रामायण के काल में गार्गेय एक सुप्रसिद्ध गोत्र था ब्राम्हणो का हमारे परिवार का उद्भव इसी गोत्र से हुआ जितनी पूर्वजों की पीढ़ियां मुझे प्रामाणिक रूप से ज्ञात हैं उनके अनुसार सर्व प्रथम श्री पांडुरंग तथा राधा पेरलेकर ,उनकी संतान श्री बालाजी एवं श्रीमती वाराणासी पेरलेकर ,उसके पश्चात श्री रंगनाथ व श्रीमती राधा पेरलेकर तथा उसके पश्चात मेरे दादा जी श्री गोविन्द राव पेरलेकर तथा उनकी पत्नी सरस्वती पेरलेकर , पिपल्या गाँव के रहने वाले थे.जो इंदौर से कुछ किलो मीटर पर स्थित है.उनकी इतनी जमीन थी की आज की तारिख में करोड़ों की होती.इन जमीनों में अनाजों के आलावा आमों के बाग़ थे.यह भी एक प्रामाणिक तथ्य है के उनसे भी पूर्व की पीढ़ियों में भी ,एक श्री दत्तात्रेय पेरलेकर ने उज्जैन के रामघाट पर एक मंदिर समाज को दान कर दिया था,चूँकि मंदिर काफी बड़ा है तथा आज तक { 26-1-2020 }वहां निर्विघ्न रूप से ,अत्यंत ही कम नाम मात्र की राशि लेकर सम्पूर्ण श्राद्ध कर्म किये जाते हैं चूँकि श्राद्ध कर्म एक अनिवार्य अनुष्ठान है ,प्रत्येक हिन्दू के लिए, अतः कम से कम राशि में यहाँ श्राद्ध करवाने कई लोग दूरस्थ प्रदेशों से भी आते हैं ,यह मेरे लिए गर्व की बात है कि मैं ऐसे परिवार की वंशज हूँ. दादा जी के चार बेटे दत्तात्रेय { पत्नी प्रमिला परलेकर} ,रामकृष्ण , {पत्नी सुशीला परलेकर}पांडुरंग {पत्नी मंगला परलेकर }एवम पुरुषोत्तम {पत्नी लीला परलेकर}तथा चार बेटियां दुर्गा,सुभद्रा यमुना तथा गंगा जो कुछ समय पहले तक वासुदेव नगर इंदौर में रहती थी।
घाटाबिल्लौद के पास स्थित पिपंलीया गाव के खेतो के अतिरिक्त पेरलेकर परिवार के खेत बगडी रोड पर रतवा गाव में भी थे| हातोद में भी हमारी संपत्ति थी इसका पता तब चला जब हातोद से कुछ लोग वर्ष १९६५ में इंदोर आए व उन्होंने बताया की पेरलेकर परिवार के एक महंत वहा रहते थे व उनके द्वारा वहा हनुमान मंदीर बनवाया है व परिसर में स्कूल संचालित है;महंत जी का देव लोक गमन हो गया है व वसियत के मुताबिक संपूर्ण संपत्ति पेरलेकर परिवार के इंदोर स्थित भाई यो को दी जाना है उनके आग्रह पर भाऊ अण्णा भैय्या हातोद गये थे व जायजा लिया वहा चल रहे नेक कार्य को देखणे हुए सभी भाईयो ने निर्णय लेकरं संपूर्ण संपत्ति व्हा की समिति के नाम कर दि | वहा के महंत शायद हमारे दादा परदादा के भाई रहे होंगे | अण्णा साहेब स्वत: वकील होने के कारण नेक कार्य तत्काल संभव हो सका
