---दाग
ए गमे दुनिया तुझे क्या इल्म तेरे वास्ते
किन बहानो से तबियत राह पर लाई गई---साहिर लुधियानवी
याद उनकी है कुछ ऐसी कि बिसरती नहीं
नींद आती भी नहीं रात गुजरती भी नहीं ---शहाब जाफरी
उनकी मासूम अदाओं पे न जाना ए दिल
सादगी में भी क़यमति का फसूं होता है ---आल अहमद" सरबर"
दिल ही में नहीं रहते आँखों में भी रहते हो
तुम दूर भी रहते हो तो दूर नहीं रहते ---फनी बदायुनी
जिन की दूरी में यह लज़्ज़त है कि बेताब है दिल
आ गए वह जो कहीं पास तो फिर क्या होगा ---शायर लखनवी
लगी चहकने जहाँ भी बुलबुल
हुआ वहीँ पर जमाल पैदा
कमी नहीं है कद्रदां की "अकबर "
करे तो कोई कमाल पैदा
न जाने कौनसी मंज़िल पे आ पहुंचा है प्यार अपना
न हमको ऐतबार अपना न उनको ऐतबार अपना ---क़तील शिफ़ाई
जब शहंशाह भी हो
इश्क भी हो ,दौलत भी
तब कहीं जाके कोई
ताज महल बनता है !---खामोश ग़ाज़ीपुरी
न कोई वादा न कोई यकीं न कोई उम्मीद
मगर हम तो तेरा इंतज़ार करना था ---फ़िराक गोरखपुरी
वहशत में जाने किस का पता मैंने लिख दिया
आया मेरा ही खत मेरे खत के जवाब में ---नसीम आरवी
मेरी बर्बादियां -----
मैं हूँ और मेरी तनहाई है
जाने क्यों आज आँख भर आई है
तुम क्या बदले कि दुनिया बदल गई
तुमसे मोहब्बत की यही रुसवाई है
फूल खिलाए थे जिसने गुलशन में मेरे
जो बहार भी हो गई पराई है
अपनी खुशियाँ लूटा दीं जिसकी खातिर मैंने
जाने क्यों वे हो गए हरजाई हैं
यही दुआ है मेरी कि तुम सलामत रहो
मेरी बर्बादियां हीं मुझको रास आयी हैं !
रुबाइयाँ ----
माना तू मेरी जिंदगी न बन सकी तो क्या
मेरे शिकस्ते प्यार का एक राज़ तो बन जा
तेरे तराने तुझको मुबारक हो ए सनम
मेरे लिए तू दर्द की आवाज़ तो बन जा
किसलिए आप ये शिकवे ये गिला करते हैं
कब न हम आपको धड़कन में मिला करते हैं
कैसे हो मुझको बहारों की तमन्ना नादां
गुल कहीं उजड़े वीरानो में खिला करते हैं
जब कभी हमने बहारों के गीत गाये हैं
बागबान ने मगर क्या क्या सितम ढाये हैं
खिलने को खिल तो गए हाय ये खिलना कैसा
खुश्बूए और तबस्सुम ये गम के साये हैं
नाम औरों की जबां पे आये ,इस काबिल नहीं
शाख बन कर हम कहलाये इस काबिल नहीं
ये हमारा तन बदन जलकर दहकती आग में
राख की एक ढेरी भी बन जाए इस काबिल नहीं
मैं मुसाफिर हूँ ,मैं राहों पे चलता जाऊँगा
हाँ गरीब हूँ मैं ,आहों पे पलटा जाऊँगा
अपनी ज़िन्दगी पे सदा गम ही का बस साया रहा
गम के साए में मैं चुपचाप जलाता जाऊँगा !
