पृथ्वी की परिधि कितनी है के जवाब में
भास्कराचार्य ने दो श्लोक लिखे -
शंकुच्छायाहते त्रिज्ये विषुवत्कर्णभाजिते।
लम्बाक्षज्ये तयोश्चापे लम्बाक्षौ दक्षिणौ सदा।।
#अर्थात् -
शंकु और उसकी छाया को
अलग—अलग त्रिज्या से गुणा करके
प्रत्येक गुणनफल को विषुवत्कर्ण से भाग देने पर लम्बज्या और अक्षज्या प्राप्त होती है,
जिनके चाप अथवा कोण
क्रमश: लम्बांश और अक्षांश होते हैं।
पुरान्तरं चेदिदमुत्तरं स्यात्तदक्षविश्लेषलवैस्तदा किम्।
चक्रांशकैरिव्यनुपात युक्तया युक्तं निरुक्तं परिधे: प्रमाणम्।।
#अर्थात् -
भूमध्यरेखा से उस आलोच्य स्थान A के अक्षांश में से कर्क रेखा के अक्षांश को घटाने पर प्राप्त अक्षांश में
यदि पुरात्तर
अर्थात् उस AB रेखा के बीच इतनी दूरी है,
तो सम्पूर्ण चक्रांश
360 अंश में कितने योजन की दूरी होगी।
इस अनुपात के प्रयोग से
सम्पूर्ण भूपरिधि का प्रमाण ज्ञात होता है।
और उन्होंने बिल्कुल सटीक माप बता दिया कि
पृथ्वी की परिधि कितनी है
जिसे आज भी सटीक माना जाता है ।
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