धोडपकर परिवार हमारे पिता की मौसी का घर है मौसी को तीन पुत्र सर्व श्री वसंत धोडपकर रघुनाथ व रमेश थे| वसंत राव के दो पुत्र मनोहर व अरुण ,मनोहर सनावद पालीटेक्नीक में व्याख्याता थे उनका निधन हो चुका है इनके दो पुत्र है एक फिल्म स्टोरी रायटर था जिसका निधन हुआ है दूसरा अहमदाबाद में स्वत: का व्यवसाय कर रहा है|अरुण धोडपकर बैक नोट प्रेस देवास से सेवा निवृत है देवास में रहते है इनके दो पुत्र है एक विदेश में व दुसरा बगंलेरु में है दो नो ही पुत्र इंजीनीयर है| रमेश धोडपकर ने विवाह नहीं किया था|रघुनाथ धोडपकर जबलपूर स्थित पोस्ट आफिस में प्रमुख पोस्ट मास्टर के पद पर सेवा निवृत हुए थे इन के दो पुत्र व दो पुत्री या है बडा पुत्र सतिश इंजीनियर था जो अब नहीं है दुसरा पुत्र सुधीर दिल्ली में है|वसंत राव व रघुनाथ राव की एक बहन भी थी (चंपू आत्या) जो शासकीय स्कूल में अध्यापिका थी
एक और मौसी का परिवार श्री मांदळे परिवार खण्डवा में है हमारे पिता के मौसेरे भाई थे उनकी पत्नी का नाम गीता वहीनी था।
शहापूरकर परिवार यह हमारे पिता के मामा का घर है |तीन मामा थे १ नारायण मामा पत्नी रमा मामी इनकी २ लडकीया शांती आत्या सोनदत्तीकर व मालू आत्या ढोबळे थी| शांती आत्या के दो पुत्र अशोक व रमेश तथा एक पुत्री रजनी (रजनी का देहावसान हो चुका है)अशोक देवास में रहते है व मेडीकल शाप चला रहे है दुसरे रमेश व उनकी पत्नी डाक्टर है व मुंबई में है | बाळकृष्ण मामा व राधा मामी को कोई संतान नहीं थी मामी का देहावसान १९५४मे हुआ था मामा अधिकतर अण्णा के यहाँ (पुरषोत्तम पेरलेकर) के यहाँ रहते थे|सबसे बडे मामा (नाम मुझेज्ञात नहीं) के पुत्र रामूभैया शहापूरकर भोपाल सेक्रेट्रियेट में उच्च पद पर कार्यरत थे उनके तीन पुत्र व तीन पुत्री या है बडा बेटा वसंत शहापूरकर लोक निर्माण विभाग से इजीनियर सेवा निवृत हुए थे इनकी दो पुत्री या दोनो डाक्टर है व पुणे में रहती है | रामूभैया के दो अन्य पुत्र गोविंद गोपाळ जुडवा भाई थे दोनो ही बडे आर्टिस्ट थे | लडकियो में आशुमाई विद्या व नाम भूल रहा है इसने श्रीवास्तव से विवाह किया भोपाल में है आशुमाई ने सोलकर कालेज से एम एस सी किया था व केद्रीय विद्यालय भोपाल से सेवा निवृत हुई विद्या इंदोर टाऊन प्लानिंग विभाग से स्वेछीक सेवावृत्ती ले कर पूना में लडके के पास यह रही है शहापूरकर परिवार यह हमारे पिता के मामा का घर है |तीन मामा थे १ नारायण मामा पत्नी रमा मामी इनकी २ लडकीया शांती आत्या सोनदत्तीकर व मालू आत्या ढोबळे थी| शांती आतल्या के दो पुत्र अशोक व रमेश तथा एक पुत्री रजनी (रजनी का देहावसान हो चुका है)अशोक देवास में रहते है व मेडीकल शाप चला रहे है दुसरे रमेश व उनकी पत्नी डाक्टर है व मुंबई में है | बाळकृष्ण मामा व राधा मामी को कोई संतान नहीं थी मामी का देहावसान १९५४मे हुआ था मामा अधिकतर अण्णा के यहाँ (पुरषोत्तम पेरलेकर) के यहाँ रहते थे|सबसे बडे मामा (नाम मुझेज्ञात नहीं) के पुत्र रामूभैया शहापूरकर