सोमवार को महाविद्यालय में कमलेश्वर ने उसे क्लास में देखा। अपने नोट्स लेकर वह उसकी डेस्क तक जा पहुंचा। उसने कहा ,"ये सारे नोट्स मैं ले आया हूँ " उसने मुस्कुराते हुए "थैंक यू " कहा और नोट्स ले लिए। कमलेश्वर ने झिझकते हुए पूछ ही लिया "आपका नाम ?उसने मुस्कुराते हुए कहा "अंजुरी ठाकुर "प्रशंसात्मक मुस्कान के साथ कमलेश्वर अपनी सीट की ओर मुड गया।
अब कमलेश्वर और अंजुरी दोनों का ही जीवन परिवर्तित हो चुका था। कमलेश्वर आरम्भ से ही पिता का लिहाज करता था अतः दोनों के बीच अति आवश्यक बातों के सम्बन्ध में ही वार्तालाप हुआ करता था। दोनों डाइनिंग टेबल पर रात का खाना अवश्य साथ खाते थे और यही समय होता था जब वे दोनों एक दूसरे के आमने सामने हुआ करते थे। जैसा कि हम जानते हैं की कमलेश्वर की माता महादेवी उससे मित्रवत थीं ,किन्तु उनके जाने के बाद पिता और पुत्र दोनों के जीवन में अलग अलग तरह का खालीपन आ गया ,लेकिन वे परस्पर एक दूसरे का खालीपन बाँट ना सके। कमलेश्वर की उदासी के इस समय में अंजुरी ठाकुर एक रंग बिरंगे इंद्रधनुष सी उभर आयी थी।
अंजुरी की माता अंजना ठाकुर थोड़ी बहुत पढ़ीलिखी थी। अंजुरी अपने पिता अनमोल ठाकुर के नज़दीक थी लेकिन तहसीलदार की पोस्ट ही ऐसी थी वे सारे दिन व्यस्त रहते और शायद छुट्टी के दिन ही वे परस्पर बातें कर पाते। माता घरेलू कामकाज में उलझी रहती हालाँकि एक सरकारी नौकर एक ड्राइवर था ,एक चपरासी तहसील में भी था। उसे अपनी बिटिया काफी खुश दिखाई देने लगी थी पर वह कारण नहीं जान सकी। यह एक चिरंतन सत्य है कि युवा अपने मन में एक अलग सी दुनिया बसाये रखते हैं जहाँ किसी और का प्रवेश निषिद्ध होता है
अब कमलेश्वर और अंजुरी दोनों का ही जीवन परिवर्तित हो चुका था। कमलेश्वर आरम्भ से ही पिता का लिहाज करता था अतः दोनों के बीच अति आवश्यक बातों के सम्बन्ध में ही वार्तालाप हुआ करता था। दोनों डाइनिंग टेबल पर रात का खाना अवश्य साथ खाते थे और यही समय होता था जब वे दोनों एक दूसरे के आमने सामने हुआ करते थे। जैसा कि हम जानते हैं की कमलेश्वर की माता महादेवी उससे मित्रवत थीं ,किन्तु उनके जाने के बाद पिता और पुत्र दोनों के जीवन में अलग अलग तरह का खालीपन आ गया ,लेकिन वे परस्पर एक दूसरे का खालीपन बाँट ना सके। कमलेश्वर की उदासी के इस समय में अंजुरी ठाकुर एक रंग बिरंगे इंद्रधनुष सी उभर आयी थी।
अंजुरी की माता अंजना ठाकुर थोड़ी बहुत पढ़ीलिखी थी। अंजुरी अपने पिता अनमोल ठाकुर के नज़दीक थी लेकिन तहसीलदार की पोस्ट ही ऐसी थी वे सारे दिन व्यस्त रहते और शायद छुट्टी के दिन ही वे परस्पर बातें कर पाते। माता घरेलू कामकाज में उलझी रहती हालाँकि एक सरकारी नौकर एक ड्राइवर था ,एक चपरासी तहसील में भी था। उसे अपनी बिटिया काफी खुश दिखाई देने लगी थी पर वह कारण नहीं जान सकी। यह एक चिरंतन सत्य है कि युवा अपने मन में एक अलग सी दुनिया बसाये रखते हैं जहाँ किसी और का प्रवेश निषिद्ध होता है
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