मेरे बारे में---Nirupama Sinha { M,A.{Psychology}B.Ed.,Very fond of writing and sharing my thoughts

मेरी फ़ोटो
I love writing,and want people to read me ! I some times share good posts for readers.

शुक्रवार, 28 अप्रैल 2023

Bajirao Peshva !! Ek Vyaktitva !!( Saujanya)

बाजीराव पेशवा युग पुरुष थे! 


प्रत्येक युग में असाधारण प्रतिभाएं जन्म लेती हैं और अपने अपने क्षेत्र में असाधारण योगदान दे कर ये व्यक्ति इतिहास में अपना नाम दर्ज करा लेते हैं।


परन्तु छत्रपति शिवाजी, राणा प्रताप, नेपोलियन, बाजीराव जैसे व्यक्तियों की प्रतिभा इतनी विस्तीर्ण होती है कि वह नए युग का, नए इतिहास का निर्माण करते हैं और शताब्दियों तक मानवता उन्हे लोक कलाओं, लोकोक्तियों, गाथाओं आदि के माध्यम से जीवंत आदर्श बनाए रखती है। ऐसे लोगों के व्यक्तिव में कुछ ऐसी विशिष्टताएं होती है जो उन्हे महान से महानतम बना देती है। 


श्रीमंत बाजीराव पेशवा के जीवन के दो प्रसंगों को यहां वर्णित कर रहा हूं, जिनके संबंध में कम ही कहा सुना जाता है, परन्तु वे उनके चरित्र और व्यक्तित्व की विशालता का भव्य दर्शन करवाते हैं। 


सन 1735 में बाजीराव की माताजी राधाबाई ने काशी यात्रा की इच्छा प्रकट की। उस समय के राजनीतिक और भौगोलिक परिस्थितियों की कल्पना कीजिए। मराठों का दबदबा मुश्किल से पूना से लेकर नर्मदा के दक्षिणी किनारों तक ही था। नर्मदा पार करते ही मुगलों का साम्राज्य शुरू हो जाता था। वही मुगल जिनका सम्राट औरंगजेब इन्ही मराठों से सत्ताईस वर्षों तक युद्ध करने के बाद भी उन्हें पराजित नहीं कर पाया और अन्ततः वहीं मारा गया। 


तब से मराठों और मुगलों के सतत संघर्ष को अब लगभग 45 वर्ष हो चुके थे। लाखों लोग अपने प्राण न्यौछावर कर चुके थे। छत्रपति शिवाजी, छत्रपति संभाजी, छत्रपति राजाराम जैसे इस संघर्ष में अपने प्राण गवां चुके थे। आज भी मुगलों के प्रमुख औरंगजेब के पुत्र ही थे। 


ऐसी परिस्थिति स्वयं पेशवा की माताजी के लिए में नर्मदा के किनारों से लेकर काशी तक की यात्रा, विश्वेश्वर के दर्शन और पुनः सुरक्षित वापसी लगभग असम्भव ही था। परन्तु बाजीराव ने बिना किसी लाग लपेट के माताजी और अन्य सैकड़ों स्त्री पुरुषों को काशी यात्रा पर जाने की व्यवस्था के निर्देश दे दिए। 


जब राधा बाई और उनका लवाजमा, जिनके साथ समुचित संख्या में अंगरक्षक भी थे, नर्मदा तट पर पहुंचे तो आश्चर्यजनक रूप से उदयपुर के राणा की सेनाएं उन्हे लिवा लाने के लिए आई हुई थी। वे उन्हें ससम्मान उदयपुर ले गए। वहां स्वयं राणा और उनके परिवार ने उनका आतिथ्य किया और कई हफ्तों तक उन्हें अपने साथ महल में रखा। 


वहां से आगे जयपुर के राजा जयसिंह की सेनाएं पूर्ण सुरक्षा में उन्हे जयपुर लिवा लाई। जयसिंह पर आज भी मुगलों की ही सरपरस्ती थी। इसके बावजूद जयपुर में भी उनका शाही अतिथि सत्कार हुआ। जयपुर से मुरादाबाद तक राजा जयसिंह की सेनाओं की सुरक्षा में यात्रा तय हुई। 


मुरादाबाद से आगे के सुरक्षित सफर के लिए मोहम्मद शाह बंगश की टुकड़ियां तैनात थी। बंगश मुग़ल सरदार था और लगभग पूरा दोआब उसके अधीन था। बाजीराव बुदेलखंड के युद्ध में उसे बुरी तरह पराजित कर चुके थे। एक तरह से वह बाजीराव का सबसे बड़ा शत्रु था। 


