अगला कार्यक्रम नाटक का तीसरा भाग था। पीछे नैपथ्य से दुंदुभि की आवाज़ सुनायी देती है। युद्ध की घोषणा होती है। पुत्र कुणाल माता पिता से आज्ञा लेकर रणभूमि की ओर सैनिक वेशभूषा में प्रस्थान करते हैं। नैपथ्य से युद्ध का शोर सुनायी देता है तलवारों की खनखनाहट और सैनिकों के घायल होने की चीत्कार भी सुनायी दे रही थी। संध्याकाल का दृश्य दिखाया गया और युद्धविराम की घोषणा भी सुनायी दी। सम्राट अशोक उसी तरह काउच पर बैठे ऊंघते से दिख रहे थे। तिष्यरक्षिता ,एक शाही पत्र पर सम्राट अशोक की शाही मोहर लगाती है ,यह करते हुए वह चोर नज़रों से सम्राट की ओर भी देख रही थी। वह तत्क्षण ही नैपथ्य में जाकर एक सैनिक को पुकार कर वह पत्र देती है। वह कहती है ,"इसे सेनापति को दे देना "जो आज्ञा "कहता हुआ सैनिक प्रस्थान करता है। तिष्यरक्षिता कक्ष में लौट आती है। सम्राट अभी तक ऊंघते ही दृष्टिगत होते हैं। पर्दा गिरता है।
उद्घोषक दिनेश प्रधान की आवाज़ गूंजती है " अब प्राचार्य महोदय वार्षिक रिपोर्ट पढ़ेंगे "
वास्तव में इस रिपोर्ट पठान को मध्य में इसीलिए रखा गया था कि ,सांस्कृतिक कार्यक्रम समाप्त होने के बाद सभी लोग जाने की उतावली में होते हैं ,यहाँ तक की मुख्य अतिथियों को भी उकताहट सी महसूस होती है।
प्राचार्य महोदय स्टेज पर पधारे और तालियों की गड़गड़ाहट ने उनका स्वागत किया। उन्होंने वार्षिक रिपोर्ट पढ़ना आरम्भ किया। उन्होंने क्रमशः नवीन नियुक्तियां,यूनिवर्सिटी में प्रथम श्रेणी अर्जित करने वाले छात्र छात्राओं के नामों का उल्लेख किया ,प्रत्येक के नाम पर तालियां बजीं। खेलों में अर्जित इनामों और ट्राफियों का उल्लेख हुआ,वाद विवाद और भाषण प्रतियोगिताएं जीतने वाले छात्र छात्राओं के नाम घोषित किये और साथ ही 26 जनवरी को झंडा वंदन के पश्चात् माननीय तहसीलदार साहब के हाथों सभी पुरस्कारों का वितरण एक समारोह में किये जाने की घोषणा की। उन्होंने शीघ्र ही वाणिज्य और विज्ञानं संकाय आरंभ होने की भी घोषणा की। इन सभी घोषणाओं का सभी ने खुल कर स्वागत किया जो देर तक बजने वाली तालियों से हो अनुभव किया जा रहा था। वार्षिक रिपोर्ट के बाद पुनः पर्दा गिर गया और नाटक सम्राट अशोक के अगले भाग की घोषणा हुई। ---क्रमशः ----
उद्घोषक दिनेश प्रधान की आवाज़ गूंजती है " अब प्राचार्य महोदय वार्षिक रिपोर्ट पढ़ेंगे "
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