एकलव्य,जिसका मूल नाम अभिधुम्न था और जिसे स्वजन अभय के नाम से पुकारते थे,महाप्रतापी राजा जरासंध के सेनापति हिरण्यधनु का पुत्र था। एकलव्य की मां का नाम रानी सुलेखा था।
एक कथा के अनुसार कृष्ण के चाचा ने अपने पुत्र हिरण्यधनु को ज्योतिष के सलाह पर श्रृंगवेरपुर के निषाद राजा,अपने मित्र को दानकर दिया था।
हिरण्यधनु का सेनापति गिरिवीर भी बहुत प्रतापी था।
इन दोनों के वीरता से प्रभावित जरासंध ने हिरण्यधनु को सेनाध्यक्ष बना लिया था।
अंगूठा कटनेके बाद भी एकलव्य ने तर्जनी और मध्यमा के सहयोग से तीरंदाजी में अपूर्व दक्षता प्राप्त कर ली थी। ये तरीका इतना कारगर है कि आधुनिक तीरंदाज़ भी इसी तकनीक का प्रयोग करते हैं। झारखंड में सिमडेगा के आदिवासी तीरंदाजों मे इस तीरंदाजी का प्रचलन आश्चर्यजनक है।
महाभारत युद्ध में इसी दो अंगुलियों से तीरंदाजी कर पांडवो के सेना में हाहाकार मचा दिया तब एकलव्य के बधका बीड़ा कृष्ण को स्वयं उठाना पड़ा।
एकलव्य की पत्नी का नाम रानी सुनीता था। पुत्र केतुमान भी पिता के तरह ही महान योद्धा था जो भीम के हाथों मारा गया।
इंडोनेशियाई कथा के अनुसार राजा फल्गु नदी को द्रोण ने मारा था जिसने पुनर्जन्म एकलव्य के रुप में लिया।
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