वह पहिली सी अब दिलकशी क्यों नहीं है
वह फूलों में अब ताजगी क्यों नहीं है
अभी था गम मेरी दुनिया है सूनी
मिला प्यार लेकिन ख़ुशी क्यों नहीं है
हुआ क्या मुझे क्यों जुबां बेजुबां है
न जाने क्यों लबों पर हंसी अब नहीं है
मिली ठोकर और दामन में कांटें
मेरी जिंदगी जिंदगी क्यों नहीं है
मिटने को इशरत ग़मों की सियहि
जलाई शमा रौशनी क्यों नहीं है
सब तरफ दीदए बातिन को जब यकसां किया
जिसकी ख्वाहिश थी वही हरसू नज़र आने लगा
यह बज़मे में है यहाँ कोताहदस्ति में है महरूमी
जो बढ़ कर खुद उथले हाथ में मीना उसीका है
ज़ुल्म देखा तो शहंशाहों की हस्ती में देखा
खुदा देखा तो गरीबों की बस्ती में देखा
भवंर से लड़ो ,तुन्द लहरों से उलझो
कहाँ तक चलोगे किनारे किनारे --रज़ा
फरक क्या बाइजो आशिक में ,बताएं तुमको
उसकी हुज़्ज़त में कटी ,इसकी मोहब्बत में कटी ---अकबर इलाहाबादी
फुर्सत कहाँ जो बात करें आसमां से हम
लिपटे पड़े हैं लज़्ज़ते दर्दें निहाँ से हम
ए चारसाज़ हालते ,दर्दें निहाँ न पूछ
एक राज़ है जो कह नहीं सकते जुबां से हम ---जिगर मुरादाबादी
मैं आज सिर्फ मोहब्बत के गम करूंगा याद
ये और बात है कि तेरी याद आ जाए ---फिराख गोरखपुरी
यह गम किसने दिया है पूछ मत ए हमनशीं हमसे
ज़माना ले रहा है नाम उसका हम नहीं लेंगे ---कलीम
मिलने की यही राह न मिलने की यही राह
दुनिया जिसे कहते हैं अजब रहगुज़र है ---आसी ग़ाज़ीपुरी
नज़ीर सीखे थे इल्म रस्मी
कि जिनसे मिलती हैं चार आँखें
और जिनसे मिलती हैं लाख आँखें
वह इल्म दिल की किताब में है
बकदे आईना हुस्ने तू भी नुमायद रूए
दिरांग की आईना ए मां ,न हुफ ता दर जंग अस्त ---हे प्रभु जैसा दर्पण होता है वैसा ही तेरा रूप तेरी महिमा उसमे झलकती है अफ़सोस है कि हमारा आईना जंग खाए हुए है
जिसे महबूब मंज़िल है वो कहाँ आराम करते हैं
न सूझी आरिजे गुलगूँ की जब मिसाल मुझे ---बर्क़
चमन परास्त हूँ दामन में भर लिए कांटे
न गुल छुआ न किसी गुल का परैहन छेड़ा ---असद
ख्वाहिशें सब मिट गयीं ,हसरत हमारी मिट चुकी
मिट गयी खुद से ख़ुशी ,हस्ती हमारी मिट चुकी
हो गया बर्बाद घर ,बस्ती हमारी लूट चुकी
मिट चुके हम खुद में खुद ,साड़ी खुदाई मिट चुकी
अपनी तबाहियों का मुझे कोई गम नहीं
तुमने किसी के साथ मोहब्बत निभा तो दी ---साहिर लुधियानवी
मिटते हुओं को देख कर क्यों रो न दे "मजाज़"
आखिर किसी के हम भी मिटाए हुए तो हैं --"मजाज़"
इधर न देख मुझे बेकरार रहने दे
मेरी नज़र में मेरा ऐतबार रहने दे ---फनी बदायुनी
नहीं चाह मेरी अगर उसे नहीं राह दिल में तो किसलिए
मुझे रोते देख वह रो दिया ,मेरा हाल सुन के हुआ क्लक ---मोमिन
लगता नहीं है दिल मेरा ,उजड़े दयार में ,