भोपाल सेक्रेट्रियेट में उच्च पद पर कार्यरत थे उनके तीन पुत्र व तीन पुत्री या है बडा बेटा वसंत शहापूरकर लोक निर्माण विभाग से इजीनियर सेवा निवृत हुए थे इनकी दो पुत्री या दोनो डाक्टर है व पुणे में रहती है | रामूभैया के दो अन्य पुत्र गोविंद गोपाळ जुडवा भाई थे दोनो ही बडे आर्टिस्ट थे,मैंने बचपन में गोपाल गोविन्द में और पत्नी में , हम सपरिवार लक्ष्मी उच्चतर विद्यालय के समीप ही था ,मैंने आशुमाई था। | लडकियो में आशुमाई विद्या व नाम भूल रहा ह इसने श्रीवास्तव से विवाह किया भोपाल में है आशुमाई ने सोलकर कालेज से एम एस सी किया था व केद्रीय विद्यालय भोपाल से सेवा निवृत हुई विद्या इंदोर टाऊन प्लानिंग विभाग से स्वेछीक सेवावृत्ती ले कर पूना में लडके के पास यह रही हैहोलकर कालेज इंदोर आशु माई के पति नाशीक्कर साहेब कालेज में व्याख्याता थे
हाल ही में फेसबुक पर एक पोस्ट देखी ,जिसमे किसी मृत्यु के बारे में लिखा था किन्तु प्रार्थनीय लोगों में अतुल परलेकर एवं पत्नी दीप्ति परलेकर का नाम था साथ ही फ़ोन नंबर भी लिखा था । मेरे चचेरे भाई दीपक परलेकर ने { रामकृष्ण परलेकर के सुपुत्र ,शैला अलका के इकलौते भाई }एक फॅमिली ग्रुप बनाया है Whatsapp पर Perlekar & Perlekar's,यह एक मधुर concept है जिसमे सभी भाई ,बहने,बेटियां और दामाद Group Members हैं ,जब Whatsapp पर बताया ,तो दीपक ने ही पहल की,उसने उन्हें फ़ोन किया ,मिलने के लिए बुलाया ,और यह प्रसन्नता की बात निकली कि ,वे हमारे पिता के चचेरे भाई के वंशज निकले। दीपक ने आरम्भ से ही मुझे परिवार के इतिहास के सम्बन्ध में जानकारियां उपलब्ध कराई। उसने उन दोनों के ही फोटो भी पोस्ट किये। वैसे तो जीवन क्षण भंगूर है किन्तु इस छोटे से जीवन में हम कितने संबंधों और बंधनों से बंधे हैं। मैंने सभी को इस पोस्ट में यथा योग्य स्थान देने का प्रयास किया है।
हमारे पूर्व ज कोई २०० वर्ष पूर्व दक्षिण भारत के सातारा जिल्हा अन्तर्गत पेरले गावं से मराठो के साथ मध्यप्रदेश के मालवा अंचल में धार के समीप ठिग्ठान घाटाबिल्लोद में आ कर बस गये थे वहां उन्हे तत्कालीन राजा द्वारा जीवन यापनहेतु कृषि भूमि दी गई थी ! हमारे परदादा के साथ उनके भाई भी साथ रहे होंगे कारण उस परिवार की भूमि भी हमारे भूमि से लगी हुई बताई गई है! हमारी भूमि घाटाबिल्लोद ,रतवा ,तथा पिंपळ्या गाव में थी वर्तमान में हमारी भूमि का कुछ भाग औद्योगिक शहर पिथमपूर के सेक्टर सी में आता है यांनी उक्त भूमि आज करोडो की है!