परन्तु बाजीराव युद्ध में लगातार विजय के बावजूद कभी भी अमानवीय आतताई नहीं रहे थे और इसलिए उनके शत्रु उनके रणकौशल से भयभीत होते हुए भी उनकी सहृदयता के मुरीद थे और उनका सम्मान भी करते थे।  


उनके व्यक्तित्व की इस  भव्यता ने ही बंगश को मजबूर किया कि उसे उनकी माताजी की सुरक्षा के लिए अपनी सेनाएं तैनात करनी पड़ी। मुरादाबाद से काशी और काशी से नर्मदा के तट तक बंगश की सेनाओं ने राधा बाई और उनके लवाजमें को बिना शर्त सुरक्षा प्रदान की।


बाजीराव के व्यक्तिव में ऐसा क्या विशेष था कि उनके शत्रु भी उनका सम्मान करते थे? यह जानने के लिए एक प्रसंग और देखना उचित होगा। 


बाजीराव की सर्वाधिक प्रसिद्ध लड़ाईयों में से एक थी सन 1727 में गोदावरी के किनारे लड़ी गई पालखेड की लड़ाई। इस लड़ाई में बाजीराव ने निजाम को पूरे दक्खन के लगान वसूली के अधिकार मराठों को देने के लिए मजबूर किया था। 


पालखेड़ की लड़ाई बाजीराव के अद्वितीय रणनीतिक कौशल की मिसाल है। कईं महीनों तक पीछा करती हुई निजाम की सेनाओं को छकाते हुए बाजीराव निजाम और उसकी सेनाओं को ऐसी जगह ले आए कि उन्हें अब किसी भी प्रकार की सहायता नहीं मिल सकती थी। उनकी रसद मार्ग काट दिए गए। जल आपूर्ति भी पूरी तरह से काट दी गई। निजाम की सेना चारों ओर से मराठा सेनाओं से घिरी हुई थी और उसके सैनिक और जानवर (घोड़े, हाथी, और सामान ढोने के लिए बैल, खच्चर आदि) भूखे प्यासे बेहाल हो रहे थे। कुछ दिनों में स्थिति इतनी बिगड़ गई की सैनिको को अपने घोड़े मारकर खाने की नौबत आ गई। परन्तु भोजन से भी ज्यादा बड़ी समस्या पानी की थी। न पीने को पानी, न वापरने को। निजाम की छावनी में त्राहि त्राहि मची हुई थी। सैनिक यूद्ध लड़े बगैर ही हारे हुए लग रहे थे। 


इसी दौर में ईद का त्यौहार आ पड़ा। जहां भूख और प्यास के मारे जान की पड़ी हुई हो वहां ईद का जश्न क्या होता? इस भीषण परिस्थिति में अपने सलाहकारों की विपरीत सलाह के बावजूद निजाम ने बाजीराव को पत्र लिख कर बताया कि ईद का त्यौहार आ रहा है। उसके सैनिक भूखे प्यासे बेहाल हैं। क्या आप अपनी नाकाबंदी में कुछ छूट देकर सैनिकों को ईद मनाने देंगे? 


अपने सलाहकारों की इच्छा के विरुद्ध बाजीराव ने निजाम की गुजारिश को मान दिया और ईद मनाने के लिए आवश्यक रसद निजाम की छावनी में भिजवाने की व्यवस्था करवाई। सैनिकों और जानवरों को दूसरा जन्म जैसे मिल गया। बाजीराव ने यह निर्णय लेते हुए अपने सलाहकारों को समझाया कि युद्ध अपनी जगह है, और मानवीयता अपनी जगह। सैनिक निजी दुश्मनी की वजह से नहीं लड़ रहे हैं और ऐसे में उन्हें ईद मनाने का मौका देने में कोई हर्ज नहीं है। 


दो दिनों के बाद ही नाकाबंदी पुनः सख्त कर दी गई और शीघ्र ही निजाम को समर्पण कर दक्खन के समस्त कर वसूली के अधिकार मराठों को देने के सन्धि पत्र पर हस्ताक्षर करने पड़े। 


श्रीमंत बाजीराव पेशवा को 28 अप्रैल को उनकी पुण्यतिथि पर सादर नमन। 



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Dharavahik crime thriller (171) Apradh !!

That very day Suresh phoned his old classmate , Dr. Sushma Mundara . She was surprised to talk to Suresh. She was unmarried and practising i...

Grandma Stories Detective Dora},Dharm & Darshan,Today's Tip !!