उम्र दराज मांग के लए थे चार दिन
दो आरज़ू में काट गए ,दो इंतज़ार में
कह दो इन हसरतों से कहीं और जा बसें
इतनी जगह कहाँ है दिले दागदार में
इतना है बदनसीब ज़फर दफ्न के लिए
दो गज ज़मीन भी न मिली कूचे यार में ---बहादुर शाह ज़फर
बिजलियों से ग़ुरबत में कुछ भरम तो बाकी है
जल गया मकां यानि कोई था मकां अपना
तकमीले बशर नहीं है सुलतान होना
या सफ़ में फ़रिश्ते को नुमाया होना
तकमील है अज्जे बंदगी का एहसास
इंसान की मेराज़ है इन्सां होना --फनी बदायुनी
हम किया करते हैं अश्कों से तवाजो क्या क्या
जब ख्यालों में वो आ जाते हैं मेहमां की तरह
यूँ तेरे माहौल में ढल कर अपना आप भुला बैठा हूँ
जैसे टूटे तारे की लौ जैसे ढलते चाँद के साए -----क़त्ल शिफ़ाई
कहीं मज़ाके नज़र को करार मिल न सका
कभी चमन से कभी कहकशां से गुज़रा हूँ
तेरे करीब से गुज़रा हूँ इस तरह कि मुझे
खबर भी न हो सकी मैं कहाँ कहाँ से गुज़रा हूँ ---जगन्नाथ आज़ाद
कर न फ़रियाद ख़ामोशी में असर पैदा कर
दर्द बन कर दिले बदर्द में घर पैदा कर
तन्हाईए शामे गम के डर से
कुछ उनसे जवाब पा रहा हूँ
लज़्ज़त कश आरज़ू फानी
दानिस्ता फरेब खा रहा हूँ ---फनी बदायुनी
यही ज़िन्दगी मुसीबत यही ज़िन्दगी मसर्रत
यही ज़िन्दगी हक़ीक़त ,यही ज़िन्दगी फ़साना
जिसे पा सका न ज़ाहिद जिसे छू सका न सूफी
वही तार छेड़ता है मेरा सोज़े शायराना ---जज़्बी
ज़िन्दगी उनवाने अफ़साना भी ,अफ़साना भी है
तुझको ए दिल खुद तड़प कर उनको तड़पाना भी है ---अर्श मल्शियनि
वह यूँ दिल से गुज़रते हैं ,कि आहात नहीं होती
वह यूँ आवाज़ देते हैं कि पहचानी नहीं जाती ---जिगर
दिल ले के मुफ्त कहते हैं कुछ काम का नहीं
उलटी शिकायतें हुईं एहसान तो क्या ---दाग
कहानी मेरी रुदादे जहाँ मालूम होती है
जो सुनाता है उसी की दास्ताँ मालूम होती है ---सीमाब
यूँ भी तन्हाई में हम दिल को सजा देते हैं
नाम लिखते हैं तेरा लिख के मिटा देते हैं --सईद
बादलों में इक बिजली ले रही थी अंगड़ाई
बागबां ने घबरा कर कह दिया बहार आयी ---आरज़ू लखनवी
है तरब का अलम से याराना
जिंदगी मौत की सहेली है
तेरी दुनिया तो ए मेरे खालिक
इक पर असरार पहेली है ---नरेश कुमार "शाद "----प्रसन्नता गम की सहेली है ए मेरे ख़ुदा सचमुच तेरी दुनिया रहसयपूर्ण पहेली है
आ पड़े हैं मिसले शबनम सैर दुनिया की कर चलें
देख अब ए बागबां अपना चमन हम घर चले ---बहादुर शाह ज़फर
ए अर्श तलाश ए मंज़िल में अंजाम ए दिल की फ़िक्र न कर
गम होना शान ए दिल ठहरी होने दे अगर गुम होता है ---अर्श मल्शियनि
हमें पतवार अपने हाथ में लेने पड़े शायद
ये कैसे नाख़ुद हैं जो भंवर तक जा नहीं सकते ---क़तील शिफ़ाई