हमारे दादा गोविन्द पेरलेकर सरकारी मुलाजिम थे उन्हे एक घोडा दिया गया था जिस स्वार होकर ले आसपास के गाँव में शासकिय राजस्व वसूली हेतु जाया करते थे! गोविंद राव के चार पुत्र व पाच पुत्रीयां थी सबसे बडी जीजी कीक्ष उम्र गोविंद राव के दुसरी पत्नी के उम्र से थोडी ही कमी थी जीजी का विवाह उन्हेल के विपट परीवार में हुआ था लडकी वाले पिंपळ्या गाव से उज्जैन गये थे बारात छ छकडो (बैल गाडी) से गई थी शादी के लिये चारो भाईयो को स्पेशल जरी की टोपियां व कोट सिलवाये गये थे!लिफ्ट परिवार बडा परिवार है उनके यहाँ रोज के भोजन पर सौ से अधिक ब्राम्हण सोला पहन कर खाना खाने बैठते थे ! शादी में भी पेरलेकर परिवार पर बोझ नहीं आने दिया उनके मेहमानो का खाना अलग से बनवाकर परोसा गया था !उस समय एक दो लड्ड परोसने का रिवाज नहीं था लड्ड थाली में भरकर लाए जाते थे व संम्पूर्ण थाली परोस थी जाती थी! खाने वाले भी सौ सौ लड्ड खा जाते थे
गाव में हमारे खेतो पर सौ से अधिक आम के पेंड थे गाय भैसे भी काफि थी घर में दुध दही मख्खन की रेलचेल थी .मुख्य फसल में तु्वर , चना ,गन्ना, आम,इत्यादी थे !गेहु चावल खरीदने हेतु अनाज को एक्सचेंज करना होता था !सब कुछ संम्पन्न ता थी परंतु पैसै नहीं थे!पैसे कमाने के लिये सबसे पहले दादा (दत्तात्रय पेरलेकर ) इंदोर आए भोई मोहल्ला में रहते हुए एक ट्रासपोर्ट कम्पनी में काम करते थे साथ ही शौकिया तौर पर सिनेमा पोस्टर्स पेन्टीग का कार्य करते थे मुंबई में काम का अवसर आया पर नहीं गये कुछ समय पश्चात भाऊ भैया भी पढाई के लिये इंदोर आ गये दोनो भाई बारी बारी सुबह शाम खाना बनाते थे!दोनो भाई रोटी या बहुत खुब बनाते थे भोजन भी स्वादीष्ट रहताथा ! उस समय लाईट नहीं थे सो पढाई लालटेन में होती थी ! भाऊ भैया पांचवी की परीक्षा देने गांव से बच्चो के साथ इंदोर आए थे तब मल्हार गंज से इंदोर शुरू होता था परीक्षा के बाद मल्हार गंज में मास्टर ने सभी बच्चो को खाना खिलाया था !प्रति छात्र पांच पैसै में श्रीखण्ड पुरी का खाना भरपेट मिला था! दादा का विवाह इंदोर में चाळीसगाव कर परिवार में हुआ निर्मला पेरलेकर इकलौति लडकी होने के कारण लागली थी भाई यातल्या मामा जाने माने स्टेनो ग्राफर थे अग्रेजी पर प्रभुत्व था उनोन्हे जाने माने वकिलो के साथ काम किया था ! मेट्रीक पास कर भाऊ ने नोकरी ज्याईन कर ली भैया ने पढाई जारी रखी भैया ने इतिहास व अंग्रेजी में एम ए किया बाद में एल एल बी किया उस समय आग्रा विश्वविद्यालय था ! भैय्या ने खरगोन जिले के ठिकरी में शिक्षा विभाग में शिक्षण कार्य किया व्हा पहुचने के लिये नदी पैदल पार करना पडती थी इस कारण नोकरी छोड दी बाद में इंदोर में नंदलाल भंडारी स्कूल में प्राचार्य रहे भैया का रहन सहन अत्यत साधारण था एक निश्र्चित ड्रेस कोड था ! भाऊ लोक स्वास्थ विभाग से इंजीनीयर रीटायर्ड हुए! स्कूल में भैया का बहुत प्रभाव था उस समय छात्र नेता महेश जोशी , चंद्र प्रभाष शेखर उन से डरते थेभैय्या के पास वकिली की सनद ऐसी थी की वो कही भी वकिली कर सकते थे इंदोर में भैया ने मात्र एक दिवस वकालत की क्योकी झुठ नहीं बोल सकते थे। उन्होंने स्वयं था कि १९७९-८० तत्कालीन सुप्रीम कोर्ट के जज साहेब उनकी क्लास बेंचर थे और यह कि उन्हें स्वयं इसी तरह की पोस्टऑफर हुई और माँ {माई }
