सभी ने अपने अपने घरों में बता दिया कि आने वाले चारों रविवार उन्हें रिहर्सल के लिए सुबह दस बजे महा विद्यालय जाना है और चार बजे छुट्टी होने के बाद ही घर आ पाएंगे। कमलेश्वर ने रात अपने स्क्रिप्ट के पन्नो को उलट पलट कर देखा था। उसका रोल एकदम नाम मात्र का था हालाँकि पांचो दृश्यों में उसकी उपस्थिति को दर्शाया था।
पहले दृश्य में सम्राट अशोक और तिष्यरक्षिता को अंतःपुर में दिखाया गया था। तिष्यरक्षिता सम्राट अशोक को राज्य संबंधी मामलों में कुछ परामर्श दे रही थीं। चूँकि सम्राट अशोक को अधेड़ से ऊपर की आयु का दिखाया गया था। उनकी पूर्व पत्नी संसार छोड़ चुकी थी और उसी पत्नी से उनका पुत्र कुणाल विवाहित था,तथा उसकी पत्नी कंचनमाला थी। वे भी अपने विशिष्ठ महल में रहते थे।
दूसरे दृश्य में सम्राट अशोक को अपने शयन कक्ष में कोच पर अधलेटा सा दिखाया गया था और तिष्यरक्षिता को श्रृंगार मेज पर श्रृंगार करते कुछ गुनगुनाते हुए ,तथा ,दूसरे हिस्से में जाना था, यह कहते हुए कुणाल से प्रेम प्रदर्शित करना था कि कंचन माला तो माता पिता के घर गईं हैं। कुणाल द्रारा उन्हें रोकते हुए ,उनके पैर छूते हुए कहना,माता ! यह सोचना भी पाप है ! पैर पटकते हुए तिष्यरक्षिता वापस दूसरे हिस्से में अर्थात अपने व सम्राट अशोक के शयन कक्ष में लौट आती है।
तीसरे दृश्य में युद्ध की दुंदुभि नैपथ्य में बजती दिखाई दी। तिष्यरक्षिता एक पत्र लिख कर उसपर अशोक की मोहर लगाती हैं व हरकारे से कहती हैं जाकर यह पत्र सेनापति को दे दे। सम्राट अशोक को कोच पर उंघते हुए दिखाई देना था।
चौथे दृश्य में नैपथ्य में सेनापति द्रारा पत्र पढ़कर कहना ,"नहीं नहीं ! यह कैसे हो सकता है ?कुणाल का पूछना और सेनापति द्वारा बताना कि उनकी आँखे फोड़ देने का आदेश दिया गया है। " कुणाल का कहना "आप आदेश का पालन करें " सेनापति द्वारा मन मार कर कुणाल की दोनों आँखों गर्म सलाखों से फोड़ दीं "कुणाल की चींख सुनाई देनी होगी "
पांचवे दृश्य में कुणाल और कंचनमाला ,स्टेज के एक ओर भिक्षाटन करते प्रवेश करेंगे ,कंचनमाला एकतारा बजाएगी,सम्राट अशोक पहचान कर पुकारेंगे ," कुणाल कुणाल ! कुणाल और कंचनमाला का प्रवेश ,सम्राट अशोक के पूछने पर कंचन माला वह राजमोहर लगा पत्र सम्राट अशोक को दे देती है।
यही वह दृश्य था जब सम्राट अशोक की आँखों से अंगारे बरसने लगते हैं ,वे कहते हैं "सिपाहियों ! इस नागिन को ले जाकर कालकोठरी में डाल दो "कुणाल उनके पैर छू कर कहते हैं ,"नहीं पिताजी ! वे मेरी माता हैं ,उन्हें क्षमा कर दीजिये। ----क्रमशः
पहले दृश्य में सम्राट अशोक और तिष्यरक्षिता को अंतःपुर में दिखाया गया था। तिष्यरक्षिता सम्राट अशोक को राज्य संबंधी मामलों में कुछ परामर्श दे रही थीं। चूँकि सम्राट अशोक को अधेड़ से ऊपर की आयु का दिखाया गया था। उनकी पूर्व पत्नी संसार छोड़ चुकी थी और उसी पत्नी से उनका पुत्र कुणाल विवाहित था,तथा उसकी पत्नी कंचनमाला थी। वे भी अपने विशिष्ठ महल में रहते थे।
दूसरे दृश्य में सम्राट अशोक को अपने शयन कक्ष में कोच पर अधलेटा सा दिखाया गया था और तिष्यरक्षिता को श्रृंगार मेज पर श्रृंगार करते कुछ गुनगुनाते हुए ,तथा ,दूसरे हिस्से में जाना था, यह कहते हुए कुणाल से प्रेम प्रदर्शित करना था कि कंचन माला तो माता पिता के घर गईं हैं। कुणाल द्रारा उन्हें रोकते हुए ,उनके पैर छूते हुए कहना,माता ! यह सोचना भी पाप है ! पैर पटकते हुए तिष्यरक्षिता वापस दूसरे हिस्से में अर्थात अपने व सम्राट अशोक के शयन कक्ष में लौट आती है।
तीसरे दृश्य में युद्ध की दुंदुभि नैपथ्य में बजती दिखाई दी। तिष्यरक्षिता एक पत्र लिख कर उसपर अशोक की मोहर लगाती हैं व हरकारे से कहती हैं जाकर यह पत्र सेनापति को दे दे। सम्राट अशोक को कोच पर उंघते हुए दिखाई देना था।
चौथे दृश्य में नैपथ्य में सेनापति द्रारा पत्र पढ़कर कहना ,"नहीं नहीं ! यह कैसे हो सकता है ?कुणाल का पूछना और सेनापति द्वारा बताना कि उनकी आँखे फोड़ देने का आदेश दिया गया है। " कुणाल का कहना "आप आदेश का पालन करें " सेनापति द्वारा मन मार कर कुणाल की दोनों आँखों गर्म सलाखों से फोड़ दीं "कुणाल की चींख सुनाई देनी होगी "
पांचवे दृश्य में कुणाल और कंचनमाला ,स्टेज के एक ओर भिक्षाटन करते प्रवेश करेंगे ,कंचनमाला एकतारा बजाएगी,सम्राट अशोक पहचान कर पुकारेंगे ," कुणाल कुणाल ! कुणाल और कंचनमाला का प्रवेश ,सम्राट अशोक के पूछने पर कंचन माला वह राजमोहर लगा पत्र सम्राट अशोक को दे देती है।
यही वह दृश्य था जब सम्राट अशोक की आँखों से अंगारे बरसने लगते हैं ,वे कहते हैं "सिपाहियों ! इस नागिन को ले जाकर कालकोठरी में डाल दो "कुणाल उनके पैर छू कर कहते हैं ,"नहीं पिताजी ! वे मेरी माता हैं ,उन्हें क्षमा कर दीजिये। ----क्रमशः
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