अभी न जाओ क़ि तारों का दिल धड़कता है
तमाम रात पड़ी है ज़रा ठहर जाओ ----ज़ेहरा बानो "निगाह"
बहुत दिनों से मैं सुन रहा था
सजा वह देते हैं वह हर खता पर
मुझे तो इसकी सजा मिली है
कि मेरी कोई खता नहीं है ----राज "
आरज़ूओं की चुभन दिल में घुली जाती है
मेरी सोई हुई रातों को जगाने के लिए ----क़तील शिफ़ाई
जो हसरतें तेरे गम की कफ़ील है प्यारी
अभी तलाक मेरी तन्हाइयों में बसती हैं ---फैज़ अहमद फैज़
ये भी मुमकिन नहीं कि मर जाएं
ज़िन्दगी आह कितनी ज़ालिम है ---अख्तर अंसारी
तारों का गो शुमार में आना मुहाल है
लेकिन किसी को नींद न आये तो क्या करें ---अफसर मेरठी
समय की शीला पर
मधुर चित्र कितने
किसी ने बनाए
किसी ने मिटाए
अच्छा है अगर दो आग के दरिया आंसूं बन कर बहते हैं
आँखों में तो रहकर ये कितने तूफ़ान उठाया करते हैं
इश्क ने दिल में जगह की तो कज़ा भी आई
दर्द दुनिया में जब आया तो दवा भी आई----फनी बदायुनी
जिस दिल पै तुझे नाज़ था वह दिल नहीं रहा
ए दोस्तों ! इस इश्क ने बीरान कर दिया
इस दर्दे दिल की मेरे दवा कीजिये ज़रूर
बीमार गम को आके शफा दीजिये ज़रूर
दिल को दिलदार मिला अब तो यह दिल शाद हुआ
खाना वीरानी थी पहले अब आबाद हुआ
जहाँ ख़ुशी है अलम के नज़ारे रहते हैं
निहाँ नक़ाब में शब के सितारे रहते हैं
चलने को चल रहा हूँ पर इसकी खबर नहीं
मैं हूँ सफर में या मेरी मंज़िल सफर में है ---शमीम
जल के आशियाँ अपना खाक हो चुका कब का
आज तक ये आलम है रौशनी से डरते हैं ---खुमार बाराबंकी
ये क्या मंज़िल है बढ़ते हैं न हटते हैं कदम
तक रहा हूँ देर से मंज़िल को मैं मंज़िल मुझे ---जिगर मुरादाबादी
ए निगाहें सहर तू कहाँ खो गई
ज़िन्दगी मौत की सेज़ पर सो गई---अनवर फरहाद
यही तारा भी वही बेनूर अर्ज़े खाकी है
जहाँ से मैंने मुहब्बत की इब्तदा की है ---युसुफ ज़फर
फरार का यह नया रूप है अगर हम लोग
चिराग तोड़ कर नूरे कमर का ज़िक्र करें ---अहमद नदीम काज़मी
कड़ी टूटी कि लड़ी टूटी ---जर्मन कहावत
हाले दिल होते हैं हसरत की निगाहों से अयां
मेरी उनकी गुफ्तगू में अब ज़बां खामोश है ---आतिश
हमसे खिलाफ नाहक सैयदों बागबां हैं
नालों से अपने बिजली किस दिन गिरी चमन पर---आतिश
तलाशे यार में क्या ढूँढिये किसी का साथ
हमारा साया हमें नागवार राह में है ----आतिश
क़ुफ़्रो इस्लाम की कुछ कैद नहीं ए आतिश
शेख हो या कि बिरहमन हो पर इन्सा होवे
हममे ही न थी कोई बात याद तुमको न आ सके
तुमने भुला दिया हम न तुम्हे भूला सके
तुम ही न सुन सको अगर किस्सा ए गम सुनेगा कौन
किसकी जुबां कहेगी फिर हम न अगर सुना सके
होश में आ चुके थे हम जोश में आ चुके थे हम