ने कहा कि घर छोड़ कर जायेगा।
कामरेड होमीदाजी उनके सहपाठी थे। मुकदमा ऐसा था कि एक लडके ने एक वृद्धा को सायकल से टक्कर मार दी थी और वह घायल हो गई थी कोर्ट में लडके के तरफ से बताना था कि लडका सही चल रहा था वृद्धा ही बीच में आ गई भैया साहेब ने सही बंता दिया की लडका गलत था इसके बाद ले कोर्ट नहीं गए.एम पी बोर्ड के पाठ्यक्रम में भैया साहेब द्वारा लिखित अंग्रेजी टेक्सट बुक दसवी क्लास में पढाई जाती थी बुक के प्रकाशक भैया बुक डेपो खजूरी बाजार थे वर्षो उन्हे रायल्टी मिल रही थी ! भैय्या साहेब के अनेक विद्यार्थी उच्च पदो पर कार्यरत रहे.
अण्णा साहेब ने मराठी मिडील स्कूल में शिक्षा ली उन्होंने स्नातक होने के बाद एल एल बी किया इंदौ र में नामजोशी वकील साहेब के साथ काम किया ! अण्णा साहेब ने अपने सहपाठी लीला बेनर्जी से प्रेम विवाह किया। पत्नी शुद्ध मराठी बोलती थी कारण उन्होंने मराठी में पढाई की थी! अण्णा साहेब को दो पुत्रियाँ व एक पुत्र है बडी निरुपमा है अनुपमा व भरत छोटे है ! निरुपमा लेखिका है अनुपमा मालव शिशु विहार इंदोर में प्राचार्य है भरत अपने पिता के समान एडव्होकेट है भरत का पुत्र शोर्य कक्षा ग्यारवी में है यह पेरलेकर खानदान में सबसे छोटा पुत्र रत्न है! लीला पेरलेकर प्रख्यात शिक्षा विद रही मंदसौर सीतामऊ में अधिक समय रही इंदौर के मालवा कन्या विद्यालय से प्राचार्य
पद पर सेवानिवृत्त हुई उन का रहन सहन अत्यंत साधारण था उच्च विचार के साथ अनुशासन प्रिय थी। भैय्या साहेब से बडे रामकृष्ण पेरलेकर ने इंदौर आ कर मैट्रिक पास किया परिवार की जिम्मेदारी होने से सरकारी नौकरी कर ली भाईयो को पढ वाया बाद में नौकरी में रहते हुए दिल्ली जा कर सिविल इंजीनियरिंग का छोटा कोर्स किया अनेक स्थानो पर जमीन के सर्व्हे का काम किया मकानो के नक्शे रात भर में बना कर सौप देते थे एक नक्शा बनाने पर पांच रुपये मिलते थे भाऊ ने अनेक लोगो को सर्व्हे का काम व भवनो के नक्शे बनाना सिखाया उन मे से अनेक लोग इंदौर में वास्तुविद बने भाऊ ने नीजी तौर पर अनेक भवनो का निर्माण कराया सरकारी नौकरी में नर्मदा प्रोजेक्ट के कार्य में भागीदारी रही नर्मदा का पानी इंदोर में आया और वे सेवा निवृत हुए! नगर निगम इंदौर में कार्यपालन यंत्री का पद आफर हुआ था पर नहीं गये कुल ३८ वर्ष नौकरी की थी ! तीस वर्ष की उम्र में उज्जैन के भालेराव परिवार की सुशीला से विवाह किया इनके दो पुत्रियां व एक पुत्र है बडी शैला का विवाह देशमुख परिवार के दिलीप से हुआ शैला की दो बेटीयां इजीनियर है व विदेश में है पति टेल्को पुणे में इलेक्ट्रीकल इजीनियर थे ! दूसरी बेटी का विवाह इंदौर में शिहुरकर परिवार के अनिल से हुआ .