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शनिवार, 25 जनवरी 2020

By : Sheshan Iyer !!

जागो इंडिया  

शेषन अय्यर ----

लेबनान खो गया इसके लिए मैं बहुत दुखी हूँ।  CAA & NRC भारत के लिए अंतिम अवसर हैं। लेबनान एक अति दुखदायी उदहारण है।  क्या गलत हो सकता है ? 1970 में लेबनान एक स्वर्ग था इसकी राजधानी बेरुत पेरिस कही जाती थी पूर्व की। 
लेबनान के इसाईं दुनिया के कुछ पुराने ईसाईयों में हैं जो आर्मेनिया के रूढ़िवादी और इजिप्ट के कट्टर रहे।  लेबनान एक बहुत ही प्रगतिशील उदार अलग अलग संस्कृतियों का समाज था। लेबनान में कुछ सर्वश्रेष्ठ विश्व विद्यालय {मध्य पूर्व } में थे। जिसमे अरब से विद्यार्थी पढ़ने आते थे। वे फिर वहीँ रहने और काम करने लगे। 
लेबनान का बैंकिंग सिस्टम दुनिया का सर्वश्रेष्ठ बैंकिंग में से एक था। तेल नहीं होने के बावजूद लेबनान की अर्थ व्यवस्था बहुत बड़ी थी। लेबनान समाज की प्रगतिशीलता इसी बात से मापी जा सकती है कि फिल्म "एन  इवनिंग इन पेरिस "की शूटिंग वहीँ हुई थी। 
इसका दुखद पहलू ----
लेबनान में बसी इस्लामिक जनसँख्या निरंतर बढ़ती रही मुस्लिम ईसाईयों से ज्यादा बच्चे पैदा करते थे और धीरे धीरे शिक्षा के अभाव में कट्टर भी हो रहे थे। 
1970 जॉर्डन में  अशांति हुई , लेबनान में मुस्लिम नेताओं ने फिलिस्तीनी शरणार्थियों के लिए देश के दरवाजे खोल दिए,1980 तक लेबनान की स्थिति सीरिया जैसी हो गई। शरणार्थी बन कर जिहादी घुसे और लेबनान के ईसाईयों को असंख्य तादाद में मारने लगे उन्हें बचाने कोई नहीं आया ,। जो हिंसा से 
समझौता ना कर  सके वे देश छोड़ कर भाग गए। इस तरह लेबनान में जो ईसाई 60% थे वे 37 % रह गए आज की तारीख में जितने ईसाई लेबनान में रहते हैं उससे ज्यादा लेबनानी ईसाई दूसरे देशों में रहते हैं क्यूंकि मुस्लिम बहुल सरकार ने ऐसे कानून बनाये हैं कि उनकी देश वापसी नहीं हो सकती। 
लेबनान की यह दुखद कहानी सिर्फ 30 वर्ष पुरानी  है। 
भारत को  सीख लेनी चाहिए रोहिंग्या,बांग्लादेशी ,पाकिस्तानी घुसपैठियों से सतर्क रहना चाहिए क्योंकि ये हमारे बीच ही रहते हैं। ऐसी पार्टियों संस्थाओं प्रेस मिडिया फ़िल्मी दुनिया में जो भी उनके सहायक है जो CAA & NRC के खिलाफ हैं ,उन्हें boycott  {बायकॉट }करना  होगा !!
                                                                                                  अनुवादिका : निरुपमा 

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