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बुधवार, 13 सितंबर 2023

Dharm & Darshan !! Niyati !

 18 दिनों के युद्ध ने, 

द्रौपदी की उम्र को

80 वर्ष जैसा कर दिया था ..


द्रौपदी 

कृष्ण को देखते ही 

और रोने देते हैं 


द्रौपदी : यह क्या हो गया सखा ??


ऐसा तो मैंने नहीं सोचा था ।


कृष्ण : नियति बहुत क्रूर होती है पाँचाली..

वह हमारे सोचने के अनुरूप नहीं चलती !


वह हमारे कर्मों को 

परिणामों में बदल देती है..


तुम प्रतिशोध लेना चाहती थी और, 

तुम सफल हुई, द्रौपदी ! 


तुम्हारा प्रतिशोध पूरा हुआ... 

सिर्फ दुर्योधन और दुःशासन ही नहीं, 

सारे कौरव समाप्त हो गये


तुम्हें तो प्रसन्न होना चाहिए ! 


द्रौपदी : सखा, 

तुम मेरे घावों को सहलाने आये हो

या उन पर नमक छिड़कने के लिए ?


कृष्ण : नहीं द्रौपदी, 

मैं तो तुम्हें वास्तविकता से

अवगत कराने के लिए आया हूँ

हमारे कर्मों के परिणाम को

हम, दूर तक नहीं देख पाते हैं 

और जब वे समक्ष होते हैं..

तो, हमारे हाथ में कुछ नहीं रहता । 


द्रौपदी : तो क्या, 

इस युद्ध के लिए पूर्ण रूप से मैं ही उत्तरदायी हूँ कृष्ण ? 


कृष्ण : नहीं, द्रौपदी 

तुम स्वयं को इतना महत्वपूर्ण मत समझो...


लेकिन,


तुम अपने कर्मों में थोड़ी सी दूरदर्शिता रखती तो, 

स्वयं इतना कष्ट कभी नहीं पाती ।


द्रौपदी : मैं क्या कर सकती थी कृष्ण ?


तुम बहुत कुछ कर सकती थी


कृष्ण : जब तुम्हारा स्वयंवर हुआ... 

तब तुम कर्ण को अपमानित नहीं करती और 

उसे प्रतियोगिता में भाग लेने का एक अवसर देती 

तो, शायद परिणाम 

कुछ और होते ! 


इसके बाद जब कुन्ती ने तुम्हें 

पाँच पतियों की पत्नी बनने का आदेश दिया...

तब तुम उसे स्वीकार नहीं करती तो भी, 

परिणाम कुछ और होते ।


और


उसके बाद 

तुमने अपने महल में दुर्योधन को अपमानित किया...

कि अँधों के पुत्र अँधे होते हैं ।


वह नहीं कहती तो, तुम्हारा चीर हरण नहीं होता...


तब भी शायद, परिस्थितियाँ कुछ और होती । 


"हमारे शब्द भी 

हमारे कर्म होते हैं..." द्रौपदी...


और, हमें


"अपने हर शब्द को बोलने से पहले 

तौलना बहुत ज़रूरी होता है..."

अन्यथा, 

उसके दुष्परिणाम सिर्फ़ स्वयं को ही नहीं... 

अपने पूरे परिवेश को दुःखी करते रहते हैं ।


सँसार में केवल मनुष्य ही एकमात्र ऐसा प्राणी है...

जिसका 

"ज़हर" 

उसके 

"दाँतों" में नहीं, 

"शब्दों" में है...


इसलिए शब्दों का प्रयोग सोच समझ कर करें । 


ऐसे शब्द का प्रयोग कीजिये जिससे, .

किसी की भावना को ठेस ना पहुँचे । 


क्योंकि

महाभारत हमारे अन्दर ही छिपा हुआ है ll

 

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