अनिल एम पी एग्रो में ब्रांच मेनेजर रहे इनकी दो पुत्रियां है बडी रुपाली इंदौर में शिक्षिका है छोटी ऋतिका मुंबई में रहती है वह साफ्टवेयर इजीनियर है हाउसिंग बोर्ड इंदौर से सहायक यंत्री के पद पर सेवानिवृत्त हुए दीपक का विवाह इंदौर के बुद्धीवंत परिवार की छाया से हुआ है
गोविंद पेरलेकर के सबसे बडे पुत्र दत्तात्रय पेरलेकर प्रख्यात ज्योतिषी थे उन्होंने अनेक लोगो की समस्या ओं का जोतिष के माध्यम से निराकरण किया | इंदोर स्थित दिगंबर पब्लिक स्कूल की स्थापना में उनका महत्त्व पूर्ण सहयोग रहा था उन्होंने उषाराजे ट्रस्ट में भी कार्य किया वही से वे सेवा निवृत हुए ,इनके पांच पुत्र व एक पुत्री हुए जिनमे अशोक ,अरुण ,अनिल( बंडु) शेखर तथा शरद( बापू) और पुत्री सुधा है | वर्ष १९९० में बापू का दुःखद निधन हुआ था| अशोक ने पालिटेक्नीक इंदौर से दो विषयों में ( मेकेनिकल तथा ईलक्ट्रीकल) में डीप्लोमा किया व वही पर वर्कशाप में इनस्ट्रकटर के पद पर काम किया व सेवा निवृत हुए ,इनका विवाह बुरहानपुर में पेटारे परिवार की शोभा से हुआ बारात इंदौर से बस द्वारा बुरहानपुर गई थी| शोभा के काका ईच्छापुर देवी मंदिर में ट्रस्टी है यह जागृत स्थान बुरहानपुर के आगे मध्यप्रदेश महाराष्ट्र सीमा पर स्थित है परिसर पहाड व घने जंगल से आच्छादीत हैं
अरुण पेरलेकर ने स्नातक होने पर न्यू इंडिया इन्शुरन्स कम्पनी में काम किया विवाह इंर के बेहले परिवार की रत्ना से हुआ रत्ना स्टैट बैक आफ इंडिया में कार्य रत रही वही से सेवा निवृत हुई
अनिल पेरलेकर शुरु से शांत स्वभाव के हैं इन्होने कृषि विभाग में कार्य किया वहीँ से सेवा निवृत हुए | अनिल ने विवाह नहीं किया है
चौथे नंबर के शेखर पेरलेकर बहुत बुद्धिमान विद्यार्थी रहे है उन्हे शुरु से ही विज्ञान व फिजिक्स विषय में रुची थी उन्होने होलकर विज्ञान महाविद्यालय से इलेक्ट्रॉनिक्स में एम एस सी किया व नेशनल इलेक्ट्रॉनिक्स रिसर्च इन्स्टिट्यूट में नौकरी की कुछ वर्ष जर्मनी में भी काम किया था,इनका विवाह शैलश्री गानु से हुआ संपूर्ण सर्विस पिलानि राजस्थान में की वहीं से सेवा निवृत हुए वर्तमान में पूणे महाराष्ट्र में सेटल्ड है इनका बेटे प्रसाद पेरलेकर ने प्यूअर फिजिक्स स्पेस साईन्स में एम एस सी पीएचडी किया है व भारत के स्पेस साइंटीस्टीट हैं अपने रिसर्च पेपर पढने अक्सर विदेश जाते रहते है
