राजा सगर को सौ नहीं बल्कि साठ हजार एक पुत्र था।
गंगा सागर सरोवर नहीं अपितु गंगा का सागर से मिलने का स्थल है।
राम जी के पूर्वजों में थे राजा सगर!वह काफी शक्तिशाली, तेजस्वी और धर्म परायण थे।उनकी दो रानियां थीं। दोनों रानियों ने साठ हजार पुत्रों को जन्म दिया था।
सगर सैकड़ों अश्वमेध यज्ञ कर चुके थे और परिणाम स्वरूप समूचे धरती पर उनका साम्राज्य हो गया था।अब जो यज्ञ कर रहे थे इसके पूर्णता के बाद उनका इन्द्र लोक पर अधिकार हो जाता। लिहाजा तत्कालीन इंद्र इस यज्ञ को पूरा नहीं होना देना चाहते थे।
इंद्र ने यज्ञ के घोड़े चुरा कर कपिल मुनि के आश्रम में बांध आया जब मुनि तपस्या में लीन थे।जब राजा को इसकी खबर लगी तो अपने साठ हजार पुत्रों को खोज पर लगा दिया।
वो खोजते खोजते मुनि के आश्रम तक पहुंच गये। वहां घोड़ा बंधा देखकर वो समझ बैठे कि मुनि ने ही घोड़े को बांधा है।आश्रम पर हमला कर दिया।मुनि की तपस्या भंग हो गई उनके क्रोध के कारण उनके आंखों से तेज अग्नि बन कर बरसने लगी जिसमें साफ़ हजार राजकुमार जलकर भस्म हो गये।
बहुत समय तक राजा को जब पुत्रों की कोई खबर नहीं मिली तो पोते अंशुमान को पता लगाने का भार दिया।
अंशुमान खोजते खोजते जब मुनि के आश्रम तक पहुंचा तब चाचाओं के राख देखकर दंग रह गया।
तभी वहां पक्षीराज गरुड़ ने पहूंचकर उसे सारी कहानी सुनाई।और यह भी कहा कि उनके आत्मा को तभी सद्गति और मुक्ति मिलेगी जब उनको तर्पण गंगा जल से मिलेगा।उस वक्त गंगा स्वर्ग लोक में बहती थी।
अंशुमान फिर उनके पुत्र दिलीप ने काफी प्रयास किए मगर गंगा को धरती पर नहीं ला सके।
दिलीप के पुत्र भगीरथ के घोर तप से ही यह संभव हुआ। इसलिए गंगा का एक नाम भागीरथी भी।
जेष्ठ शुक्ल की दशमी तिथि थी जब गंगा धरती पर उतर आई थी। इसलिए इस दिन गंगा दशहरा मनाया जाता है।
हिमालय से गंगा लेकर भगीरथ खुशी-खुशी गंगा सागर के तरफ बढ़ रहे थे उन्हें ये ध्यान नहीं रहा की रास्ते में जाह्नवी ऋषि का तप स्थल है। वहां पहुंचने पर ऋषि की आज्ञा नहीं लिया बस ऋषि गंगा को पी गये। बहुत विनती करने पर ऋषि ने अपने जांघ को चीर कर गंगा को बाहर किया उस दिन से उस जगह का नाम जांघीरा या जहांगीर है जो आज बिहार में सुल्तान गंज के नाम से प्रसिद्ध है।इस व्यवधान से यहां गंगा की दिशा बदल गई।
आज सावन में इसी जगह से कांवरिया जल भरकर देवघर पैदल जल लेकर जाते हैं।
मान्यता है कि इसकी शुरुआत रावण ने की थी।
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