बज़्म का रंग देख कर सर न मगर उठा सके ----हफ़ीज़ जालंधरी
अदा आयी ज़फ़ा आयी गरूर आया हिज़ाब आया
हज़ारों आफतें लेकर हसीनो का शबाब आया
शबे गम किस तरह गुज़री ,शबे गम इस तरह गुज़री
न तुम आये न चैन आया न मौत आई न ख्वाब आया ----नूर नारवी
खामोश लैब हैं दर्दे मोहब्बत जिगर में है
सदियों का इंतज़ार मेरी इक नज़र में है
कई बार डूबे कई बार उबरे
कई बार साहिल से टकरा के आये
तलाशो तालाब में वो लज़्ज़त मिली है
दुआ कर रहा हूँ कि मंज़िल न आये
जोशी जूनून में एक से हैं दोनों
क्या गरदे सेहरा क्या खाके मंज़िल
दिल और वह भी टूटा हुआ दिल
अब जिंदगी है जीने के काबिल
कहते हैं लोग मौत से बदतर है इंतज़ार
मेरी तमाम उम्र कटी इंतज़ार में ---मजाज़
सूफियों की उपासना ----
जिसे इश्क का तीर कारी लगे
उसे जिंदगी जग में भारी लगे
न छोड़े मोहब्बत दमे मर्ग तक
जिसे यार जानीसू यारी लगे
न होवे उसे जग में हरगिज़ करार
जिसे इश्क की बेकरारी लगे
हर इक वक़्त मुझ आशिके ज़ार कूं
पियारे तेरी बात प्यारी लगे
वाली कूं कहे तू अगर एक वचन
रकीबों के दिल में कटारी लगे !
आशिक़ को इम्तियाजे दैरो काबा कुछ नहीं
उसका नक़्शे पा जहाँ देखा वहीँ सर रख दिया
अगर इश्क न होता इंतेज़ाम आल में सूरत न पकड़ता
इश्क के बगैर जिंदगी बवाल है
इश्क को दिल दे देना कमाल है
इश्क बनाता है इश्क जलाता है
दुनिया में जो कुछ है इश्क का जलवा है
आग इश्क की गर्मी है
हवा इश्क की बेचैनी है
पानी इश्क की रफ़्तार है
खाक इश्क का कयाम है
मौत इश्क की बेहोशी है
जिंदगी इश्क की होशियारी है
रात इश्क की नींद है
दिन इश्क का जागना है
नेकी इश्क की कुर्बत है
गुनाह इश्क से दूरी है
बिहिश्त इश्क का शौक है
दोजख इश्क का जौंक है
हमी सोज़ हमी साज़ ओ हमी नगमा
ज़रा सम्हाल के सरे बज़्म छेड़ना हमको
न लुत्फ़ जीस्त का हासिल न मौत की तल्खी
खबर नहीं गेम उल्फत ने क्या दिया हमको ---जज़्बी
जो सतही आबें रवां पर निगाह जाती है
हर एक मौज कोई दास्ताँ सुनाती है----जगन्नाथ आज़ाद
अपनी निगाहे शोख से छुपिये तो जानिये
महफ़िल में हमसे आप ने पर्दा किया तो क्या ----अर्श मल्शियनि
जिस टीस में मज़ा था हमें वो भी अब नहीं
ज़ख्म ए जिगर को आपने अच्छा किया तो क्या----अर्श मल्शियनि
तसबीर अजनबी है मगर कुछ तो बात है
हर जाबिये से मेरी तरफ देखती लगे ---पवन कुमार "होश"
जिंदगी क्या किसी मुफ़लिस की कब है जिसमे
हर घडी दर्द के पैबंद लगे जाते हैं----फैज़ अहमद फैज़
कुछ इस कदर है गेम जिंदगी से दिल मायूस
खिज़ा गई तो बहारों में जी नहीं लगता ---जिगर मुरादाबादी
समझे थे तुझसे दूर निकल जाएंगे कहीं
देखा तो हर मुकाम तेरी रहगुज़र में है ---जिगर मुरादाबादी