दत्तात्रय पेरलेकर की पुत्री सुधा पांच भाईयो में एक मात्र बहन है इसका विवाह इंदौर में मोहन फणसलकर से हुआ है
शरद पेरलेकर पांचवे नंबर के पुत्र ( बापू) भी बुद्धिमान व्यक्तिमत्व के धनी थे उसने हिंदुस्तान स्टील कन्सक्ट्रशन कंम्पनी में काम किया कम उम्र में ही उनका दुःखद निधन हो गया उनका विवाह हेमांगी वडनेरकर से इंदौर में हुआ था इनकी एक मात्र पुत्री ने सीए किया है
दत्तात्रय पेरलेकर की पुत्री सुधा पांच भाईयो में एक मात्र बहन है इसका विवाह इंदौर में मोहन फणसलकर से हुआ है
गोविंद पेरलेकर की पांच पुत्रीया थी जिनमे सबसे बड़ी जीजी का विवाह उन्हेल के विपट परीवार में हुआ था दुसरी दुर्गा बाई का विवाह देवास के कापडे परिवार में हुआ पति शिक्षक थे इनका वैवाहिक जीवन सफल नहीं होने के कारण दुर्गा बाई सर्वत्र रुप से खण्डवा में रही वहां वह शादी पार्टि व अन्य कार्य क्रमो में खाना बनाकर देती थी व अपना जीवन यापन करती थी दुर्गा बाई ने चारो धाम की यात्रा की उसय वह परिवार की एक मात्र महिला थी जिसने चारो धाम की यात्रा की हो उसने नेपाल में पशुपतिनाथ के दर्शन किये वहां वह हवाई जहाज से गई थी . दुर्गा बाई ने अनेक धार्मिक स्थानो पर जाकर दर्शन किये व दान दिया विशेष कर के दत्त स्थान कारंजा महाराष्ट्र तथा गरुडेश्वर गुजरात और खेडीघाट मोरटक्का मध्यप्रदेश जहाँ आजीवन अभिषेक व पूजा हेतु दान दिया | कारंजा में हमारे और से पूजा हेतु दान दिया जिसका प्रसाद प्रतिवर्ष प्राप्त होता है !मैं दुर्गा आत्या की नेपाल यात्रा के बारे में जानकर हैरान हूं। बेशक वह हमारे दिलों में एक आदर्श महिला है क्योंकि उसने अपना जीवन अपने दम पर जिया, उसने संघर्ष किया और वह अपने सभी भाई-बहनों और उनके बच्चों से प्यार करती थी। जब हम जेल रोड पर रह रहे थे तो मैंने उसके आने का सपना देखा, सुबह 6 बज रही थी, मैंने दस्तक सुनी, मैंने दरवाजा खोला और वह मेरे सामने अपनी सूंड को हाथ में पकड़े हुए मुस्कुरा रही थी, मैं उसे अपनी खुली आँखों से देख रहा
नंबर चार सुभद्रा आत्या सुंदर व्यक्तिमत्व की धनी थी इनका विवाह इंदौर के चिंचाळकर परिवार में हुआ पति सिविल इंजीनियर थे , सुभद्रा आत्या बहुत ही सुंदर कपडे की गुडिया बनाती थी जिनकी मांग इंदौर के बाहर भी हुआ करती थी इनके तीन पुत्र थे जिनमे दो सिविल इंजीनियर थे चंद्रकांत व वसंत पीडब्लूडी में थे
शालीनी ( गंगू आत्या)सबसे छोटी बहन थी बचपन से ही बहुत बुद्धिमान थीं गणित इनका प्रिय विषय था लिखावट सुंदर थी सबसे छोटी होने के कारण लाड़ली थी इंदौर में ही शिक्षा हुई इनका विवाह माता पिता के बिछड ने पर भाईयो ने संम्पन्न कराया विवाह इंदौर के देशपांडे परिवार के यशवंत से हुआ यशवंत जी को अग्रेज कंपनी ब्रुक बांड में स्टेनोग्राफर की नौकरी थी इनके तीन पुत्र हुए बडा बेटा दिलीप सिविल इंजीनियर था दूसरा विजय आई डी बी आई बैक से सेवा निवृत है व तीसरा मिलिंद नीजी कंपनी में काम कर रहा है
