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बुधवार, 1 मार्च 2023

Dharm & Darshan !! Aantrik Anubhuti !!

कहानी: आन्तरिक अनुभूति


एक बार की बात है एक राजा की लड़की की शादी होनी थी, लड़की की शर्त ये थी कि जो भी 20 तक कि गिनती सुनाएगा उसको राजकुमारी अपना पति चुनेगी!गिनती ऐसी हो जिसमें सारा संसार समा जाए,यदी नहीं सुना सकेगा तो उसको 20 कोड़े खाने पड़ेंगे! और ये शर्त केवल राजाओं के लिए ही है!

अब एक तरफ राजकुमारी का वरणऔर दूसरी तरफ कोड़े!एक-एक करके राजा महाराजा आए राजा ने दावत भी रखी मिठाई और सब पकवान तैयार कराए गए!पहले सब दावत का मजा ले रहे होते हैं, फिर सभा में राजकुमारी का स्वयंवर शुरू होता है!

एक से बढ़ कर एक राजा महाराजा आते हैं!सभी गिनती सुनाते हैं वो सब पढ़े लिखे थे और जो उन्होंने पढ़ी हुई थी वो गिनती सुना दी लेकिन कोई भी वह गिनती नहीं सुना सका जिससे राजकुमारी संतुष्ट हो सके!अब जो भी आता कोड़े खा कर चला जाता,कुछ राजा तो आगे ही नहीं आए उनका कहना था!कि गिनती तो गिनती होती है राजकुमारी पागल हो गई है,ये केवल हम सबको पिटवा कर मजे लूट रही है!

ये सब नजारा देख कर एक हलवाई हंसने लगता है!वह कहता है अरे डूब मरो राजाओं, आप सबको 20 तक गिनती नहीं आती!

ये सब सुनकर सब राजा उसको दण्ड देने के लिए बोलते हैं!राजा उससे पूछता है कि तुम क्या गिनती जानते हो यदी जानते हो तो सुनाओ!

हलवाई कहता है, हे राजन यदि मैने गिनती सुनाई तो क्या राजकुमारी मुझसे शादी करेगीं!क्योंकि मैं आपके बराबर नही हूं,और ये स्वयंवर भी केवल राजाओं के लिए है!तो गिनती सुनाने से मुझे कोई फायदा नहीं, और मैं नहीं सुना सका तो सजा भी नहीं मिलनी चाहिए!

राजकुमारी बोलती है, ठीक है यदी तुम गिनती सुना सके तो मैं तुमसे शादी करूंगी!और यदि नहीं सुना सके तो तुम्हें मृत्युदंड दिया जायेगा!, सब देख रहे थे कि आज तो हलवाई की मौत तय है!

हलवाई को गिनती बोलने के लिए कहा जाता है,राजा की आज्ञा लेकर हलवाई गिनती शुरू करता है!

एक भगवान

दो पक्ष

तीन लोक

चार युग

पांच तत्व 

छह शास्त्र

सात स्वर

आठ खंड

नौ ग्रह

दश दिशा

ग्यारह रुद्र

बारह आदित्य 

तेरह विद्या

चौदह रत्न 

पन्द्रह तिथि

सोलह कला 

सत्रह वनस्पति

अठारह पुराण

उन्नीसवीं तुम

  और

बीसवाँ मैं

सब हके बक्के रह जाते हैं,राजकुमारी हलवाई से शादी कर लेती है!


इस गिनती में संख्या नहीं तजुर्बा का महत्व है, सिर्फ़ 20 तक की गिनती राजकुमारी पूछ रही है तो ये संख्या नहीं और कुछ है, यह अनुमान राजकुमार नहीं लगा सके।


इसलिए कहते हैं जिस के अंदर खुद की समझ न हो उसे शास्त्र विद्वान नहीं बना सकते ।


मनुष्य को सुकून भरी ज़िन्दगी जीने के किताबी ज्ञान के साथ साथ व्यवहारिक ज्ञान भी सीखना चाहिए 

  

*सफलता के 21 मंत्र "


1.खुद की कमाई  से कम

          खर्च हो ऐसी जिन्दगी

          बनाओ..!

2. दिन  में कम  से कम

           3 लोगो की प्रशंसा करो..!

3. खुद की भूल स्वीकारने

           में कभी भी संकोच मत

           करो..!

4. किसी  के सपनों पर  हँसो

           मत..!

5. आपके पीछे खडे व्यक्ति

           को भी कभी कभी आगे

           जाने का मौका दो..!

6. रोज हो सके तो सूरज को

           उगता हुए देखें..!

7. खूब जरुरी हो तभी कोई

          चीज उधार लो..!

8. किसी के पास  से  कुछ

           जानना हो तो विवेक  से

           दो बार...पूछो..!

9. कर्ज और शत्रु को कभी

           बडा मत होने दो..!

10. ईश्वर पर पूरा भरोसा

             रखो..!

11. प्रार्थना करना कभी

             मत भूलो,प्रार्थना में

             अपार शक्ति होती है..!

12. अपने काम  से मतलब

             रखो..!

13. समय सबसे ज्यादा

             कीमती है, इसको फालतू

             कामो  में खर्च मत करो..

14. जो आपके पास है, उसी

             में खुश रहना सीखो..!

15. बुराई कभी भी किसी की

             भी मत करो,

             क्योंकि बुराई नाव  में

             छेद के समान  है, बुराई

             छोटी हो या बङी नाव को

             डुबो ही देती  है..!

16. हमेशा सकारात्मक सोच

             रखो..!

17. हर व्यक्ति एक हुनर

             लेकर  पैदा होता है बस

             उस हुनर को दुनिया के

             सामने लाओ..!

18. कोई काम छोटा नहीं

             होता हर काम बडा होता

             है जैसे कि सोचो जो

             काम आप कर रहे हो

             अगर वह काम

             आप नहीं करते हो तो

             दुनिया पर क्या असर

             होता..?

19. सफलता उनको ही

             मिलती  है जो कुछ

             करते  है

20. कुछ पाने के लिए कुछ

             खोना नहीं बल्कि  कुछ

             करना  पड़ता है

21.  और  एक  आखिरी  बात

          जीवन में  " गुरु " न  हो तो  

          जीवन बेकार है

          इसलिए  जीवन में

         " गुरू " जरूरी  हैं

         "गुरुर" नहीं


पेड बूढा ही सही, आंगन में रहने दो। फल न सही, छाँव तो अवश्य देगा ठीक उसी प्रकार माता-पिता बूढे ही सही। घर में ही रहने दो,दौलत तो नहीं कमा सकते लेकिन आपके बच्चोंको संस्कार अवश्य देंगे।

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