मेरे बारे में---Nirupama Sinha { M,A.{Psychology}B.Ed.,Very fond of writing and sharing my thoughts

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मंगलवार, 2 नवंबर 2021

Anmol Kshann !!

 लगभग डेढ़ वर्ष पहले हम वॉकिंग से लौट रहे थे , एक bitch एक ख़ाली प्लॉट में बेचैनी से कूकिया रही थी , मैंने बाबा से कहा "देखो प्लॉट चारों ओर से दस फ़ीट की दीवार से घिरा है "सामने रोड की ओर एक ग्रिल का गेट था वह उसी में से अंदर चली गई होगी जैसे तैसे और बाहर नहीं निकल पा रही थी । हम दोनो वहीं खड़े हो गए , वह आशा भरी नज़रों से हमारी ओर देख रही थी ! तभी पड़ौस की स्त्री ने द्वार खोला , हमने पूछा " ये प्लॉट किसका है ? " उसने बताया कि वो बहुत दूर कहीं रहते हैं, सामने रहने वाली एक वृद्धा भी द्वार खोल कर बाहर आई   वह कहने लगी कि वह कल से ही उस प्लॉट में बंद है ! मैं सबसे पहले तो मूड कर थोड़ी दूरी पर स्थित एक परचून की दुकान से टोस्ट ले आई , उसे ग्रिल के अंदर डाल कर दिये किंतु क़ैद में किसे भूख लगती है उसने उन्हें मुँह भी नहीं लगाया । वहीं एक अंडर कन्स्ट्रक्शन बिल्डिंग भी थी , सामने वाली वृद्धा के घर के अंदर से एक बिहारी व्यक्ति निकल आया वह वहाँ किराएदार के रूप में रह रहा था , वह आगे बढ़ आया , हम सभी उस बिच को बाहर निकालने के बारे में विचार विमर्श करने लगे , यह विचार किया गया कि कोई अंदर जाकर उसे उठा कर , गेट के ऊपर साइड में बने सीमेंट के के चौकोर भाग पर रखेगा और इधर से उसे पकड़ कर नीचे उतार लिया जाएगा । वह बोला " काट तो नहीं लेगी " हमने कहा " नहीं काटेगी कुत्ता समझदार होता है , मदद करने वाले को क्यूँ काटेगा ? वह अंडर कन्स्ट्रक्शन बिल्डिंग से सीढ़ी एक बल्ला ले आया , हमने सीढ़ी पहले इस ओर फिर बल्ला उस ओर लगवा  दिया वह सीढ़ी से उस ओर गया वह बिच के समीप गया , वह डरी , फिर समझ गई कि मदद गार है ,उसने उसे गोद में उठाया , वह पूर्ण वयस्क थी , मध्यम आकार की , बारह पंद्रह किलो वज़न की रही होगी , उसने बल्ले पर उसे चढ़ा कर उसे जैसे तैसे ऊपर तक लाया , हम उसे पकड़ने का प्रयास करते तब तक वह कूद पड़ी, एक मिनिट बैठी रही ,उस व्यक्ति ने बल्ला और सीढ़ी पहुँचा दी , हमने उसका हार्दिक धन्यवाद किया , वहाँ उस क्षेत्र के कुत्ते थे , मैंने उस व्यक्ति को टोस्ट का पैकेट देकर उन्हें खिला देने को कहा, हम वहाँ से चल पड़े और bitchहमारे पीछे पीछे आ रही थी , मध्य मार्ग में वह दूसरी ओर मुड़ गई ,वह जिस क्षेत्र की थी वहीं चली गई । हम घर आ गए एक संतोष के साथ ! आज भी हमारा वॉकिंग का मार्ग वही है , वह प्लॉट अब भी वैसा ही है , अंडर कन्स्ट्रक्शन वाली मल्टी स्टोरी बन कर बस गई है , वह व्यक्ति कभी नहीं दिखा , न हमने उसका नाम पूछा न नम्बर लिया , लेकिन वह भी मनो मस्तिष्क पर छाप छोड़ गया !!

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