हमारे पिता जी की दादी यांनी गोविंद पेरलेकर की माता जी राधा बाई बहुत बुद्धिमान व हिम्मत वाली महिला थी उस जमाने में वह घोडे की सवारी करती थी जब आवा गमन के ज्यादा साधन नही थे उसने चारो धाम की यात्रा की केदारनाथ जैसी कठिन स्थान की यात्रा की, यात्रा में ही उनका एक पैर क्षतिग्रस्त हो गया पर उहोने हार नहीं मानी उहोने लकडी का कृत्रिम पैर लगवाया था
हम पेरलेकर शैव संप्रदाय से है शंकर भक्त है हमारे कुलस्वामी जोतिबा व कुल देवी जानाई( यमाई) हैं जोतिबा देव स्थान कोल्हापूर से चालीस किलोमीटर दूर पहाड पर है यमाई का मंदीर सातारा जिलेे में है| हमारे यहाँ नवरात्र उत्सव होता है कुळधर्म राखी पूर्णिमा होली पूर्णिमा माही पूर्णिमा को होता है खंडोबा का नवरात्र उत्सव होता है व चम्पाषष्ठी को कुळधर्म होता है ईसी प्रकार दशहरे के समय नवमी को कुळधर्म होता है| हमारे दादा की दोनो पत्नियों का निधन सुहागन अवस्था में होने के कारण परिवार में जब भी शादी का प्रसंग होता है तब दो सुहागिनी स्त्रियों को ग्रहयज्ञ के समय भोजन कराकर उन्हे नये वस्त्र भेट किये जाते है। कोल्हापूर के समीप विराजित जोतिबा शंकर ही है उनकी बहन यमाई ने राक्षसो का संहार करने उन्हे पुकारने पर वे उत्तर से दक्षिण में प्रगट हुए थे| जोतिबा की आरती में उल्लेख है कि उत्तरे चा देव दक्षिणी आला व दक्षिण केदार नाम पा्वला.वाडी -- रत्नागिरी है , करवीर अर्थात कोल्हापूर जिले का महान क्षेत्र है वाडी रत्नागिरी यह केदार लिंग का पवित्र स्थान है। वाडीरत्नागीरी अथवा ज्योतिबा का डोगंर भी कहते है यह कोल्हापूर से १२ माईल दूर है| ज्योतिबा ने यहाँ रत्नासुर दैत्य का वध किंवा था उस कारण इस स्थान को वाडीरत्नागिरी भी कहा जाता है| ज्योतिर्लिंग याने मोक्ष दिखाने वाले चिन्ह स्थान के प्रतीक होते है ये स्थान मोक्ष के महाद्वार है | ज्योतिबा पहाड पर स्थित शिवलिंग ही ज्योतिबा है | पौगंड ऋषी व उनकी पत्नी विमलांबुजा को वंश का पुत्र नहीं था इस कारण उन्होंने हिमालय पर्वत पर कठिन तप किंया था प्रसन्न होकर बद्रीकेदार द्वारा वचन दिया कि वे उनके यहाँ जन्म लेंगे इस प्रकार चैत्र मास की षष्ठि को रविवार के दिन आठ वर्ष की बाल मूर्ति उनके यहाँ प्रगट हुंई यह बाल मूर्ति बद्रीनाथ की प्राण ज्योति ज्योतिबा हैं | यमाई यांनी महालक्ष्मी करवीर निवासिनी के पुकारने पर दैत्यो के विनाश करने के लिये ज्योतिबा का इधर आगमन हुआ था
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