जैसे वह सुन रहे हैं बैठे हुए मुकाबिल
और दर्द दिल हम अपना उनको सुना रहे हैं ---असर लखनवी
देर तक यूँ तेरी मस्ताना सदायें गूंजी
जिस तरह फूल चमकने लगे वीराने में ---साहिर
निगाहों में चमक दिल में ख़ुशी महसूस करता हूँ
कि तेरे बस में अपनी जिंदगी महसूस करता हूँ ---क़तील शिफ़ाई
पूछ मत कैफियत उनकी न पूछ उनका शुमार
चलती फिरती है मेरे सीने में जो परछाइयाँ ---फिराख गोरखपुरी
एक तेरी ही नहीं सूनसान राहें और भी हैं
कल सुबह की इंतज़ारी में निगाहें और भी हैं ---धर्मवीर भारती
अनजान तुम बने रहे ये और बात है
ऐसा तो क्या है तुमको हमारी खबर न हो ---बेदिल अज़ीमाबादी
यार तक पहुंचा दिया बेताबी ए दिल ने मेरी
इक तड़प में मंज़िलों का फासला जाता रहा
मेरी हसरत भरी ग़मज़दा रूह में
तेरी आवाज़ का रस उतरने लगा
जो तमन्ना दिल में थी वो दिल में घुट कर रह गयी
उसने पूछा भी नहीं हमने बताया भी नहीं ---सिराज़ लखनवी
न जाने चुपके से क्या कह दिया बहारों ने
कि दामनो को रफू कर रहे हैं सौदाई ---अख्तर प्यामी
तुम ख्वाब में भी आये तो मुंह छुपा लिया
देखो जहाँ में परदानशीं और भी तो हैं ---दाग
ए गमे दुनिया तुझे क्या इल्म तेरे वास्ते
किन बहानो से तबियत राह पर लाई गई---साहिर लुधियानवी
याद उनकी है कुछ ऐसी कि बिसरती नहीं
नींद आती भी नहीं रात गुजरती भी नहीं ---शहाब जाफरी
उनकी मासूम अदाओं पे न जाना ए दिल
सादगी में भी क़यमति का फसूं होता है ---आल अहमद" सरबर"
दिल ही में नहीं रहते आँखों में भी रहते हो
तुम दूर भी रहते हो तो दूर नहीं रहते ---फनी बदायुनी
जिन की दूरी में यह लज़्ज़त है कि बेताब है दिल
आ गए वह जो कहीं पास तो फिर क्या होगा ---शायर लखनवी
लगी चहकने जहाँ भी बुलबुल
हुआ वहीँ पर जमाल पैदा
कमी नहीं है कद्रदां की "अकबर "
करे तो कोई कमाल पैदा
न जाने कौनसी मंज़िल पे आ पहुंचा है प्यार अपना
न हमको ऐतबार अपना न उनको ऐतबार अपना ---क़तील शिफ़ाई
जब शहंशाह भी हो
इश्क भी हो ,दौलत भी
तब कहीं जाके कोई
ताज महल बनता है !---खामोश ग़ाज़ीपुरी
न कोई वादा न कोई यकीं न कोई उम्मीद
मगर हम तो तेरा इंतज़ार करना था ---फ़िराक गोरखपुरी
वहशत में जाने किस का पता मैंने लिख दिया
आया मेरा ही खत मेरे खत के जवाब में ---नसीम आरवी
मेरी बर्बादियां -----
मैं हूँ और मेरी तनहाई है
जाने क्यों आज आँख भर आई है
तुम क्या बदले कि दुनिया बदल गई
तुमसे मोहब्बत की यही रुसवाई है
फूल खिलाए थे जिसने गुलशन में मेरे
जो बहार भी हो गई पराई है
अपनी खुशियाँ लूटा दीं जिसकी खातिर मैंने
जाने क्यों वे हो गए हरजाई हैं
यही दुआ है मेरी कि तुम सलामत रहो
मेरी बर्बादियां हीं मुझको रास आयी हैं !
