मेरे दादाजी श्री गोविन्द पेरलेकर पिपल्या गाँव के रहने वाले थे,जो इंदौर से कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर स्थित है.उनकी इतनी जमीन थी कि आज कि तारीख में करोड़ों की होती,इन जमीनों में अनाजों के अलावा आमों के बाग़ भी थे,दादाजी के चार बेटे श्री दत्तात्रेय ,राम कृष्ण ,पांडुरंग एवं पुरुषोत्तम { जिनका ज़िक्र तोपखाने के मकान के स्वन्दर्भ में हुआ था},और चार बहने दुर्गा, यमुना{जो धार में रहती थी}सुभद्रा{जिनका तोपखाने का मकान था}और सबसे छोटी गंगा जो कुछ समय पहले तक वासुदेव नगर में रहती थी.
वह जमाना पढ़ाई कर के नौकरी के लिए शहर की तरफ पलायन कर जाने का था,चारों भाइयों ने सारी जमीन मात्र दस हज़ार रुपयों में बेच दी और आपस में ढाई ढाई हज़ार रुपये बाँट लिए और इंदौर आकर बस गए.
घाटाबिल्लौद के पास स्थित पिपल्या गांव के खेतो के अतिरिक्त पेरलेकर परिवार के खेत बगडी रोड पर रतवा गाव में भी थे| हातोद में भी हमारी संपत्ति थी इसका पता तब चला जब हातोद से कुछ लोग वर्ष १९६५ में इंदौर आए व उन्होंने बताया की पेरलेकर परिवार के एक महंत वहाँ रहते थे व उनके द्वारा वहाँ हनुमान मंदिर बनवाया है व परिसर में स्कूल संचालित है;महंत जी का देव लोक गमन हो गया है व वसीयत के मुताबिक संपूर्ण संपत्ति पेरलेकर परिवार के इंदौर स्थित भाई यो को दी जाना है उनके आग्रह पर भाऊ अण्णा भैय्या हातोद गये थे व जायजा लिया वहाँ चल रहे नेक कार्य को देखते हुए सभी भाईयो ने निर्णय लेकरं संपूर्ण संपत्ति वहाँ की समीति के नाम कर दी | वहाँ के महंत शायद हमारे दादा परदादा के भाई रहे होंगे | अण्णा साहेब स्वत: वकील होने के कारण नेक कार्य तत्काल संभव हो सका !-
घाटाबिल्लौद के पास स्थित पिपल्या गांव के खेतो के अतिरिक्त पेरलेकर परिवार के खेत बगडी रोड पर रतवा गाव में भी थे| हातोद में भी हमारी संपत्ति थी इसका पता तब चला जब हातोद से कुछ लोग वर्ष १९६५ में इंदौर आए व उन्होंने बताया की पेरलेकर परिवार के एक महंत वहाँ रहते थे व उनके द्वारा वहाँ हनुमान मंदिर बनवाया है व परिसर में स्कूल संचालित है;महंत जी का देव लोक गमन हो गया है व वसीयत के मुताबिक संपूर्ण संपत्ति पेरलेकर परिवार के इंदौर स्थित भाई यो को दी जाना है उनके आग्रह पर भाऊ अण्णा भैय्या हातोद गये थे व जायजा लिया वहाँ चल रहे नेक कार्य को देखते हुए सभी भाईयो ने निर्णय लेकरं संपूर्ण संपत्ति वहाँ की समीति के नाम कर दी | वहाँ के महंत शायद हमारे दादा परदादा के भाई रहे होंगे | अण्णा साहेब स्वत: वकील होने के कारण नेक कार्य तत्काल संभव हो सका !-
मैं निरुपमा ,मेरे पति श्री शंभू शंकर सिन्हा, मेरी छोटी बहन अनुपमा , छोटा भाई भरत उसकी पत्नी पूजा तथा पुत्र शौर्य एवं चचेरा भाई दीपक पेरलेकर जो राम कृष्ण के सुपुत्र हैं , हम सभी ने 27 October ( 1990) जो मेरे पिता पुरुषोत्तम पेरलेकर की पुण्यतिथि है के दिन ( 2024 को इस पुश्तैनी गाँव जाने का निर्णय लिया हम सभी एक टैक्सी से पहले बेटमा के गुरुद्वारे गए वहाँ से पीपल्या गए , वहाँ एक बुजुर्ग ने वह घर भी दिखाया , ज़मीन भी और कचहरी भी जिसमें दादा जी काम करते थे दिखाई साथ ही एक स्त्री ने वह राम हनुमान मंदिर दिखाया तथा कहा कि वह अब तक कई लोगों के अधिकार में रह चुका है क्यूँकि उसे किसी के व्यक्तिगत नाम से अधिकृत न करके उसे चलाने वाले के नाम पर होगा अतः मन प्रसन्न हुआ कि यह हस्तांतरण सार्थक सिद्ध हुआ । लौटते हुए हम अमका झमका मंदिर गंगा महादेव मंदिर फड़के स्टूडियो ,तथा धार के महादेव मंदिर भी गए । सुबह नौ से शाम साढ़ेसात बजे तक का यह समय आनंद से परिपूर्ण रहा ।तथा -क्रमशः---
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