रुबाइयाँ ----
माना तू मेरी जिंदगी न बन सकी तो क्या
मेरे शिकस्ते प्यार का एक राज़ तो बन जा
तेरे तराने तुझको मुबारक हो ए सनम
मेरे लिए तू दर्द की आवाज़ तो बन जा
किसलिए आप ये शिकवे ये गिला करते हैं
कब न हम आपको धड़कन में मिला करते हैं
कैसे हो मुझको बहारों की तमन्ना नादां
गुल कहीं उजड़े वीरानो में खिला करते हैं
जब कभी हमने बहारों के गीत गाये हैं
बागबान ने मगर क्या क्या सितम ढाये हैं
खिलने को खिल तो गए हाय ये खिलना कैसा
खुश्बूए और तबस्सुम ये गम के साये हैं
नाम औरों की जबां पे आये ,इस काबिल नहीं
शाख बन कर हम कहलाये इस काबिल नहीं
ये हमारा तन बदन जलकर दहकती आग में
राख की एक ढेरी भी बन जाए इस काबिल नहीं
मैं मुसाफिर हूँ ,मैं राहों पे चलता जाऊँगा
हाँ गरीब हूँ मैं ,आहों पे पलटा जाऊँगा
अपनी ज़िन्दगी पे सदा गम ही का बस साया रहा
गम के साए में मैं चुपचाप जलाता जाऊँगा !
वह पहिली सी अब दिलकशी क्यों नहीं है
वह फूलों में अब ताजगी क्यों नहीं है
अभी था गम मेरी दुनिया है सूनी
मिला प्यार लेकिन ख़ुशी क्यों नहीं है
हुआ क्या मुझे क्यों जुबां बेजुबां है
न जाने क्यों लबों पर हंसी अब नहीं है
मिली ठोकर और दामन में कांटें
मेरी जिंदगी जिंदगी क्यों नहीं है
मिटने को इशरत ग़मों की सियहि
जलाई शमा रौशनी क्यों नहीं है
सब तरफ दीदए बातिन को जब यकसां किया
जिसकी ख्वाहिश थी वही हरसू नज़र आने लगा
यह बज़मे में है यहाँ कोताहदस्ति में है महरूमी
जो बढ़ कर खुद उथले हाथ में मीना उसीका है
ज़ुल्म देखा तो शहंशाहों की हस्ती में देखा
खुदा देखा तो गरीबों की बस्ती में देखा
भवंर से लड़ो ,तुन्द लहरों से उलझो
कहाँ तक चलोगे किनारे किनारे --रज़ा
फरक क्या बाइजो आशिक में ,बताएं तुमको
उसकी हुज़्ज़त में कटी ,इसकी मोहब्बत में कटी ---अकबर इलाहाबादी
फुर्सत कहाँ जो बात करें आसमां से हम
लिपटे पड़े हैं लज़्ज़ते दर्दें निहाँ से हम
ए चारसाज़ हालते ,दर्दें निहाँ न पूछ
एक राज़ है जो कह नहीं सकते जुबां से हम ---जिगर मुरादाबादी
मैं आज सिर्फ मोहब्बत के गम करूंगा याद
ये और बात है कि तेरी याद आ जाए ---फिराख गोरखपुरी
यह गम किसने दिया है पूछ मत ए हमनशीं हमसे
ज़माना ले रहा है नाम उसका हम नहीं लेंगे ---कलीम
मिलने की यही राह न मिलने की यही राह
दुनिया जिसे कहते हैं अजब रहगुज़र है ---आसी ग़ाज़ीपुरी
नज़ीर सीखे थे इल्म रस्मी
कि जिनसे मिलती हैं चार आँखें
और जिनसे मिलती हैं लाख आँखें
वह इल्म दिल की किताब में है
बकदे आईना हुस्ने तू भी नुमायद रूए
दिरांग की आईना ए मां ,न हुफ ता दर जंग अस्त ---हे प्रभु जैसा दर्पण होता है वैसा ही तेरा रूप तेरी महिमा उसमे झलकती है अफ़सोस है कि हमारा आईना जंग खाए हुए है
जिसे महबूब मंज़िल है वो कहाँ आराम करते हैं
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